ADVERTISEMENTREMOVE AD

संडे व्यू : मोदी जैसे भक्त पर गर्व करते अंबेडकर? ‘मोरबी’ का गुनहगार कौन?

Sunday View: आज पढ़ें टीएन नाइनन, करन थापर, पी चिदंबरम, रामचंद्र गुहा के विचारों का सार

Published
भारत
5 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

विदेश में होता ‘मोरबी’ तो इस्तीफा देते सीएम

इंडियन एक्सप्रेस में तवलीन सिंह लिखती हैं कि कुछ हादसे ऐसे होते हैं जिनके मलबे में दिखती हैं भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक कमजोरियों की तस्वीरें. मोरबी (Morbi Accident) के टूटे पुल के मलबे को टटोलने से ऐसा ही आईना नजर आता है. इसमें दिखता है कि मारे गये 135 लोग जिनमें बच्चे और महिलाएं शामिल थीं. मोरबी के अधिकारी की बात झूठ और शर्मनाक है कि भगवान की मर्जी से यह हादसा हुआ. मरने वालों को किसी ने नहीं रोका या किसी ने नहीं बताया कि नगरपालिका ने इस पुल के सुरक्षित होने का सर्टिफिकेट नहीं दिया है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि अगर किसी विकसित देश में यही हादसा हुआ होता तो मुख्यमंत्री ने फौरन त्यागपत्र दे दिया होता. मोरबी में प्रधानमंत्री के बगल में दिखे मुख्यमंत्री. फिर कुछ कहे बिना चले गये. स्थानीय अधिकारी अस्पताल की लीपापोती में व्यस्त हो गये. सफाई हुई. नये पानी के कूलर लगाए गये. नयी पलंग और चादरें खरीदी गयीं ताकि प्रधानमंत्री को ‘गुजरात मॉडल’ की खामियों का पता न लगे.

हादसे के कुछ घंटे बाद ही बीजेपी के आईटी सेल ने कहना शुरू कर दिया कि घटना में ‘अर्बन नक्सलियों’ का हाथ है. निशाना आम आदमी पार्टी पर था जिसे सर्वेक्षणों में बीजेपी का नुकसान करता बताया जा रहा है. राजनीतिक रोटियां सेंके जाने के आरोप लगे. लेखक पूछती हैं कि क्यों नहीं रोटियां सेंकीं जानी चाहिए? 27 साल से जिस गुजरात मॉडल का ढोल पीटा जा रहा था उसके टुकड़े-टुकड़े हो गये मोरबी के पुल में. कैसा ‘न्यू इंडिया’ बन रहा है मोदीजी आपके राज में?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘मोरबी’ पर चिदंबरम के 7 सवाल

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि मोरबी की घटना में किसी ने माफी नहीं मांगी, किसी ने इस्तीफे के पेशकश नहीं की और इस बात की पूरी संभावना है कि कोई जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा. छह साल पहले बंगाल में पुल गिरने की घटना में कुछ लोगों की गिरफ्तारी और भ्रष्टाचार की बात सामने आने के बावजूद आज तक मुकदमा नहीं चल सका है. मोरबी में भी कहानी दोहरायी जाती दिख रही है. छोटे स्तर के कामगारों की गिरफ्तारियां इसका प्रमाण है.

चिदंबरम ने कोलकाता में ओवरब्रिज गिरने वाली घटना के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को उद्धृत करते हुए सवाल उठाया है कि क्या भगवान गुजरात के लोगों को संदेश भेजेगा? चिदंबरम ने अपने आलेख में मोरबी की घटना पर सात सवाल उठाए हैं.

इनमें टेंडर जारी करने, ठेकेदार की नियुक्ति की जिम्मेदारी, पुल के जीर्णोद्धार की योजना, ठेकेदार की योग्यता, वाकई मरम्मत और जीर्णोद्धार का काम हुआ या नहीं, जनता के लिए पुल खोलने से पहले मंजूरी लेने और कारोबारी बंदोबस्त से जुड़े सवाल उठाए हैं. लेखक का मानना है कि कोलकाता और मोरबी की घटना एक जैसी होने के बावजूद छह साल में कोई बदलाव नजर नहीं आता. जिम्मेदारी लेने के लिए शासन-प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व तैयार नजर नहीं आता.

0

अंबेडकर क्या मोदी जैसे भक्त पर गर्व करते?

करन थापर ने है कि टेलीग्राफ में लिखा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने न सिर्फ बीआर अंबेडकर को आइकॉन माना है बल्कि उन्हें अपना विशेष नायक भी स्वीकार किया है. 2015 में प्रधानमंत्री ने कहा कि अंबेडकर न सिर्फ एक समुदाय के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत थे. 2016 में उन्होंने खुद को अंबेडकर भक्त बताया. अंबेडकर कहा करते थे “अगर हिन्दू राज वास्तविकता होगी तो यह देश के लिए निस्संदेह सबसे बड़ी त्रासदी होगी.“ वास्तव में अंबेडकर हिन्दूवाद के घोर विरोधी थे. सवाल यह है कि क्या बीजेपी अंबेडकर के इन विचारों को नहीं जानती थी? या फिर वह मानती थी कि दुनिया इन बातों से अनजान रहेगी या फिर उन्हें पता नहीं चलेगा?

करन थापर ने भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में अंबेडकर की राय का जिक्र किया है, “भारत के अल्पसंख्यक अपना अस्तित्व बहुसंख्यकों के हाथों में सौंपने को सहमत हैं...उन्होंने निष्ठा के साथ बहुसंख्यकों के शासन को स्वीकार किया है जो वास्तव में सांप्रदायिक बहुमत है न कि राजनीतिक बहुमत.” बीजेपी ने अगर इस बात की परवाह की होती तो ‘बाबर की औलाद’, ‘अब्बा जान’, ‘कब्रिस्तान और श्मशान घाट’ या फिर पूरे समुदाय को पाकिस्तान भेज देने जैसी बातों को मान्यता नहीं दे रही होती.

थापर लिखते हैं कि 1948 में अंबेडकर ने आगाह किया था, “अल्पसंख्यक विस्फोटक ताकत है जो अगर फट पड़ा तो देश के समूचे ताने-बाने को नष्ट कर दे सकता है.” आज अंबेडकर सबसे चिंतित व्यक्ति होते. लेकिन क्या बीजेपी इसे साझा करेगी? लेखक को संदेह है कि भारत को लेकर बीजेपी की सोच के साथ अंबेडकर होते. वे सवाल करते हैं कि नरेंद्र मोदी जैसे भक्त पाकर क्या अंबेडकर गर्व महसूस करते? क्या वे विश्वास करते कि उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं मोदी?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आंकड़ों पर गोपनीयता क्यों?

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में सवाल उठाया है कि क्या भारत में आंकड़ों को लेकर गोपनीयता बरती जा रही है? रोजगार को लेकर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों का इंतजार रहता या है तो शिक्षा पर गैर लाभकारी संस्थान ‘प्रथम’ के आंकड़े विश्वसनीय रहे हैं. आईएचएस मार्किट का परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स, कंपनियों की क्रेडिट से जुड़े ‘क्रिसिल’ के आंकड़े और तकनीक के क्षेत्र में सेंटर फॉर टेक्नॉलजी, इनोवेशन एंड इकनॉमिक रिसर्च के आंकड़े अहम रहे हैं. मॉनसून का पूर्वनानुमान लगाने में सरकारी आंकड़ों पर स्काइमेट ने बढ़त हासिल की है.

नाइनन ने हंगर इंडेक्स के आंकड़ों पर भारत सरकार के सवाल उठाए जाने का जिक्र करते हुए खुद सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठाए हैं. कोविड काल में मौत के आंकड़े हों या फिर रोजगार के आंकड़े- सरकार विश्वसनीय नहीं साबित हुई है. पीएफ अकाउंट की संख्या को रोजगार के तौर पर पेश करना भी नयी प्रवृत्ति रही.

जीडीपी के आंकड़ों में बारंबार संशोधन संदिग्ध माने गये हैं. नियमित होती रही जनगणना 2021 में होनी थी, अब तक नहीं हो पायी है. हालांकि जीडीपी के तिमाही, कारोबार और राजकोषीय आंकड़ों की स्थिति सुधरी है. फिर भी आर्थिक मामलों पर पुराने और अप्रासंगिक आंकड़े ही मंत्रालयों की वेबसाइट पर नजर आते हैं. लेखक का मानना है कि विश्वसनीय, संपूर्ण और तेज गति और आवृत्ति से हासिल होने वाले आंकड़ों के बिना न तो सरकार सही ढंग से काम कर सकती है, न ही योजना बना सकती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी का कद

फॉरेन पॉलिसी (एफपी) में रामचंद्र गुहा ने नरेंद्र मोदी के कद की ऐतिहासिक संदर्भ में तुलना की है. उन्होंने लिखा है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. जबकि, बीजेपी का दावा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी है. मोदी के व्यक्तित्व का जो ताना बाना बुना गया है वह उल्लेखनीय है. सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में फरवरी 1956 में निकिता ख्रुश्चेव ने अपने मशहूर भाषण में ‘कल्ट ऑफ पर्सनालिटी’ का इस्तेमाल किया था.

स्टालिन के कद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद एक व्यक्ति के कद को आगे बढ़ाने और उसे  सुपरमैन या ईश्वर के तौर पर स्वीकार करने का विरोधी है. ऐसा व्यक्ति माना जाता है कि वह सबकुछ जानता है, सबकुछ कर सकता है और उसका व्यवहार बुरा नहीं हो सकता.

रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि स्टालिन अकेला उदाहरण नहीं थे. वियतनाम में होची मिन्ह, क्यूबा में फिडेल कास्ट्रो, अल्बानिया में एनवर होक्ज़ा, उत्तर कोरिया में किम इल जोंग, चीन में माओत्से तुंग जैसे उदाहरण भरे पड़े हैं. इससे पहले इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर का कद उतना ही बड़ा था. मुसोलनी और हिटलर के उदय के सौ साल बाद दुनिया ऐसे ही तानाशाहों के उदय को देख रही है.

रूस के व्लादिमिर पुतिन, तुर्की के रिसेप तैय्यप एर्डोगान, हंगरी के विक्टर ओरबान, ब्राजील के जैर बोल्सानारो, नरेंद्र मोदी ऐसे ही उदाहरण हैं. इन सबके व्यक्तित्व के गिर्द सरकार घूम रही है और इन्हें देश के रक्षक के तौर पर देखा जाता है जो अत्यन्त शक्तिशाली हैं. लेखक लिखते हैं कि शत फीसद लोकतंत्र जैसा कुछ नहीं होता लेकिन दुनिया के कई देशों में अगर 70-30 फीसदी वाला लोकतंत्र है तो भारत में 50-50 फीसदी वाला लोकतंत्र है.

पढ़ें ये भी: COP27 क्या है? भयानक बाढ़, सूखा, त्रासदी...कराहती धरती को बचाने का आखिरी मौका

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×