ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुलायम के दांव से ही अखिलेश को पटखनी देंगे शिवपाल? 

बीजेपी या अखिलेश, आखिर किसे नुकसान पहुंचाएगा शिवपाल का समाजवादी सेक्युलर मोर्चा?

Updated
भारत
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी को एक खास मुकाम तक पहुंचाने वाले मुलायम सिंह यादव को अपना 'सियासी गुरु' कहने वाले शिवपाल यादव ने अब अपना आदर्श बदल लिया है. ऐसा इसलिये माना जा रहा है, क्‍योंकि हर छोटे-बड़े फैसले पर 'नेताजी' की सहमति के बगैर एक भी कदम न उठाने वाले शिवपाल ने मुलायम के बार-बार कहने के बावजूद एसपी में बने रहने का प्रस्ताव ठुकरा दिया है. शायद अब वो अपना परिचय अखिलेश के चाचा और मुलायम सिंह के भाई से हटकर शिवपाल सिंह यादव के रूप में देना चाहते हैं.

समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के गठन के बाद से ही अखिलेश की समाजवादी पार्टी में शिवपाल को लेकर अजीब सा सन्नाटा है. ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि उनके रहने या न रहने से पार्टी की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है, पर बात इतनी सामान्‍य नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुलायम के समझाने पर भी नहीं माने

बीते मंगलवार को शिवपाल अपने बड़े भाई मुलायम सिंह से मिलने गए थे. बताया जा रहा है कि शिवपाल को पार्टी में बने रहने के लिए मुलायम सिंह ने काफी समझाया, लेकिन वो नहीं माने. उल्‍टे बीते डेढ़ साल का दर्द बगैर आंसुओं के उड़ेल दिया. मुलायम को भी अपने साथ आने का प्रस्ताव दे दिया. साफ है राजनीति कि अधेड़ उम्र में शिवपाल ने नई पारी शुरू की है, जो जोखिम भरा है.

शिवपाल का राजनीतिक कद बगैर मुलायम बहुत प्रभावी नहीं माना जाता है. लेकिन मुलायम के साथ रहकर उन्‍होंने राजनीति का हर दांव-पेच सीख लिया है, जिसे अब वे समाजवादी पार्टी के खिलाफ ही आजमाएंगे.  

शुरुआती दौर में मोर्चा ने अपना कार्यक्षेत्र मेरठ, मुजफ्फरनगर, फिरोजाबाद, मुरादाबाद, रामपुर यानी पश्चिमी यूपी को बनाया है. यहां उनकी पकड़ अच्छी है और इसे समाजवादी पार्टी का गढ़ भी माना जाता है. यहां तक की इस इलाके की हर हरकत की रिपोर्टिंग अखिलेश तक होती है और वो इसमें इंट्रेस्ट भी लेते हैं. शायद इसीलिए शिवपाल ने भी पहला कार्यक्रम मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना में किया, जिसके रिस्‍पॉन्‍स से वो उत्साहित हैं. बताया जा रहा है कि कार्यक्रम को सफल बनाने में उन्हें आचार्य प्रमोद कृष्णन का भी सहयोग मिला.

0

शिवपाल की नजर सीटों से ज्यादा समाजवादी पार्टी पर

माना जा रहा है कि शिवपाल की प्राथमिकता ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ को मजबूत करने से ज्यादा समाजवादी पार्टी को कमजोर करने की होगी.

शिवपाल से जुड़े करीबियों का कहना है कि मोर्चा भले ही सीटें न जीत सके, लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. अगर गठबंधन होता है, तो एसपी को 2019 के लोकसभा चुनावों में 30 के आसपास सीटें मिलेंगी. बाकी पचास सीटों, जिन पर गठबंधन के प्रत्‍याशी लड़ेंगे, मोर्चा उन पर ध्यान देगा और वहां उम्मीदवार उतारेगा.  

शिवपाल पहले मजबूत संगठन तैयार करना चाहते हैं. वो जानते हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए समय कम है. लेकिन इसके साथ ही वो यह भी अच्छी तरह से समझते हैं कि जिन्हें समाजवादी पार्टी का टिकट नहीं मिलेगा, उन्हें तोड़कर अपने साथ जोड़ना ज्यादा आसान होगा. लिहाजा, शिवपाल का मोर्चा अखिलेश की टीम को टटोल रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कहीं उल्टा न पड़ जाए शिवपाल का दांव?

राजनीति में हर दांव सही पड़े, ऐसा होता नहीं है. समीकरण और तिकड़म तो सभी बैठाते हैं, लेकिन अक्सर दांव उल्टे भी साबित होते हैं.

शिवपाल सिंह ने तो मोर्चा ही ऐसे लोगों के लिए बनाया है, जो नाराज और उपेक्षित हैं. यानी मोर्चा का फोकस बनाने से ज्यादा बिगाड़ने पर है. कई बार ये फॉर्मूला सफल भी हुआ है.

साल 1989 में मुलायम सिंह यादव खुद अजित सिंह को झटका देते हुए लोकदल से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली थी और सफल भी हुए थे. लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता.  

ऐसे में मोर्चा को फायदा मिले न मिले, बीजेपी को इसका फायदा जरूर होगा, जिसके लिए अमर सिंह लगातार भरोसा दे रहे हैं.

खुद अमर सिंह ने कहा है कि वो शिवपाल को अमित शाह से मिलाने के लिए योजना भी तैयार कर चुके थे, लेकिन शिवपाल नहीं गये. बाद में फोन पर दोनों की बात हुई. चूंकि शिवपाल और अमर सिंह, दोनों के राजनीतिक दुश्मन एक (अखिलेश) हैं, तो लड़ाई भी मिलकर और छिपकर लड़ी जाएगी. ऐसा देखने को भी मिल रहा है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें