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उर्दू कवि शम्सुर रहमान फारूकी का 85 साल की उम्र में निधन

फारूकी की मौत उनके इलाहबाद स्थित घर में हुई

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साल 2020 कोरोना वायरस महामारी के साथ-साथ दुखद समाचारों से भी भरा रहा है. इस साल कई बड़े नेताओं से लेकर बॉलीवुड ने इरफान खान और ऋषि कपूर जैसी हस्तियों को खो दिया. साहित्य जगत ने शायर राहत इंदौरी को अलविदा कहा है. और अब साल खत्म होते-होते एक और दुखद खबर आ गई है. उर्दू कवि और आलोचक शम्सुर रहमान फारूकी की 85 साल की उम्र में मौत हो गई है.

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दास्तानगोई कलेक्टिव के ट्विटर हैंडल ने इस खबर की पुष्टि की है. एक ट्वीट में कलेक्टिव ने जानकारी दी है कि फारूकी ने 25 दिसंबर की सुबह 11.20 पर आखिरी सांस ली. फारूकी का इंतकाल उनके इलाहबाद स्थित घर में हुआ.

शम्सुर रहमान फारूकी को इलाहबाद के अशोकनगर नेवादा कब्रिस्तान में दफन किया जाएगा. फारूकी को उनकी पत्नी जमीला के करीब ही सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा. जमीला की मौत 2007 में हो गई थी.  

नवंबर में इतिहासकार राणा सफवी ने ट्वीट कर बताया कि शम्सुर रहमान फारूकी कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए गए हैं.

कौन थे शम्सुर रहमान फारूकी?

30 सितंबर 1935 को इलाहबाद में जन्मे फारूकी को कहानी कहने की कला 'दास्तानगोई' को दोबारा जिंदा करने का श्रेय दिया जाता है. दास्तानगोई 16वीं शताब्दी की उर्दू में दास्तान सुनाने की कला है.

इलाहबाद यूनिवर्सिटी से पोस्ट-ग्रेजुएशन करने के बाद फारूकी ने लिखना शुरू कर दिया था. 1986 में फारूकी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. 2009 में भारत सरकार ने फारूकी को पद्म श्री से सम्मानित किया था.

शम्सुर रहमान फारूकी की मशहूर रचनाओं में ‘कई चांद थे सरे-आसमां’ शामिल है. इसका अंग्रेजी में अनुवाद ‘मिरर ऑफ ब्यूटी’ भी काफी प्रसिद्ध हुआ था.  

फारूकी के निधन पर लेखक विलियम डेलरिंपल ने शोक जताते हुए कहा कि 'वो उर्दू साहित्य जगत के आखिरी बादशाहों में से एक हैं.' वहीं, जश्न-ए-रेख्ता का आयोजन करने वाले संजीव सराफ ने फारूकी को उर्दू साहित्य की दुनिया में 'सदी की सबसे प्रतिष्ठित हस्ती' बताया.

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