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1 लाख नौकरी,2 करोड़ कैंडिडेट :खौफ पैदा कर रहा बेरोजगारी का यह मंजर

देश में बेरोजगारी को जो आलम है उसमें इस तरह के हालात पर अचरज नहीं होना चाहिए

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रेलवे की लगभग एक लाख नौकरियों के लिए 2 करोड़ से ज्यादा एप्लीकेशन. देश में बेरोजगारी का हाल बयां करने के लिए यह आंकड़ा काफी है. रेलवे ने हाल के दिनों के अब तक से सबसे बड़े भर्ती अभियान के तहत ग्रेड सी और ग्रेड की 90000 नौकरियां देने का फैसला किया है. आरपीएफ में 9,500 लोगों की भर्तियां की जाएंगी. सी और डी ग्रेड की नौकरियों के लिए बड़ी तादाद में मास्टर डिग्री और पीएचडी कैंडिडेट्स ने अप्लाई किया है

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देश में बेरोजगारी का जो आलम है उसमें इस तरह के हालात पर अचरज नहीं होना चाहिए. जरा, इन आंकड़ों पर गौर करें

  • ब्लूमबर्ग क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में आठ अहम सेक्टरों में सिर्फ 1 फीसदी अतिरिक्त लोग ही श्रम बाजार से जुड़े. जबकि 2011 में इन सेक्टरों में 7 फीसदी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला था. आंकड़ों के मुताबिक इन चार वर्षों में इन सेक्टरों में रोजगार की स्थिति में कोई खास प्रगति नहीं दिखी है.
  • मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों के दौरान रोजगार पैदा करने की दर सालाना 2 फीसदी रही है. जबकि 2006 से 2011 के बीच यह रफ्तार 4 फीसदी थी.
  • पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1991 से 2013 के बीच देश में कामकाजी लोगों की आबादी 30 करोड़ बढ़ी है, जबकि रोजगार सिर्फ 10.4 करोड़ बढ़ा है.
  • आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 और 2019 में बेरोजगारी की दर बढ़ सकती है.

एनडीए सरकार ने हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का भारी-भरकम वादा किया था. लेकिन इस वादे को निभाने में वह बुरी तरह नाकाम रही है. सरकार के लगभग चार साल के कार्यकाल में रोजगार के मोर्चे पर लड़खड़ाहट दिखी है. पॉलिसी से जुड़े सरकार के कई फैसलों ने रोजगार पैदा करने की रफ्तार रोकी है.

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आधार, नोटबंदी और जीएसटी की मार

दरअसल पिछले कुछ वर्षों के दौरान दो चीजों ने निवेश को नकारात्मक तौर पर प्रभावित कया है. सरकार का हमारी जिंदगी में बढ़ता दखल और इसका आम लोगों औैर एंटरप्रेन्योर की जोखिम लेने की क्षमता पर असर. आधार लिंकिंग की अनिवार्यता, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से उपभोक्ता और बिजनेस सेंटिमेंट खराब हुए हैं.

सरकारी और निजी निवेश दोनों में कमी

इस दौरान सरकार का निवेश अर्थव्यवस्था में काफी कम हो गया है. यह लगभग 12 फीसदी के आसपास है. सरकार का भारी निवेश भी इकोनॉमी को एक सीमा तक ही रफ्तार देता है. इकोनॉमी को रफ्तार निजी निवेश से मिलता है. पिछले कुछ सालों के दौरान निजी निवेश में इजाफा देखने को नहीं मिल रहा है.

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खराब क्रेडिट ग्रोथ

इंडस्ट्री की ओर से लिए जाने वाले कर्ज का आंकड़ा देखें तो निराशा हाथ लगती है. पिछले कुछ वर्षों से निजी निवेश के आंकड़ों को देखें तो पाएंगे कि पिछले कुछ सालों से यह लगभग गायब है. खराब क्रेडिट ग्रोथ से साबित होता है कि इंडस्ट्री के अंदर इतना आत्मविश्वास नहीं दिख रहा कि वे निवेश करें.

रेलवे की 90,000 नौकरियों के लिए दो करोड़ एप्लीकेशन से यह भी जाहिर होता है कि प्राइवेट सेक्टर में रोजगार नहीं बढ़ रहा है. यह इसलिए कि यहां नए निवेश नहीं आ रहे और विस्तार रुका हुआ है. यही वजह है कि नौकरियां कम होती जा रही है और इन्हें चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है.

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