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भारत की जेलों में हर 100 में से 77 कैदी विचारधीन क्यों?

Janab Aise Kaise: भारत में बात-बात पर जेल और महीनों बाद बेल, किसी जंग जीतने जैसा क्यों बनता जा रहा है?

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भारत
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3.5 साल से जेल में, आरोप-साइकिल चोरी, सारे सह आरोपी बेल पर रिहा, घर में सिर्फ 9 साल की बेटी, वकील को फीस नहीं दे सकते डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस के वकील ने आज तक संपर्क नहीं किया.

विशेश्वर उरांव झारखंड की जेल में बंद हैं. विशेश्वर का दर्द कम लग रहा है तो बिग पिक्चर देखिए. देश की जेलों हर 100 में से 77 कैदी विचाराधीन (Undertrail Prisoners in Jail) हैं. यानी बिना दोष साबित हुए जेल में. ये दयनीय स्थिति सबूत है पुलिस के कारनामों की, नइंसाफी की, अदालत के तारीख पर तारीख वाली स्थिति की.

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अदालत, पुलिस, मीडिया, सरकारी एजेंसी की वजह से जेल आबाद है और हजारों जिंदगियां बर्बाद. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

बात-बात पर जेल और महीनों बाद बेल

कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राज्यसभा में केंद्र सरकार से सवाल किया कि देश में ऐसे कितने कैदी हैं जिन्हें सजा पूरी होने के बाद भी छोड़ा नहीं गया है. इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि 2019 तक 1031 कैदी सजा पूरी कर चुके हैं, लेकिन जुर्माने का पैसा न होने की वजह से जेल में हैं.

इस पर गृहराज्य मंत्री अजय कुमार टेनी ने जवाब में कहा कि ये प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी होती है. इस बहस के बीच एक अहम सवाल ये भी है कि भारत की जेलों में बिना अदालत से सजा मिले ही सालों साल लोग सजा क्यों काट रहे हैं? किसकी गलती है?

हमेशा सुनते आए हैं, 'Bail is Rule, Jail is an exception' मतलब बेल नियम है, जेल अपवाद. फिर भारत में बात-बात पर जेल और महीनों बाद बेल, किसी जंग जीतने जैसा क्यों बनता जा रहा है?

अब जरा ये देखिए

20 साल झेला SIMI सदस्य होने का झूठा आरोप, 122 लोग अदालत से बरी. छत्तीसगढ़ के 121 बेगुनाह आदिवासी 5 साल बाद रिहा.

आतंकी संगठन से जुड़े होने के आरोप से आठ वर्ष बाद बाइज्जत बरी हुए चार मेवाती.

चलिए आपको भारत के जेलों की आंकड़ों के जरिए दर्शन कराते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर, 2021 तक भारत की जेलों में कुल 5,54,034 कैदी थे. इसमें से सिर्फ 22 प्रतिशत ही ऐसे थे जिनका दोष साबित हो चुका था, मतलब दोष साबित होने के बाद जेल में सजा काट रहे हैं. वहीं 4,27,165 यानी करीब 77 फीसदी अंडरट्रायल कैदी हैं. जिनका जुर्म अबतक साबित नहीं हुआ है.

अब इन जेलों की क्षमता की बात करें तो 31 दिसंबर 2021 तक देश की कुल 1,319 जेलों में औसतन हर 100 कैदियों के लिए बनी जगह में 130 कैदी रह रहे थे.

उत्तर प्रदेश की जिला जेलों में हर 100 कैदियों के लिए जगह पर करीब 200 कैदी रह रहे हैं. उत्तराखंड की हर 100 कैदियों की लिए मौजूद जगहों पर करीब 300 कैदी रह रहे हैं. एनसीआरबी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे ज्यादा 90 हजार अंडर ट्रायल कैदी हैं, इसके बाद बिहार का नंबर आता है, जहां, 59 हजार से ज्यादा विचाराधीन कैदी हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में करीब 31 हजार कैदी बिना गुनाह साबित हुए सजा काट रहे हैं. झारखंड की 30 जेलों की कुल क्षमता 17096 है, लेकिन यहां कैदियों की संख्या 22006 है. जिसमें से 17,141 अंडर ट्रायल कैदी हैं.

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अगर धर्म और जाति के हिसाब से देखें तो दलित, जो भारत की आबादी में 16.6% हिस्सा रखते हैं, वो सभी विचाराधीन कैदियों में लगभग 21% और सभी दोषी कैदी का 21% हैं. इसके अलावा आदिवासी, जो भारत की आबादी का 8.6% हैं, उनकी संख्या अंडर ट्रायल कैदियों में से 10% है और सभी दोषियों में से 14% है. भारत की जेलों में 100 में से 18 कैदी मुसलमान हैं. जबकि भारत की आबादी में उनका हिस्सा 14 फीसदी हिस्सा है.

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के डाटा के मुताबिक़ देशभर की अदालतों में क़रीब 4 करोड़ 30 लाख मामले लंबित हैं. वहीं करीब 21 फीसदी मामले ऐसे हैं जो 5 साल से लेकर 30 साल से ज्यादा पुराने हैं.

जेल की हालत, पुलिस और जुडिशियल सिस्टम के हालात को समझने के लिए आप भारत की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सुनिए.

"कौन लोग हैं जेल में, न उनको संवैधानिक अधिकार के बारे में पता है. न उनको प्रस्तावना के बारे में पता है. न संवैधानिक कर्तव्य के बारे में पता है. आप जानते हैं वहां के लोग थोड़ा खाने पीने में दूसरा (नशे) माहिर होते हैं. थोड़ा बहुत कुछ थप्पड़ मार दिया, उस पर क्या क्या दफा लगा दिया, जो लगाना नहीं चाहिए. घरवाले उन्हें सालों तक जेल से छुड़ाते नहीं हैं. क्योंकि उनको लगता है कि जो भी बचा धन दौलत है, वह मुकदमा लड़ने में बर्बाद हो जाएगा. इनके लिए कुछ करना होगा."
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सवाल है कि इतने मामले अंडर ट्रायल क्यों है? दरअसल, इसकी कई वजह है, कई मामलों में जांच में वक्त लगता है. लेकिन इसके अलावा अदालतों में सालों से लंबित पड़े मामले, जजों की कमी, पुलिस तंत्र का बेजा इस्तेमाल, झूठे केसों में लोगों को फंसाना. मामूली विवाद में भी कई धाराओं के तहत कार्रवाई, किसी को जानबूझकर जेल में रखने के लिए अलग-अलग मामले दर्ज करवाना. लोगों का आर्थिक रूप से कमजोर होना.

हां, सुप्रीम कोर्ट जेलों में बढ़ती भीड़ पर चिंता जताती रही है. लेकिन अब वक्त आ गया है जब बोलने से ज्यादा काम किया जाए. पुलिस और जुडिशियल रिफॉर्म की सख्त जरूरत है. अब सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट में हिस्सा लेने वाले डॉक्टर कफील खान को ही देख लीजिए, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) के नाम पर झूठ फंसाया गया, महीनों जेल में रखा गया. स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, आसिफ तन्हा और देवांगना कलिता को ही देख लीजिए. महीनों यूएपीए के नाम पर उनकी आजादी छीनी गई. क्यों एक दिन भी किसी बेगुनाह को जेल में रहना होगा?

हजारों लोग सिर्फ तारीख और इंसाफ के इंतजार में जेल में ठूस दिए गए हैं. कहा जाता है कि justice delayed is justice denied, इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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