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शिवसेना के मुखपत्र में PM मोदी के गुरुद्वारा जाने पर संपादकीय

सामना में संपादकीय के जरिए ये सवाल खड़ा किया गया है- 'इसलिए लड़ाई का अंत क्या?'

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शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में 22 दिसंबर के संपादकीय के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल्ली के रकाबगंज स्थित गुरद्वारे में गुरु तेगबहादुर की समाधि पर जाने की घटना पर तंज कसा है. शिवसेना के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी सिखों के किसान आंदोलन से किनारा करते हुए गुरुद्वारा में पहुंचे. संपादकीय में लिखा गया है कि पीएम मोदी जिन गुरु तेगबहादुर का दर्शन लेने गए थे, दिल्ली की सीमा पर हजारों सिख लड़ाके भी उन्हीं गुरु तेगबहादुर से प्रेरणा से लड़ रहे हैं. लेकिन सामना में संपादकीय के जरिए ये सवाल खड़ा किया गया है- 'इसलिए लड़ाई का अंत क्या?'

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सामना ने पीएम मोदी के गुरुद्वारा जाने की घटना पर लिखा-

प्रधानमंत्री मोदी अचानक दिल्ली के रकीबगंज स्थित गुरुद्वारे में पहुंचे. उन्होंने गुरु तेग बहादुर की समाधि के समक्ष मत्था टेका. इसमें बेचैन होने जैसी क्या बात है? मोदी कुछ भी करें तो वो नाटक या ढोंग है, ऐसा मानते हुए विरोधी टीका-टिप्पणी करते हैं. ये ठीक नहीं है. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं वे कई बार मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में गई थीं. ईद का शीर कुरमा और बिरयानी भी खाई है. लेकिन मोदी के संदर्भ में विरोधी कुछ अलग भूमिका अपनाते हैं, इसका आश्चर्य होता है. देश का माहौल फिलहाल उतना ठीक नहीं है. कोरोना का संकट है. बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था का संकट बढ़ गया है. गत एक महीने से पंजाब के किसान दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं.

'मोदी की श्रद्धा पर कोई सवाल न खड़ा करे'

मोदी ने पूरी भक्ति-भावना से गुरु का दर्शन किया. प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुद्वारा जाकर सिखों के मन को जीतने का प्रयोग किया. किसान आंदोलन के कारण पंजाब का सिख समुदाय नाराज है. वे मोदी विरोधी नारे लगा रहे हैं. पंजाब के इन किसानों को आतंकवादी और खालिस्तानी आदि साबित करके बदनाम करने का प्रयास किया गया इसलिए भड़के हुए सिखों की भावनाओं को शांत करने का प्रयास किया गया है, ऐसा कहा जा रहा है. मोदी गुरुद्वारे में गए इसके पीछे राजनीति है. सिखों से इतना ही प्रेम था तो पंजाब के किसानों को एक महीने से कड़ाके की ठंड में सड़क पर क्यों खड़ा किया हुआ है? सिखों के अन्न और पेट पालने के मुद्दे सुलझाने नहीं है और सिखों के गुरु के समक्ष नतमस्तक होना है, ये नाटक है. ऐसा विरोधी कहते होंगे लेकिन मोदी की श्रद्धा पर कोई सवाल न खड़ा करे. गुरु तेग बहादुर एक महान संत थे. गुरु ने मानवता, सिद्धांत और आदर्श का पालन करने के लिए शहादत स्वीकार की. उन्होंने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन का पुरजोर विरोध किया. वे धर्म रक्षक थे इसलिए सिख ही नहीं, बल्कि इस भूमि के हर किसी व्यक्ति को गुरु तेग बहादुर के समक्ष नतमस्तक होना चाहिए. गुरु ने सिर नहीं झुकाया तो औरंगजेब के आदेश से गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया. उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकारने से साफ मना कर दिया. ‘प्राण जाए पर वचन न जाए. सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं’ का तेवर औरंगजेब को दिखानेवाले गुरु तेग बहादुर, छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज की तरह धर्मवीर साबित हुए.

'किसान आंदोलन को पीठ दिखाकर मोदी पहुंचे रकीबगंज गुरुद्वारा'

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इसलिए सिखों के किसान आंदोलन को पीठ दिखाकर मोदी रकीबगंज गुरुद्वारा में पहुंचे, फिर भी दिल्ली की सीमा पर पंजाब का किसान विचलित नहीं हुआ. उनका संघर्ष और उनकी लड़ाई जारी रही. इसलिए रकीबगंज गुरुद्वारा में मोदी का पहुंचना व्यक्तिगत श्रद्धा का मामला माना जाना चाहिए. मोदी अचानक रकीबगंज गुरुद्वारा में पहुंचे. उस समय वहां जो ‘गुरुवाणी’ शुरू थी, उसका सारांश इस प्रकार है- तुम सेवा करते हो. ईश्वर की भक्ति करते हो लेकिन अगर तुम्हारे विचार नहीं बदले तो उस सेवा और भक्ति का क्या उपयोग? तुमने धर्मग्रंथ के कई पारायण किए लेकिन उसके उपदेश और सीख को तुम नहीं समझे, उसे अपनाते हुए मानवता के कल्याण के लिए उसका प्रयोग नहीं किया तो धर्मग्रंथ के उस पारायण का क्या उपयोग? ऐसे समय में जब तुम्हारा ‘समय’ आएगा, तुम्हारे कर्मों का ‘हिसाब’ होगा, उस समय तुम क्या करोगे? कहां मुंह छिपाओगे? काल से खुद को कोई नहीं बचा पाया है और न बचा पाएगा, इस बात का ध्यान रखना! प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु तेग बहादुर से प्रेरणा ली. ये आनंददायी बात है. दिल्ली की सीमा पर हजारों सिख लड़ाके भी उसी प्रेरणा से लड़ रहे हैं. इसलिए लड़ाई का अंत क्या, ये सवाल ही है.

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