ADVERTISEMENTREMOVE AD

संडे व्यू:कांग्रेस को कैसे मिले ‘लोकतांत्रिक तरीके’ से नया अध्यक्ष

संडे व्यू में आपको मिलेंगे देश के प्रमुख अखबारों के आर्टिकल्स

Updated
भारत
6 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

लैंगिक समानता दुनिया में मौजूदा संकट का इलाज

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित आर्टिकल में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने लैंगिक समानता को ज्यादातर समस्याओं का समाधान बताया है, जिनका सामना आज के दौर में दुनिया कर रही है. महिला होने की वजह से महिलाएं आज पुरुषों से बुरे हालात से गुजर रही हैं. अल्पसंख्यक या बूढ़ी महिलाएं या फिर शरणार्थी महिलाओं की स्थिति और भी बुरी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
गुतारेस ने लिखा है कि महिलाओं के अधिकार के मामले में बीते दशकों में बड़ी उपलब्धियों के बावजूद महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण कानून में बदलाव नहीं आया है. रेप और घरेलू हिंसा दुनियाभर में उन्हें परेशान कर रही है. यहां तक कि बच्चे पैदा करने या नहीं करने का अधिकार भी महिलाओं को नहीं है.

गुतारेस लिखते हैं कि लैंगिक समानता सदियों से सत्ता पर कब्जे का सवाल रहा है. न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था, बल्कि राजनीतिक और कॉरपोरेट व्यवस्था में भी लैंगिक असमानता मजबूती से अपने पैर पसारे हुए है. दुनियाभर में यही स्थिति है. वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के ताजा रिसर्ज के हवाले से गुतारेस लिखते हैं कि महिलाएं 77 सेंट कमाती हैं तो पुरुष एक डॉलर. यह फासला पाटने में फोरम का अनुमान है कि 257 साल लग जाएंगे. जो सभ्य समाज है वहां भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. दुनिया की संसद में महिलाओं की मौजूदगी नगण्य है. शिक्षा और स्वास्थ्य में भी उनकी नेतृत्वकारी भूमिका नहीं दिखती.

‘सबका विश्वास’ पर लौटिए मोदी जी

एसए अय्यर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुला पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने लिखा है कि विदेश के मोर्चे पर बीते 6 साल में जो उपलब्धियां उन्होंने देश के लिए अर्जित की है उस पर जलती दिल्ली, हिंसा और नफरत की आग में जलते देश और मानवाधिकार के उभरते सवालों ने पानी फेर दिया है. लेखक अपील करते हैं कि सीएए विरोधी प्रदर्शन के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया छोड़ दें. देश को बांटने के बजाए एक करें, घावों को भरें न कि नए घाव पैदा करें. बीजेपी में एक मात्र आप ही हैं जो ऐसा कर सकते हैं.

लेखक लिखते हैं कि बिहार में बीजेपी के समर्थन से एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया गया है. सीएए पर वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे. शिवसेना भी महाराष्ट्र में एनआरसी को लेकर इनकार कर चुकी है. ऐसे में यही काम बीजेपी देशभर में क्यों नहीं कर सकती ताकि डरे हुए लोगों के घाव भर सकें? ‘सबका विश्वास’ पर जो खतरा बीजेपी नेताओं के बयान से हुआ है उससे ‘सबका साथ’ और ‘सबका विकास’ भी कमजोर हुआ है. लेखक का मानना है कि शाहीन बाग के लोगों को असम के लोगों की तरह 'स्टेटलेस' हो जाने का खतरा है. वे अंबेडकर, भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस के बैनरों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं.

लेखक का मानना है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण न सरकार के लिए अच्छा है न वोट हासिल करने के लिहाज से यह ठीक है, इसलिए ‘सबका विश्वास’ पर लौटना चाहिए.

कोरोनावायरस से लड़ने में साम्प्रदायिक वायरस बाधा

द इंडियन एक्सप्रेस में पी चिदंबरम ने लिखा है कि चीन की सरकार रूस, जापान जैसे दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर तरीके से कोरोनावायरस से निपटती नजर आई है. इटली और ईरान इस मामले में फिसड्डी साबित हुए हैं. वहीं, भारत सरकार ने अब तक राज्यों के मुख्यमंत्रियों या स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ कोई बैठक तक नहीं बुलाई है. चिदंबरम ने लिखा है कि “सरकार पहले से चले आ रहे सीएए, एनपीआर और ट्रंप के स्वागत जैसे कामों में लगी रही है.”

चिदंबरम आगाह करते हैं कि वायरस के खिलाफ जंग में साम्प्रदायिक वायरस भी असर डालेगा. उनके विचार में, “जब समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध ही नहीं होंगे तो कैसे स्वास्थ्यकर्मी उन तक पहुंच पाएंगे.”

उन्होंने इस खौफनाक वायरस से लड़ने के लिए पहला काम सामाजिक सद्भाव और शांति कायम करना बताया है. चिदंबरम ने अपने 10 सूत्री सुझावों में सरकार को बताया है कि प्रधानमंत्री देश को संबोधित करें जिसमें आपसी मतभेद भुलाने और संकट की घड़ी में सरकार का साथ देने की अपील की जाए. अपनी ओर से सरकार एनपीआर को टालने, सीएए को लेकर काम रोकने और दंगों की जांच के लिए स्वतंत्र आयोग की नियुक्ति करने की घोषणा करे. कोरोनावायरस से निपटने के लिए राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय आपातकाल समिति बनाई जाए. कोरोनावायरस के विस्तार को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर मास्क, दस्ताने, बचाव वाले वस्त्र, सेनेटाइजर और जरूरी दवाओं का उत्पादन और वितरण की व्यवस्था की जाए.

कांग्रेस को चाहिए लोकतांत्रिक नेतृत्व

कांग्रेस को नया अध्यक्ष 'लोकतांत्रिक तरीके' से कैसे मिले, इसकी संभावनाओं पर रामचंद्र गुहा ने हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिखा है. अमेरिका में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव पर करीबी नजर रखते हुए वह अभी-अभी अमेरिका से लौटे हैं.

वह लिखते हैं कि दिल्ली के 90 से ज्यादा कॉलेजों के छात्रों से संवाद के दौरान उन्होंने जब छात्रों से पूछा कि आप में से किन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी चुनौती दे सकते हैं, तो एक हाथ भी इसका सकारात्मक उत्तर देते हुए नहीं उठा.

2014 और 2019 में जो नेतृत्व विफल रहा है उससे 2024 में सफल होने की उम्मीद नहीं की जा सकती. लेखक का मानना है कि यह सुखद है कि कांग्रेस के भीतर से बीते दिनों कुछ लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी अध्यक्ष चुने जाने की मांग उठाई है.

लेखक ने कैप्टन अमरिंदर सिंह, शशि थरूर, भूपेश बघेल, सचिन पायलट जैसे नेताओं को कांग्रेस अध्यक्ष के दावेदार के तौर पर देखा है. मगर, वह कांग्रेस से छिटक चुके नेताओं में भी संभावना देखते हैं. उनकी नजर में ममता बनर्जी सरीखे नेता भी इस दौड़ में शामिल होने चाहिए. इसके सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट भी इस दौड़ में आगे आ सकते हैं. लेखक एक टीवी डिबेट की भी जरूरत समझते हैं जिसमें कांग्रेस का नेतृत्व इस खोज को आगे बढ़ाने के लिए सामने आए. रवीश कुमार जैसा कोई एंकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है. इस तरह लेखक कांग्रेस अध्यक्ष की खोज की प्रक्रिया को 'लोकतांत्रिक' बनाने के विकल्पों पर सुझाव देते दिख रहे हैं.

मोदी ने दुनिया को निराश किया

तवलीन सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस में नरेंद्र मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद और ताजा न्यूयॉर्क यात्रा के हवाले से भारत के लिए दुनिया की सोच में आए बदलाव की ओर ध्यान दिलाया है. वह लिखती हैं कि जिन्हें नरेंद्र मोदी से उम्मीद थी कि वे भारत को आर्थिक शक्ति बनाएंगे, वही अब कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. भारत को आर्थिक शक्ति बनाने के बजाए हिंदू राष्ट्र बनाना उनकी प्राथमिकता में आ गया है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि दिल्ली दंगों ने दुनिया को हैरान कर दिया है. सबका एक ही मत रहा है कि ये दंगे करवाए गए.

विदेश में वो वीडियो भी चर्चा का विषय रहा है कि दिल्ली पुलिस का एक झुंड हिंसक भीड़ को उकसा रहा है. दिल्ली दंगे के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की भूमिका को भी चिंता की नजर से देखा जा रहा है. ये पार्टियां कहीं मुसलमानों की हमदर्द न दिख जाएं, इससे बचती नजर आई हैं. दुनिया भारत को लेकर इसलिए भी चिंतित दिख रही है कि यहां के न्यायालयों और पुलिस पर खुलकर सरकार का दबाव दिखने लगा है. आखिरकार लेखिका को खुद भी लगने लगा है कि अजीब दौर से गुजर रहा है भारत.

कन्हैया पर केजरीवाल का फैसला गलत

करण थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखे अपने आर्टिकल में कन्हैया कुमार के खिलाफ राजद्रोह चलाने के लिए दिल्ली सरकार की ओर से अनुमति दिए जाने पर आश्चर्य जताया है. उन्होंने कन्हैया को लेकर अरविंद केजरीवाल के फैसले को गलत ठहराया है. लेखक इस बात से सहमत नहीं दिखते कि सरकार का काम बीच में आना नहीं है और सैद्धांतिक रूप से न्यायालय को जो काम करना चाहिए, उसे करने देना चाहिए.

लेखक का तर्क है कि कन्हैया कुमार पर फरवरी 2016 में यह नारा लगाने का आरोप है, “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाह अल्लाह इंशा अल्लाह”. हालांकि कन्हैया ने इससे इनकार किया है, फिर भी यह सही पाए जाने की स्थिति में लेखक का सवाल है कि क्या यह राजद्रोह है?

लेखक 1995 में बलवंत सिंह केस का जिक्र करते सुप्रीम कोर्ट के फैसले की याद दिलाते हैं जिसमें सिर्फ नारा लगाने को राजद्रोह मानने से इनकार किया गया था. लेखक ने बताया है कि दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने भी केजरीवाल सरकार को सुझाव दिया था कि कन्हैया कुमार के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. फिर भी अगर केजरीवाल ने ऐसा किया है तो इसकी वजह यह है कि वह कन्हैया के लिए अपनी राष्ट्रवादी सोच की बलि चढ़ने नहीं देना चाहते थे. लेखक ने बताया है कि अरविंद केजरीवाल ने कन्हैया कुमार के भाषण की तारीफ की थी जब उन्होंने जेल से निकलने के बाद छात्रों को संबोधित किया था.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×