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‘तो जल उठेगा पंजाब’, कैप्टन ने जिस SYL नहर पर ये कहा, उसकी कहानी

CM अमरिंदर सिंह ने कहा कि अगर SYLप्रोजेक्ट के तहत पंजाब को हरियाणा के साथ पानी का बांटना पड़ा, तो पंजाब जल उठेगा.

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भारत
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पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों से चला आ रहा सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सतलुज-यमुना लिंक प्रोजेक्ट के तहत पंजाब को हरियाणा के साथ पानी का बंटवारा करना पड़ा, तो पंजाब जल उठेगा. सीएम अमरिंदर सिंह ने ये बातें हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के साथ हुई एक वर्चुअल मीटिंग में कही.

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सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को केंद्र को लंबे समय से लंबित जल विवाद पर दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता करने के लिए कहा था, जिसके बाद दोनों राज्यों के सीएम के बीच मीटिंग हुई.

“आपको इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा के नजरिए से देखना होगा. अगर आप SYL प्रोजेक्ट के साथ आगे बढ़ने का फैसला करते हैं, तो पंजाब जल उठेगा और ये एक राष्ट्रीय समस्या बन जाएगी. हरियाणा और राजस्थान भी इसका असर झेलेंगे.”
कैप्टन अमरिंदर सिंह, मुख्यमंत्री पंजाब

तमिलनाडु और कर्नाटक के कावेरी जल विवाद की तरह ही, पंजाब और हरियाणा के बीच ब्यास और रावी नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर लंबा विवाद रहा है. तो आखिर क्यों देश में दो राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे ने इतना बड़ा रूप ले लिया? क्या है सतलुज-यमुना लिंक नहर प्रोजेक्ट? क्यों हरियाणा के साथ पानी बांटना नहीं चाहता पंजाब? इन सभी मुद्दों को एक-एक कर समझते हैं.

CM अमरिंदर सिंह ने कहा कि अगर SYLप्रोजेक्ट के तहत पंजाब को हरियाणा के साथ पानी का बांटना पड़ा, तो पंजाब जल उठेगा.
पंजाब और हरियाणा के बीच ब्यास और रावी नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर लंबा विवाद रहा है
(फोटो: विकिपीडिया)
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क्या है सतलुज-यमुना लिंक नहर प्रोजेक्ट?

ये 214 किलोमीटर लंबा एक नहर प्रोजेक्ट है, जो सतलुज और यमुना नदियों को आपस में जोड़ेगा. इसमें से 122 किमी का निर्माण पंजाब में और 92 किमी का निर्माण हरियाणा में होना है. इसका मकसद सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का पानी हरियाणा और पंजाब के बीच बांटना है. हरियाणा में नहर निर्माण का काम पूरा हो चुका है, लेकिन पंजाब में ये प्रोजेक्ट अटका हुआ है.

दोनों राज्यों के बीच क्यों है विवाद?

ये मुद्दा 1966 में पंजाब के पुनर्गठन जितना पुराना है. 1966 में जब हरियाणा का गठन हुआ, तब नए राज्य के लिए पानी की जरूरत पड़ी. 1966 से पहले, नदियों का पानी राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और अविभाजित पंजाब के बीच बांटा जाता था. पंजाब को तब 7.2 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी मिलता था. 1976 में, केंद्र सरकार ने इसमें से 3.5 MAF पानी हरियाणा को देने का फैसला किया.

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1981 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मध्यस्थता में, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान ने समझौते पर साइन किया. इस समझौते में ब्यास और रावी नदियों का पानी 17.7 MAF आंका गया, जिसमें से पंजाब को 4.22 MAF, हरियाणा को 3.5 MAF, राजस्थान को 8.6 MAF, जम्मू-कश्मीर को 0.65 MAF और दिल्ली को 0.20 MAF पानी दिया गया. 8 अप्रैल 1982 को, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस प्रोजेक्ट का निर्माण शुरू किया. लेकिन इसके तुरंत बाद अकाली दल ने बड़े स्तर पर इसका विरोध शुरू किया.

जुलाई 1985 में, पीएम राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल के प्रमुख संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने पानी के आकलन के लिए एक नया ट्रिब्यूनल बनाने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसके करीब एक महीने बाद ही आतंकियों ने लोंगोवाल की हत्या कर दी. इस प्रोजेक्ट के खिलाफ पूरे पंजाब में बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ. प्रोजेक्ट पर काम कर रहे दो अधिकारियों की भी हत्या कर दी गई, जिसके बाद पंजाब ने इसका काम रोक दिया.

1999 में हरियाणा ने नहर के निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 2002 में, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को उसी साल नहर का काम पूरा करने का निर्देश दिया. पंजाब के इनकार के बाद 2004 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस नहर का निर्माण जल्द पूरा किया जाए. लगातार प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे पंजाब ने 2004 में टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पास किया गया, जिससे पड़ोसी राज्यों से नदियों के पानी को साझा करने के सभी समझौते अवैध हो गए.

मार्च 2016 को, पंजाब विधानसभा ने पंजाब सतलुज-यमुना लिंक कनाल लैंड (ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी राइट्स) बिल 2016 पास किया, जिसमें जमीन मालिकों को उनकी भूमि वापस लौटाने का प्रस्ताव था. नवंबर 2016 में, कोर्ट ने जल समझौते को अवैध करने और जमीन मालिकों को भूमि लौटाने वाले पंजाब सरकार के फैसले पर रोक लगा दी.

फरवरी 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए और केंद्र सरकार से सतलुज-यमुना लिंक नहर प्रोजेक्ट का निर्माण देखने के लिए कहा.

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जल बंटवारे के लिए क्यों राजी नहीं है पंजाब?

द इंडियन एक्सप्रेस की सितंबर 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब पहले ही पानी की किल्लत का सामना कर रहा है. पंजाब में बड़े स्तर पर फसलों की पैदावार होती है. रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल यहां करीब 70 हजार करोड़ का गेहूं और धान उगाया जाता है. ऐसे में सिंचाई के लिए पानी चाहिए और भूजल कम हो रहा है.

हाल ही में हुई मीटिंग में भी पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, "अगर हमारे पास जल होता, तो मैं पानी देने के लिए क्यों राजी नहीं होता?" सीएम ने मीटिंग में पानी के मुद्दे को अलगाववादी आंदोलन और आतंकियों के साथ भी जोड़ा. उन्होंने कहा कि अगर नहर का निर्माण होता है तो इससे राज्य में अस्थिरता आ जाएगी.

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