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फेसबुक-ट्विटर को 36 घंटे में हटाना होगा 'गलत' कंटेंट, बदलेगा कानून

भारत सरकार और विदेशी सोशल मीडिया, टेक कंपनियों के बीच ठनती चली जा रही है

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भारत सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, टेक कंपनियों के बीच ठनती चली जा रही है. बीते दिनों ट्विटर अकाउंट सस्पेंड करने को लेकर ट्विटर और सरकार के बीच लंबी तनातनी चली. सरकार के मंत्रियों ने ये तक कहा कि इन सोशल मीडिया कंपनियों को 'लॉ ऑफ द लैंड' को मानना होगा. लेकिन अब सरकार ने ठान लिया है कि वो इन सोशल मीडिया कंपनियों पर लागू होने वाले कानूनों में बदलाव करेगी और नियमों को सख्त बनाएगी. खबर है कि इसका प्रस्ताव भी आ चुका है.

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19 फरवरी को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ऐसा नियम बनाने जा रही है जिससे सरकार के कहने पर सोशल मीडिया और टेक कंपनियों को 72 घंटे के बदले अब सिर्फ 36 घंटे के अंदर ही 'गैरकानूनी' कंटेंट को हटाना होगा. साथ ही कंपनियों को नागरिकों/यूजर्स के पर्सनल डेटा के प्रति और ज्यादा सहयोगी रुख अपनाना होगा.

सरकार सोशल मीडिया कंपनियों को लेकर चिंतित

18 फरवरी को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बड़ी टेक कंपनियों को लेकर चिंता व्यक्त की थी और नीतिगत मोर्चे पर कदम उठाने की तरफ इशारा दिया था. कॉमर्स और इंडस्ट्री मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि ये कंपनियां भारत के कानून को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

यह अहम है कि बड़ी अमेरिकी, टेक कंपनियों को भारत और उसके कानून के पालन को लेकर जवाबदेह बनाने के लिए यूएसआईबीसी जैसे संगठन अहम भूमिका निभाएं...अगर ऐसा नहीं होता है तो डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने में यह बाधा बन सकता है.
पीयूष गोयल

सरकार की तरफ से पिछले दिनों कैपिटॉल बिल्डिंग की घटना और टैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद ट्विटर के रवैए में भेदभाव करने का भी आरोप लगाया गया.

ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और गूगल निशाने पर

TOI की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और गूगल जैसी सोशल मीडिया टेक कंपनियों को गवर्न करने वाले IT कानूनों को बदलने पर काम कर रही है. नए नियमों के तहत जिस भी कंपनी के 50 हजार से ज्यादा यूजर्स हैं, उन्हें भारत में ऑफिस खोलना होगा और साथ ही एक नोडल अफसर को तैनात करेगा जो कि कानून लागू करने वाली एजेंसी के साथ संपर्क में रहेगा.

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सरकार चाहती है- 'कंपनियां सहयोग करें'

इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी नियम, 2011 में जिन संशोधनों का प्रस्ताव दिया गया है उन्हें IT एक्ट के सेक्शन 79 के तहत नोटिफाई किया जाएगा. ये बदलाव करने के पीछे सरकार का मकसद है कि सोशल मीडिया और टेक कंपनियां 'गैरकानूनी' कंटेंट को हटाए जाने को लेकर सहयोगी रुख अपनाएं.

सरकार कंपनियों से कह सकेगी कि वो 'गैरकानूनी' कंटेट के सोर्स का पता लगाएं ताकि गलत काम करने वाले के खिलाफ एक्शन लिया जा सके. इसके साथ ही सरकार कंपनियों से ऐसे ऑटोमेटिक टूल्स का इस्तेमाल करने के लिए भी कह सकती है जिससे ऐसे कंटेट/जानकारी को पहचाना जा सके और उसे हटाया जाए या फिर उसे डिसेबल किया जा सके.
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सोशल मीडिया कंपनियों को क्या करना होगा?

जैसे ही सरकार इन संशोधनों को नोटिफाई करेगी इसके बाद इन कंपनियों के लिए ये बाध्य होगा कि वो सरकारी आदेश या कोर्ट ऑर्डर आने के 36 घंटे के अंदर गलत कंटेंट को हटा दें. कानून में नए बदलाव 2011 के कानूनों के ऊपर (सुपरसीड) होंगे. सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वो नियमों में हुए इन बदलावों की जानकारी अपने यूजर्स को दें. कंपनियों को अपनी प्राइवेसी और एग्रीमेंट पॉलिसी को भी अपडेट करना होगा.

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'गैरकानूनी' कंटेट का सोर्स पता करने के लिए सरकार डाल सकेगी दबाव

TOI के सूत्रों ने ये भी जानकारी दी है कि सरकार कंपनियों पर इस बात के लिए भी दबाव डाल सकती है कि वो गैरकानूनी कंटेंट के सोर्स का पता लगाएं, ताकि गलत काम करने वाले का पता लगाया जा सके. फिलहाल व्हाट्सएप जैसी कंपनियों ने इस तरह की जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया है. उनका कहना है कि प्लेटफॉर्म पर जो भी बातचीत हो रही है वो एंड-टू-एंट एनक्रिप्टेड है. इसलिए कंपनी 'गैरकानूनी' कंटेट का सोर्स पता नहीं लगा सकती हैं.

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दुनियाभर की सरकारें इसे लेकर चिंतित

कानूनी जानकारों का मानना है कि गैरकानूनी कंटेंट को 36 घंटे के अंदर हटाए जाने का नियम दुनियाभर में जो प्रचलित नियम हैं उन्हीं के तहत है. आईटी कानून में सेक्शन 79 के तहत बदलाव एक ऐसे वक्त में किया जा रहा है जब दुनियाभर के कई देशों में टेक कंपनियों पर नकेल कसने की कवायद चल रही है.

ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने गूगल को न्यूज रियूज के लिए रकम चुकाने पर मजबूर किया है. फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में ऐसा करने से मना कर दिया और बदले में न्यूज और गैर न्यूज फीड रोक दी है.

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