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हाईकोर्ट जांच में पुलिस टॉर्चर की पुष्टि, अब दलित एक्टिविस्ट को न्याय का इंतजार

शिव कुमार ने मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर चले प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

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भारत
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27 वर्षीय शिव कुमार दलित होने के साथ-साथ लेबर राइट्स एक्टिविटिस्ट (श्रमिक अधिकार कार्यकर्ता) भी हैं. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि "पुलिस अधिकारियों ने मुझे नंगा कर दिया था, मेरे हाथ बांध दिए थे. उन्होंने मुझसे कहा कि अपने पैर फैलाओ, फिर वे मेरे प्राइवेट पार्ट्स के नजदीक आकर खड़े हो गए और छह फीट लंबी रॉड से मेरी जांघों पर वार किया."

दिसंबर की एक सर्द दोपहर में, दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर के पास एक छोटे से शहर कुंडली में शिव कुमार ने अपने दो कमरों वाले सामान्य से घर में द क्विंट से मुलाकत की. शिव कुमार हरियाणा में काम कर रहे एक श्रमिक संघ (लेबर यूनियन) जुड़े हुए हैं. इस यूनियन का नाम मजदूर अधिकार संगठन है. इसके अलावा 2020 और 2021 में किसानों के विरोध प्रदर्शनों में शिव कुमार सबसे आगे थे.

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16 जनवरी 2021 को हरियाणा पुलिस द्वारा शिव कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया था. कुमार को इसलिए गिरफ्तार किया गया था क्योंकि वे कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन द्वारा कथित रूप से भुगतान न किए गए वेतन और श्रमिकों के उत्पीड़न को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. बाद में 4 मार्च 2021 को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था.

उस समय कुमार ने आरोप लगाया था कि पुलिस हिरासत में उन्हें टॉर्चर किया गया था.

शिव कुमार ने मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर चले प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

हरियाणा पुलिस ने कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन द्वारा कथित रूप से भुगतान न किए गए वेतन और श्रमिकों के उत्पीड़न का विरोध करने के आरोप में शिव कुमार को गिरफ्तार किया था.

(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा / द क्विंट)

अब, साल भर बाद एक बार फिर हाई कोर्ट को दी की गई जांच रिपोर्ट के बाद शिव कुमार का मामला और उनके दावे खबरों में हैं. 21 दिसंबर को पंचकुला जिला और सत्र न्यायाधीश दीपक गुप्ता द्वारा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है जो एक्टिविस्ट शिव कुमार के उन दावों की पुष्टि की गई जिनमें कहा गया था कि हरियाणा पुलिस ने उन्हें "अवैध कारावास में रखा और टॉर्चर किया था."

कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के खिलाफ कई विरोधों को लेकर शिव कुमार के खिलाफ सोनीपत के कुंडली पुलिस स्टेशन में तीन FIR दर्ज की गईं थीं. पहली 28 दिसंबर 2020 को और बाकी की दो FIR 12 जनवरी 2021 को दर्ज की गई थी.

तीनों FIR भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत दर्ज की गई थीं, जिसमें 148 (दंगों को लेकर), 149 (गैरकानूनी असेंबली में हिस्सा लेने को लेकर), 384 (जबरन वसूली) और 506 (आपराधिक धमकी) जैसी धाराएं शामिल थीं.

23 पन्नों की जांच रिपोर्ट को डिकोड करने के अलावा इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि इससे शिव कुमार की जिंदगी और उनके काम पर क्या प्रभाव पड़ा. इसके साथ ही दलित होने के कारण प्रताड़ित किए जाने के उनके दावों-आरोपों को भी समझेंगे और यह भी जानेंगे कि वह न्याय के लिए लड़ना क्यों नहीं बंद करेंगे?

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सबसे पहले यह जानते हैं कि रिपोर्ट क्या कह रही है?

द क्विंट द्वारा एक्सेस की गई रिपोर्ट 15 गवाहों के बयानों पर आधारित है, जिसमें कुमार के तीन मामलों की लगातार जांच करने वाली और स्पेशल इंवेस्टिगेटिव टीम (SIT) की इंचार्ज आईपीएस अधिकारी निकिता खट्टर, कुंडली स्टेशन हाउस ऑफिसर ( SHO) शमशेर सिंह और सोनीपत जिला जेल के मेडिकल ऑफिसर कपिल यादव शामिल हैं.

रिपोर्ट में 16 जनवरी से 23 जनवरी 2021 तक और फिर 23 और 24 जनवरी 2021 की दरम्यानी रात को शिव कुमार के "अवैध पुलिस कारावास" के निष्कर्षों के बारे में बताया गया है.

बीते 27 दिसंबर को जब क्विंट ने कुंडली में कुमार के घर में उनसे मुलाकात की तब उन्होंने बताया कि मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर बताया गया कि टॉचर्र (हिरासत में) के परिणामस्वरूप उन्हें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) हुआ है.

कुमार ने कहा कि "मैं फिर से उन दिनों के बारे में सोचना भी नहीं चाहता हूं."

20 फरवरी 2021 को चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिकल बोर्ड के द्वारा जो निष्कर्ष सामने आया उसके अनुसार पुलिस हिरासत में कुमार को "मल्टीपल फ्रैक्चर हुए, पैरों में सूजन आया, नाखून टूटे, उनके शरीर के कुछ अंग पिटाई से नीले पड़ गए और उन्हें PTSD" से जूझना पड़ा.

यहां पर ध्यान देने वाली दिलचस्प बात यह है कि उच्च न्यायालय की निगरानी में की गई पूछताछ के अनुसार, चंडीगढ़ ले जाने से पहले शिव कुमार की सोनीपत सरकारी अस्पताल और सोनीपत जिला जेल में डॉक्टरों द्वारा कम से कम पांच बार जांच की गई थी.

हालांकि, हालिया जांच रिपोर्ट में जिन चोटों या समस्याओं को दर्शाया गया हैं उनमें से किसी भी चोट को जिला जेल या सोनीपत सरकारी अस्पताल द्वारा तैयार की गई किसी भी मेडिकल रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया था.

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'पुलिस की धुन पर नाचे जेल अधिकारी और डॉक्टर' : जांच रिपोर्ट

जांच रिपोर्ट के अनुसार, सोनीपत सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स और सोनीपत जेल में प्रतिनियुक्त डॉक्टर्स "अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे" और "पुलिस अधिकारियों की धुन पर नाचते रहे."

रिपोर्ट के अनुसार, विनय काकरान, जो सोनीपत में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के रूप में कार्यरत हैं, उन्होंने भी "जाहिर तौर पर जरूरत के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया."

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कुमार के टॉर्चर के लिए सब इंस्पेक्टर शमशेर सिंह (तत्कालीन एडिशनल एसएचओ कुंडली), इंस्पेक्टर रवि कुमार (तत्कालीन एसएचओ कुंडली) और सीआईए के इंचार्ज इंस्पेक्टर रविंदर कुमार "जिम्मेदार" थे.

जांच रिपोर्ट में बताया गया कि जब चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल अस्पताल में शिव कुमार की जांच की गई तो पता चला कि कुमार के शरीर पर बाईं जांघ, दाहिनी जांघ, बाएं पैर और दाहिनी कलाई समेत आठ जगह गंभीर चोटें थीं. रिपोर्ट में उल्लेख है कि "मेडिकल जांच में पैर की दूसरी और तीसरी अंगुली के नाखून टूटे हुए पाए गए, उनके नीचे की त्वचा रेडिश थी. वहीं बाएं अंगूठे और तर्जनी के नाखूनों में नीलापन और दर्द था."

'जो टॉर्चर मैंने झेला है उसकी भरपाई पैसाें से नहीं हो सकती': शिव कुमार

इस रिपोर्ट के बारे में शिव कुमार द क्विंट से कहा "मैं शुरू से जो बात कह रहा था, उसकी पुष्टि जांच रिपोर्ट ने की है. मुझे उम्मीद है कि अब मुझे न्याय मिलेगा."

कुमार ने कहा कि केवल पैसों का मुआवजा देना न्याय नहीं है. उन्होंने कहा कि "जब मैं जेल में था और मेरे परिवार को बाहर से जो धमकियां मिलीं, इसके अलावा उस दौरान मुझे जो शारीरिक और मानसिक टॉर्चर झेलना पड़ा, उसकी भरपाई पैसों से नहीं हो सकती है."

एक्शन की शुरुआत को लेकर शिव कुमार चाहते हैं कि "उन्हें प्रताड़ित करने वाले पुलिस और चिकित्सा अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया जाना चाहिए."

जेल के दिनों में शिव कुमार, किसानों का विरोध प्रदर्शन और उनका बचपन

द क्विंट के साथ अपने साक्षात्कार में शिव कुमार ने दावे के साथ कहा कि "16 जनवरी से 23 जनवरी 2021 तक अवैध कारावास" में और फिर जब "23 जनवरी से 20 फरवरी 2021 तक मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिमांड का आदेश दिया गया," तब उन्हें अधिकारियों द्वारा क्रूरता से टॉर्चर किया गया था.

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शिव कुमार ने दावा करते हुए कहा कि "16 जनवरी 2021 को, मुझे सिंघू बॉर्डर (जहां किसानों को विरोध प्रदर्शन चल रहा था) से उठाया गया और सोनीपत में केंद्रीय जांच एजेंसी के कार्यालय ले जाया गया था."

शिव कुमार ने मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर चले प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

शिव कुमार ने दावे के साथ कहा कि "16 जनवरी से 23 जनवरी 2021 तक अवैध कारावास" में और फिर जब "23 जनवरी से 20 फरवरी 2021 तक मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिमांड का आदेश दिया गया," तब उन्हें अधिकारियों द्वारा क्रूरता से टॉर्चर किया गया था.

(इलस्ट्रेशन : अरूप मिश्रा / द क्विंट)

कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा कि "एक पुलिस अधिकारी, जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला कि वह पुलिस स्टेशन का एसएचओ इंस्पेक्टर रवि कुमार है. उसने मुझे नंगा कर दिया था, मेरे हाथ बांध दिए थे और मेरे पैर फैला दिए. उन्होंने मेरे पैरों के बीच एक डंडा फंसा दिया. दो पुलिस अधिकारी बाईं ओर से और दो दाईं ओर से मुझे मार रहे थे. उसी समय एक व्यक्ति मेरे पैरों पर बेल्ट से वार कर रहा था."

शिव कुमार के दावों के अनुसार पुलिस का यह टॉर्चर 23 जनवरी तक चलता रहा. पुलिसकर्मी उन्हें रॉड्स से पीट रहे थे.

अपनी गिरफ्तारी के 20 दिन बाद 5 फरवरी को शिव कुमार अपने गांव देवरू के रहने वाले एक जेल कर्मचारी के जरिए अपने परिवार को संदेश भेजने में कामयाब हुए थे. कुमार ने द क्विंट को बताया कि "मुझे अपने परिवार या अपने वकील से मिलने की इजाजत नहीं थी. 19 फरवरी को मुझे अपने पिता की याचिका के बारे में पता चला, जिसमें चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मेडिकल जांच कराने की मांग की गई थी."

47 दिनों की हिरासत के बाद, कुमार को हरियाणा की एक स्थानीय अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया था.

शिव कुमार की राजनीति जाति पर क्यों केंद्रित है?

हरियाणा के सोनीपत में भूमिहीन दलित खेतिहर मजदूरों के घर जन्मे शिव कुमार ने कहा कि बचपन से ही गरीबी और जातिगत भेदभाव ने समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि "मैं एक बहुत गरीब घर में पला-बढ़ा हूं. मेरे माता-पिता सोनीपत में भूमिहीन खेतिहर मजदूर हैं. बहुत मुश्किलों के बाद, वे मुझे शहर के एक निजी स्कूल में दाखिला दिलाने में सफल हुए थे. मेरा माता-पिता कभी भी मेरी ट्यूशन फीस समय पर जमा नहीं कर पाते थे इसलिए अक्सर पूरी कक्षा के सामने मेरी खिंचाई की जाती थी."

इन संघर्षों और कठिनाइयों के कारण शिव कुमार भगत सिंह द्वारा स्थापित मार्क्सवादी समूह नौजवान भारत सभा की ओर आकर्षित हुए.
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शिव कुमार का घर उनके लेबर यूनियन यानी मजदूर अधिकार संगठन (MAS) का कार्यालय भी है. उनके घर की दीवारों पर भगत सिंह और डॉ बीआर अंबेडकर के पोस्टर्स लगे हुए हैं.

उन पोस्टरों में से एक के बगल में खड़े होकर तस्वीर खिंचवाते हुए कुमार ने कहा "स्कूल के दिनों में, जब हमसे हमारे रोल मॉडल्स के बारे में पूछा गया था, तब मेरे दोस्तों ने फिल्मी दुनिया या खेल जगत के स्टार्स के नाम लिए थे. हालांकि, मेरे रोल मॉडल हमेशा से भगत सिंह रहे हैं. गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले एक दलित के तौर पर मैंने जिन अत्याचारों का सामना किया उनकी विचारधारा ने मुझे उन अत्याचारों के खिलाफ अपने गुस्से को दिशा देने में मदद की."

शिव कुमार ने दावा किया कि जेल में रहने के दौरान भी पुलिस ने उनके खिलाफ जातिसूचक गालियों का इस्तेमाल किया. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि "जब-जब मैं मदद की गुहार लगाते हुए रोता था तब-तब उन्होंने मुझे गालियां दीं. उन्होंने मेरी मां और बहन के नाम पर भद्दी टिप्पणियां कीं. अक्सर जातिवादी गालियां दीं. मुझे याद है कि वे कहते थे, "स**ले च****र! तू दिलायेगा मजदूर को उनका पैसा?"

नोदीप कौर जोकि शिव कुमार की साथी हैं और आधिकार कार्यकर्ता (राइट्स एक्टिविस्ट) हैं. कौर को कुमार से चार दिन पहले 12 जनवरी 2021 को गिरफ्तार किया गया था, उन्होंने भी कुंडली एसएचओ रवि कुमार पर जातिसूचक गालियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. न्यूज वेबसाइट द प्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कौर ने आरोप लगाया है कि एसएचओ ने कहा था कि "समाज में दलित इतना ऊंचा नहीं उठ सकते कि वे लोगों की आवाज बन जाएं."

शिव कुमार ने मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर चले प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

मार्च 2021 में जमानत पर रिहा होने के बाद सिंघू बॉर्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में शिव कुमार

(इलस्ट्रेशन : अरूप मिश्रा / द क्विंट)

'आय का कोई स्रोत नहीं, मेरे खिलाफ कोर्ट केस हैं जिसके कारण जॉब से रिजेक्ट कर दिया गया'

हिरासत में दी गई कथित यातना ने कुमार पर न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से असर डाला बल्कि उनकी आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया है.

उन्होंने क्विंट को बताया कि "मेरे पास आय का कोई स्रोत नहीं है. मैंने जॉब के लिए अप्लाई किया था लेकिन मेरे खिलाफ कोर्ट केस हैं जिसकी वजह से मुझे रिजेक्ट कर दिया गया था. हमारे संगठन को जो डोनेशन मिलता है और हमारे समाज के बुद्धिजीवियों के द्वारा जो सर्पाेट मिलता है उसी से मैं सर्वाइव (गुजर-बसर) कर रहा हूं."

उन्होंने कहा कि उनको जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई केवल आर्थिक मदद से नहीं हो सकती है.

फिलहाल शिव कुमार अपनी लेबर यूनियन के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "मैं श्रमिकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाता रहूंगा."

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