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UP: लव जिहाद के पहले ही केस में सबूत नहीं, 15 जनवरी को अहम सुनवाई

यूपी सरकार के जबरन धर्मांतरण कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करेगा इलाहाबाद हाईकोर्ट

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पिछले कुछ दिनों से एक शब्द काफी ज्यादा चलन में है, नेताओं से लेकर ट्विटर पर मौजूद बीजेपी समर्थकों की जुबान पर ये चढ़ा हुआ है. ये शब्द है- "लव जिहाद", जिसे लेकर अब बीजेपी शासित सरकारों में होड़ लगी हुई है कि कौन पहले इसके खिलाफ सख्त से सख्त कानून बनाता है. लेकिन योगी आदित्यनाथ की यूपी सरकार ने सबसे पहले बाजी मारते हुए पहले ही धर्म परिवर्तन को लेकर कानून बनाया और दावा किया गया कि इससे लव जिहाद के मामले रुक जाएंगे. लेकिन अब इस कानून पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. यहां तक कि इस कानून के तहत दर्ज किया गया पहला मामले में ही कोई सबूत नहीं मिल पाया है.

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पहले ही मामले को लेकर घिरी योगी सरकार

उत्तर प्रदेश में लव जिहाद को लेकर कानून बनाए जाने के बाद कई मामले दर्ज हुए. ज्यादातर मामलों में आरोप लगाया गया कि हिंदू संगठनों ने अपनी मर्जी से शादी करने वालों को भी पुलिस के हवाले कर दिया.

लेकिन अब योगी सरकार इस कानून को लेकर एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर है. क्योंकि धर्मांतरण को लेकर बनाए गए इस विवादित कानून के तहत जो पहला मामला दर्ज किया गया था, उसे लेकर खुद यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में बताया है कि आरोपी मुस्लिम युवक के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं.

क्या था मामला?

दरअसल ये कानून पारित होने के ठीक दो दिन बाद 29 नवंबर 2020 को मुजफ्फरनगर में पहला मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में अक्षय त्यागी नाम के एक शख्स ने मुस्लिम युवक नदीम के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी. उसने आरोप लगाया था कि नदीम उसकी पत्नी को अपने जाल में फंसाकर उसका धर्म परिवर्तन करना चाहता है. साथ ही उसने शादी का भी वादा किया है. इसके बाद नए विवादित कानून के तहत नदीम के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही नदीम की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. लेकिन फिर से सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकार ने बताया कि इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले हैं. इसके बाद हाईकोर्ट ने अब 15 जनवरी तक गिरफ्तारी पर रोक लगाई है, उसी दिन मामले की सुनवाई होगी.
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15 जनवरी को हाईकोर्ट में अहम सुनवाई

अब 15 जनवरी को लव जिहाद के मामले पर एक और सुनवाई तय हुई है. यूपी की योगी सरकार के इस विवादित कानून को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिन पर हाईकोर्ट अब 15 जनवरी को सुनवाई करेगा.

हालांकि यूपी सरकार का पक्ष रखने वाले एएजी ने हाईकोर्ट में ये दलील दी थी कि इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई करने जा रहा है और राज्य सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया गया है. इसीलिए इस मामले पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए. लेकिन चीफ जस्टिस ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए चार हफ्ते बाद की तारीख दी है. इसीलिए हाईकोर्ट लंबित याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने भेजा है नोटिस

बता दें कि जबरन धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर यूपी और उत्तराखंड सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं. जिनमें कहा गया था कि ये कानून संविधान के बुनियादी ढ़ांचे को डिस्टर्ब करते हैं. इन सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हुआ और दोनों राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी कर दिया.

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