इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 दिसंबर को एक शख्स पर आपराधिक कार्रवाई करने से रोक लगा दी है, जिस पर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एंटी-कनवर्जन कानून ('लव जिहाद' कानून) के तहत मामला दर्ज हुआ था. उत्तर प्रदेश में नया कनवर्जन कानून पास होने के दूसरे ही दिन यह केस दर्ज किया गया था.
मामले में आरोपी नदीम की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल ने कहा कि "केस की अगली लिस्टिंग तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी कार्रवाई न की जाए. "
कोर्ट ने निजता के मौलिक अधिकार का दिया हवाला
जजों ने संविधान के आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए बताया कि हर व्यक्ति को अपना धर्म मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है. संबंधित मामले में महिला वयस्क है जो अपना भलाई के बारे में जानती है. महिला और याचिकाकर्ता के पास निजता का मौलिक अधिकार है और वो वयस्क हैं और जानते हैं कि उनके इस संबंध के क्या परिणाम होंगे.
नदीम मजदूरी करते हैं, जिन पर मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर पुलिस स्टेशन में 29 नवंबर को महिला के पति ने एफआईआर कर दी. इसमें इसमें उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण अध्यादेश 2020, IPC की धारा 120-B (आपराधिक षड्यंत्र), 506 (क्रिमिनल इंटिमिडेशन) के तहत केस दर्ज किया गया है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि 'हमारे पास ये मानने के लिए कोई सबूत नहीं है जिससे कि पता चलता हो कि याचिकाकर्ता ने महिला का धर्म परिवर्तन कराने के लिए जोर जबरदस्ती की हो. जो भी आरोप हैं वो संशय के आधार पर प्रथम दृष्यया लगाए गए हैं.'
महिला के पति ने कहा है कि नदीम उसकी पत्नी को जानता था और घर आकर उसने महिला को फोन भी गिफ्ट दिया था, ताकि वह महिला के संपर्क में रह सके. शिकायतकर्ता और महिला के दो बच्चे भी हैं.
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