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ट्विटर पर सरकार से सवाल,कश्मीर में सब नॉर्मल तो यह विज्ञापन क्यों?

कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए दो महीने से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अभी भी तनाव बरकरार 

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कश्मीर में लोगों को सामान्य जिंदगी शुरू करने की अपील करता सरकार का एक विज्ञापन सोशल मीडिया पर जबरदस्त निशाने पर है. 11 अक्टूबर को 'ग्रेटर कश्मीर' समेत घाटी के कुछ अखबारों में छपे जम्मू-कश्मीर सरकार के विज्ञापन में लोगों से पूछा गया है कि दुकानें बंद हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठप हैं. इससे किसका भला हो रहा है. लोगों से आतंकवादियों के सामने हथियार न डालने को कहा गया है.

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सोशल मीडिया यूजर्स अब पूछ रहे हैं, जब सरकार कह रही है कि घाटी में सब नॉर्मल है तो फिर यह विज्ञापन क्यों छपवा रही है. दरअसल इसने सरकार की कलई खोल दी है. विज्ञापन में अपील की गई है लोग आतंकवाद, हिंसा, विध्वंस और गरीबी के अंतहीन चक्र में न फंसे. बाहर निकलें. अपना कारोबार दोबारा शुरू करें और प्रोपंगडा और धमकियों से न डरें.

महबूबा मुफ्ती ने की खिंचाई

अपने ट्वीट में महबूबा मुफ्ती ने लिखा है ‘ग्रेटर कश्मीर’ के फ्रंट पेज पर छपे राज्य सरकार का गिड़गिड़ाता रुख देखिए. 5 अगस्त से सरकार के बर्बर लॉकडाउन के विरोध में कश्मीरियों ने सिविल कर्फ्यू से जवाब दिया. अगर सरकार को वाकई लोगों की फिक्र होती तो वह टेलीकॉम बैन हटा देती.

विज्ञापन में कहा गया है कि 70 साल से गुमराह किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर दोराहे पर खड़ा है.इसमें लोगों से सही शिक्षा चुनने और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने की अपील की गई है. साथ में राज्य में विकास को पनपने देने को कहा गया है. हालांकि सोशल मीडिया में इस विज्ञापन को खूब निशाना बनाया गया है. ट्विटर यूजर्स का कहना है कि सरकार घाटी में शांति होने का दावा करके लोकतंत्र का मजाक उड़ा रही है. लेकिन इस विज्ञापन से उसके उस दावे की कलई खुल गई है कि घाटी में सब नॉर्मल है.

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‘ये सबूत हैं कि घाटी में दुकानें बंद हैं’

पत्रकार हरिंदर बवेजा ने कहा कि घाटी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट ठप हैं और दुकानें बंद हैं. आतंकवादियों का कुछ दबाव है लेकिन सरकार को पता नहीं है कि इस नागरिक प्रतिरोध का मुकाबला कैसे किया जाए. उनसे बात कीजिए. लोगों से संवाद कीजिए.

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