उत्तर प्रदेश के आगरा में पुलिस के एक ढाबा मालिक को गिरफ्तार करने और कस्टडी में उसकी कथित मौत का मामला सामने आया है. मृतक धर्मेंद्र के परिवार का कहना है कि ये कस्टोडियल टॉर्चर और मौत का मामला है, जबकि पुलिस का दावा है कि व्यक्ति की मौत रेबीज की वजह से हुई है. मृतक के बड़े भाई ने FIR दर्ज करने की मांग की है.
आगरा के जैतपुर में ढाबा चलाने वाले 27 साल के धर्मेंद्र के बड़े भाई मुकेश ने अपने पत्र में लिखा, "25 मार्च को उसे पुलिस ने उठाया था और कहा था कि पुलिस स्टेशन में सभी ढाबा मालिकों की बैठक है. अगले दिन उसे जेल भेज दिया गया."
मुकेश ने कहा है कि 25 मार्च को जब धर्मेंद्र घर नहीं आया तो परिवार ने पुलिस से संपर्क किया, जहां से उन्हें पता चला कि धर्मेंद्र को नकली शराब बनाने के मामले में जेल भेजा गया है. मुकेश का दावा है कि ये आरोप ‘निराधार’ है.
परिवार का क्या आरोप है?
मुकेश ने अपने पत्र में कहा कि 3 अप्रैल को परिवार को पता चला कि धर्मेंद्र की तबीयत खराब है और उसे आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है. मुकेश ने एसएसपी को लिखे पत्र में कहा, "जब तक परिवार वहां पहुंच पाता, धर्मेंद्र को दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक बीमारी अस्पताल ले जाया गया."
क्विंट हिंदी से बातचीत में मुकेश रो पड़ते हैं और कहते हैं कि 'कुछ दिन में ही हमारा पूरा परिवार तहस-नहस हो गया, वो अपने आखिरी समय में पुलिस ने उसके साथ क्या-क्या किया सब बता रहा था, अब हम बस यही चाहते हैं कि इंसाफ हो जाए'
“दिल्ली के अस्पताल में धर्मेंद्र ने हमें बताया कि उसे बुरी तरह पीटा गया है, बिजली के झटके दिए गए हैं और एनकाउंटर करने की धमकी भी दी गई है. उसे कस्टडी से भागने के लिए कहा गया था और जब उसने इनकार किया तो पुलिस ने उसके गुप्तांग पर पेट्रोल डाला.”मुकेश, मृतक का भाई
मुकेश ने बताया कि 4 अप्रैल की शाम 7 बजे धर्मेंद्र की मौत हो गई थी.
पुलिस का क्या कहना है?
आगरा पुलिस ने कस्टोडियल टॉर्चर के आरोप को खारिज किया है. एसपी (पूर्व) के वेंकट अशोक ने कहा, "प्रारंभिक जांच के बाद चीजें साफ हैं. पुलिस टॉर्चर नहीं हुआ था. हमने उसे न्यायिक हिरासत में भेजने से पहले मेडिकल एग्जाम किया था. उसके शरीर पर कोई नया घाव नहीं था."
पुलिस के मुताबिक, मौत की वजह रेबीज थी. एसपी अशोक ने कहा, "मेरी जांच के मुताबिक, धर्मेंद्र को ढाई महीना पहले कुत्ते ने काटा था." एसपी ने इसके लिए धर्मेंद्र के साथ काम करने वाले एक व्यक्ति का हवाला दिया.
TOI की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के अस्पताल में मरीज के फॉर्म में कुत्ते के काटने का निशान डेढ़ साल पुराना बताया गया. जबकि आगरा के मेडिकल कॉलेज के फॉर्म में कहा गया कि 'बाएं पैर पर निशान दो साल पुराना है.'
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