बीजेपी को 300 से ज्यादा सीटें जीतकर एक बार फिर केंद्र की सत्ता हासिल किए अभी हफ्ता भर भी नहीं हुआ और उधर सरकार में सहयोगी शिवसेना ने केंद्र सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिए देश में बढ़ती बेरोजगारी और देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई है.
'सामना' में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे लिखते हैं, ‘सुगबुगाहट के साथ ही सट्टा बाजार और शेयर बाजार मचल उठा लेकिन ‘जीडीपी’ गिर पड़ा और बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ गया, ये कोई अच्छे संकेत नहीं हैं.’
‘चर्चा और विज्ञापनबाजी से आगे उठकर सोचने की जरुरत’
‘बेरोजगारी का संकट ऐसे ही बढ़ता रहा तो क्या करना होगा? इस पर सिर्फ चर्चा करके और विज्ञापनबाजी करके कुछ नहीं होगा काम करना पड़ेगा.’
‘नेशनल सेंपल सर्वे’ के आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत पहुंच गई. पिछले 45 सालों में ये सबसे ज्यादा है.
जिम्मेदारी नेहरु- गांधी पर डालना कहां तक सही - शिवसेना
‘सामना’ में लिखा है कि हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा था और उस हिसाब से पिछले 5 साल में कम-से-कम 10 करोड़ रोजगार का लक्ष्य पार करना चाहिए था. जो होता दिख नहीं रहा है और उसकी जिम्मेदारी नेहरू-गांधी पर नहीं डाली जा सकती है. सच्चाई ये है कि रोजगार निर्माण लगातार घट रहा है. केंद्र सरकार की नौकरी भर्ती में 40% की गिरावट आई है.
केंद्र सरकार के अधिकतर पीएसयू बंद हैं या फिर घाटे में चल रहे हैं. बीएसएनएल के हजारों कर्मचारियों पर बेरोजगारी का कहर बरपा है. सिविल एविएशन कंपनियों का किस तरह ‘बारह’ बजा है ये जेट कर्मचारियों के रोज होने वाले आंदोलन से साफ हो गया है.
ग्रोथ और इकनॉमी के आंकड़ों पर भी शिवसेना ने बीजेपी को घेरा. सामना में लिखा है,
सरकार कहती है कि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन विकास दर घट रही है और बेरोजगारी बढ़ रही है, ये भी उतना ही सच है. शहरी क्षेत्र के 18 से 30 साल की उम्र के 19% बच्चे बेरोजगार हैं. लड़कियों में यही औसत 27.2% है. कृषि रोजगार देने वाला उद्योग था. वहां भी हम अब मार खा रहे हैं. पिछले 5 महीनो में सिर्फ मराठवाड़ा में ही 300 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है.
‘वित्तमंत्री को कड़े कदम उठाने पड़ेंगे’
नए उद्योग, बंदरगाह, सड़क, हवाई अड्डे, यातायात जैसे क्षेत्रों में निवेश हुआ तो ही रोजगार का निर्माण होगा और जीडीपी बढ़ेगी. शब्द भ्रम का खेल खेलने से बेरोजगारी नहीं हटेगी. अर्थव्यवस्था संकट में है. नए वित्तमंत्री को चाहिए कि वे कोई राह निकालें.
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