ADVERTISEMENTREMOVE AD

स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद दारा सिंह चौहान, समझिए यूपी में BJP को कितना नुकसान?

CSDS के मुताबिक यूपी में करीब 3 फीसदी चौहान वोटर हैं जो पूर्वांचल की लगभग 100 सीटों पर असर रखते हैं

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) से पहले जनवरी के इन सर्द दिनों में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. 11 जनवरी को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दिया और कई विधायक भी बीजेपी (BJP) छोड़ गए. अब एक और कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इन दोनों के साथ ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने फोटो ट्वीट किया और अपनी पार्टी में स्वागत किया, हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य 14 जनवरी तक कुछ पत्ते छिपाकर रख रहे हैं.

लेकिन यहां सवाल ये है कि दारा सिंह चौहान के जाने से बीजेपी को कितना नुकसान होगा? और अगर वो समाजवादी पार्टी से जुड़े तो अखिलेश यादव को क्या हासिल होगा. ये समझने के लिए पहले दारा सिंह चौहान का राजनीतिक करियर खंगालना होगा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कौन हैं दारा सिंह चौहान?

दारा सिंह चौहान मूलरूप से आजमगढ़ के गेलवारा गांव के रहने वाले हैं. किसान परिवार में जन्म लेने वाले दारा सिंह चौहान आजमगढ़ के डीएवी कॉलेज से ग्रेजुएट हैं. दारा सिंह चौहान ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांशीराम के साथ की थी. कहा जाता है कि एक वक्त में वो सवर्ण समाज में वोट भी नहीं मांगते थे.

दारा सिंह की राजनीति का मऊ जिला केंद्र रहा है. वो 1996 में राज्यसभा सांसद बने और 2009 से 2014 तक बीएसपी के टिकट पर मऊ की घोसी लोकसभा सीट से सांसद रहे. दारा सिंह चौहान ने 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर घोसी लोकसभा सीट से ही चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए. 2014 में उन्होंने फिर बीएसपी के टिकट पर घोसी लोकसभी से ही चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी हार मिली.

ठीक 2017 विधानसभा चुनाव से पहले दारा सिंह चौहान ने बीएसपी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. और मधुबन सीट से विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर योगी सरकार में वन, पर्यावरण मंत्री बने.

0

दारा सिंह चौहान के जाने से बीजेपी को कितना नुकसान?

दारा सिंह चौहान ओबीसी की अति पिछड़ी जाति नोनिया (चौहान) समाज से आते हैं. उत्तर प्रदेश में चौहान सामान्य में भी आते हैं लेकिन दारा सिंह ओबीसी वाली चौहान कैटेगरी में हैं. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ के इलाके में फागू चौहान (जो अभी बिहार में राज्यपाल है) और दारा सिंह चौहान नोनिया समाज के दो सबसे बड़े नेता हैं.

सीएसडीएस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुम्हार/प्रजापति-चौहान की 3 प्रतिशत हिस्सेदारी है. जो पूर्वांचल में करीब-करीब 100 सीटों पर ठीक-ठाक संख्या में हैं. यही वजह है कि दारा सिंह चौहान के जाते ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उनसे वापस आने की अपील की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अखिलेश यादव इतने गदगद क्यों?

दरअसल ओम प्रकाश राजभर को साथ लेकर पूर्वांचल में अखिलेश यादव ने अपने आप को मजबूत करने की कोशिश की है. अब अगर स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी में शामिल होते हैं जैसी उम्मीद जताई जा रही है तो समाजवादी पार्टी को बड़ा फायदा हो सकता है क्योंकि ये वही समीकरण हैं जिनके साथ 2017 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई.

इसके अलावा मुख्तार अंसारी के भाई सिगबतुल्लाह अंसारी समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं. इसीलिए अखिलेश यादव ने दारा सिंह चौहान का इतनी गर्मजोशी से स्वागत किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दारा सिंह चौहान और अखिलेश यादव की जुगलबंदी ओमप्रकाश राजभर के साथ मिलकर कैसे धुन बदल सकती है और कैसे अंसारी परिवार कुछ सीटों पर इसमें शुगल लगा सकता है इसका अंदाजा आप दो सीटों के समीकरणों से लगा सकते हैं.

पहले मऊ की मधुबन सीट का समीकरण समझिए जहां से पिछली बार जीतकर दारा सिंह चौहान योगी सरकार में मंत्री बने थे.

  • 70 हजार दलित वोटर

  • 60 हजार यादव वोटर

  • 22 हजार मुस्लिम वोटर

  • 24 हजार चौहान वोटर

  • 25 हजार राजभर वोटर

  • 40 हजार में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और बनिया वोटर शामिल

  • कुल मतदाता - 3 लाख 93 हजार 299

इस सीट पर दलित वोटर सबसे ज्यादा हैं. लेकिन अगर 60 हजार यादव, 22 हजार मुस्लिम, 24 हजार चौहान और 25 हजार राजभर वोटर के समीकरणों को देखें तो सारे पत्ते खुले नजर आते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब घोसी विधानसभी सीट पर समीकरण देख लीजिए-

  • मुस्लिम - 60 हजार

  • यादव - 40 हजार

  • चौहान- 35 हजार

  • राजभर- 45 हजार

  • दलित- 40 हजार

  • सवर्ण- 40 हजार

  • मौर्य- 12 हजार

इस सीट पर मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं और ये मुख्तार अंसारी की सीट है. यहां भी लगता है कि जिसके पास मुस्लिम, यादव, चौहान और राजभर हों उसे हराना आसान नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर ऐसे ही समीकरण बनते हैं क्योंकि यहां ओबीसी वोटर काफी बड़ी संख्या में हैं और उसमें 3-4 प्रतिशत वोट भी बड़ा अंतर डाल सकता है. भारतीय जनता पार्टी ने पिछली बार यही किया था. उन्होंने छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ उन्होंने भले ही 2-4 सीटें जीती लेकिन बीजेपी को बड़ा फायदा पहुंचाया. इसीलिए अखिलेश यादव को दारा सिंह चौहान इतने अहम लगते हैं. और बीजेपी भी उन्हें नहीं छोड़ना चाहती है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×