45 वर्षीय मोहम्मद जाहिद ने बुधवार, 7 जून की रात अपना सामान पैक किया, उसे अपनी कार की डिक्की में डाला, और उत्तराखंड (Uttarakhand) के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में अपने घर को छोड़ राज्य की राजधानी देहरादून में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए.
उन्होंने द क्विंट को बताया, "मुझे अपने परिवार के लिए डर लग रहा था, इसलिए हम वहां से चले आये." जाहिद, उनकी पत्नी और उनके दो बच्चे - एक लड़की और एक लड़का- पिछले पांच दिनों से देहरादून में हैं.
जाहिद उत्तरकाशी (Uttarkashi) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष हैं. 26 मई तक वह एक सफल गारमेंट बिजनेस के मालिक थे. लेकिन अब उनके लिए सब कुछ बदल गया है.
30 साल से अधिक समय से पुरोला में रह रहे थे
जाहिद 1990 से पुरोला के निवासी हैं. उनके बड़े भाई अब्दुल वाहिद 1981 में उनसे पहले इस शांतिपूर्ण शहर में आ गए थे. इसी साल 3 फरवरी को जाहिद को बीजेपी के जिला अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का अध्यक्ष चुना गया था.
जाहिद ने द क्विंट से कहा, "मैं पिछले 7-8 सालों से पार्टी के साथ हूं."
अध्यक्ष के रूप में चुने जाने से पहले, उन्होंने तीन साल संयोजक के रूप में और तीन साल महामन्त्री के रूप में कार्य किया.
"अगर बीजेपी के किसी पदाधिकारी को खतरा महसूस हो रहा है, तो कौन सुरक्षित है?" उन्होंने पूछा. जाहिद इस उम्मीद में बीजेपी में शामिल हुए कि अगर कभी कुछ हुआ, तो वे उनके साथ खड़े होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "मैं पैसे या पद के लिए बीजेपी में शामिल नहीं हुआ."
उन्होंने कहा, "एक हिंदू लड़का भी था. अगर आप चाहते हैं कि हम चले जाएं, तो उन्हें भी जाना चाहिए. सभी अपराधियों के साथ एक जैसा व्यवहार करें."
जाहिद उस घटना का जिक्र कर रहे हैं जिसके बाद से पुरोला में सांप्रदायिक तनाव फैल गया है और कई मुस्लिम परिवार पलायन को मजबूर हो गए हैं.
पुरोला में कैसे शुरू हुआ सांप्रदायिक तनाव?
दरअसल 26 मई को, जितेंद्र सैनी और उबैद खान नाम के दो लोगों को कथित रूप से उत्तरकाशी के पुरोला कस्बे में एक नाबालिग लड़की का अपहरण करने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था. लड़की को घर वापस भेज दिया गया और दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों में से एक हिंदू है, दूसरे के मुस्लिम होने ने 'लव जिहाद' के संदेह और अफवाहों को जन्म दिया. यह जल्द ही शहर में जंगल की आग की तरह फैल गया.
हालांकि, द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मामले के एक जांच अधिकारी ने 'लव जिहाद' से कोई लेना-देना होने से इनकार किया है. अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, "लड़की इन लोगों को नहीं जानती थी ... कोई लव जिहाद एंगल नहीं है."
इसके बाद जल्द ही, क्षेत्र में तनाव फैल गया. 29 मई को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा पुरोला में एक बड़ी रैली निकाली गई, जिसमें मुसलमानों को शहर छोड़ने की मांग की गई.
"हमें किसी ने नहीं कहा कि बाहर मत जाओ...हम वापस नहीं आएंगे"
जब द क्विंट ने जाहिद से बात की, तो वो उत्तराखंड के विकास नगर में किराए की दुकान ढूंढ रहे थे. उनका साला अपनी दुकान साफ कर रहा था, और उनका भतीजा, जिसका मोबाइल रिपेयरिंग सेंटर था, उसने भी एक दिन पहले ऐसा ही किया था.
जाहिद ने अपना घर और दुकान एक हिंदू निवासी से किराए पर लिया था. मकान मालिक ने दो हफ्ते पहले तनाव बढ़ने पर घर और दुकान खाली करने के लिए कहा था.
यह पूछे जाने पर कि क्या स्थिति शांत होने पर वह पुरोला लौटेंगे, जाहिद ने जवाब दिया, "नहीं, मैं वापस नहीं आऊंगा. वे हमसे रंजिश रखते हैं."
जाहिद की पत्नी गुलशाना रोते हुए कहती हैं कि, " देहरादून में हमारा मकान है हमने अपनी दुकान भी वहां ले ली है, यहां से जाने का कारण तो सबको पता ही है, माहौल की वजह से यहां से जा रहे हैं."
जाहिद ने दावा किया कि 5 जून को पड़ोस के गांव से प्रकाश जबराल नाम का शख्स आया और उसने उनके बेटे और रिश्तेदारों को धमकाया.
जाहिद ने कहा जबराल ने उनके बेटे के सामने कहा था, 'इनकी दुकानें जला दो', जिससे वह डर गया.
जाहिद ने तब एक पुलिस अधिकारी और व्यापार मंडल के अध्यक्ष बृजमोहन चौहान को फोन किया. जाहिद ने कहा, "जब हम दुकान से बाहर निकल रहे थे तब वे हमारी रक्षा के लिए आए और वहीं खड़े हो गए."
जाहिद ने कथित तौर पर एसएचओ का नंबर डायल किया, जिसका कोई जवाब नहीं आया.
35 साल से यहां रह रहे जाहिद ने कहा, "किसी ने मुझे एक बार भी नहीं कहा कि मैं यहां से नहीं जाऊं या चीजें बेहतर होंगी... वे ईद पर मेरे घर आते थे और हम होली और दिवाली पर उनके घर जाते थे."
हालांकि, जाहिद के इस दावे का उत्तराखंड बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के साथ-साथ स्थानीय पुलिस ने भी खंडन किया है.
'लोग खुद छोड़ कर चले गए, किसी का दबाव नहीं': बीजेपी राज्य अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ अध्यक्ष
जाहिद एक पसमांदा मुस्लिम जाति से ताल्लुक रखते हैं और उनके बयानों ने इस वर्ग को लुभाने की बीजेपी की कोशिशों पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
उत्तराखंड बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष इंतजार हुसैन ने पुष्टि की कि जाहिद ने शहर छोड़ दिया, लेकिन उनकी दुर्दशा के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई.
उन्होंने कहा, "उन्हें स्थिति में सुधार के लिए एक या दो महीने इंतजार करना चाहिए था.. अगर लोगों ने छोड़ दिया है तो उन्होंने अपने दम पर ऐसा किया है, समाज में किसी का कोई दबाव नहीं है."
हुसैन ने अपनी पार्टी की बात रखते हुए कहा कि, "हमारी पार्टी कभी भी किसी समुदाय का दमन नहीं करेगी."
'डर का माहौल है, दुकानदार ने कहा दुकान खाली कर दो'- सलीम
उत्तरकाशी में कपड़ों की दुकान चला रहे सलीम कहते हैं कि,
"यहां डर का माहौल है. दुकान मालिक ने भी दबाव बनाया है कि भाई दुकान 15 तारीख से पहले खाली कर दो. इसलिए क्या करते हम, हमें जाना पड़ रहा है जबकि हमारा मकान यहीं पर है, मेरा बचपन भी यहीं का है. कोई मेरा साथ नहीं दे रहा है इसलिए मुझे यहां से जाना पड़ रहा है, हालांकि हमें अब यहां किसी ने डराया धमकाया नहीं है, हमारे पास पुलिस सुरक्षा है."
सलीम बताते हैं कि वह डर की वजह से अपने बच्चों को देहरादून छोड़ आये हैं, उनका कहना है कि उन्हें अपनी दुकान छोड़ने का दुःख है क्योंकि 18 साल से वह यहां काम रहे थे, उन्हें बैंक के लोन भी देने हैं.
पुलिस कह रही, कस्बे से मुस्लिम परिवारों का पलायन नहीं हुआ
पुरोला थाने के एसएचओ खजान सिंह के मुताबिक, कस्बे से मुस्लिम परिवारों का पलायन नहीं हुआ है.
"यह सच नहीं है. केवल एक या दो दुकानदार जो आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, छोड़ गए हैं."
पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने कहा कि उन्होंने मीडिया रिपोर्टों में पढ़ा था कि कई मुस्लिम परिवार शहर छोड़कर भाग गए थे, "हमने समुदायों के साथ कई फ्लैग मार्च और शांति बैठकें की हैं."
आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार एडीजी लॉ एंड ऑर्डर वी.मुरुगेसन ने बताया कि, डीजीपी अशोक कुमार ने सभी पुलिस अधीक्षकों के साथ कानून व्यवस्था को लेकर एक बैठक की है. खासतौर पर पुरोला और उत्तराकाशी की स्थिति को लेकर. बैठक में आईजी रेंज के अधिकारी भी मौजूद थे. उस बैठक में सभी पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया गया कि उन्हें किसी भी कीमत पर कानून व्यवस्था बनाए रखनी है. जो भी कानून को अपने हाथों में लेगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
15 जून की महापंचायत से पहले मुस्लिम परिवारों को अल्टीमेटम
मुस्लिम दुकानों पर लगे पोस्टरों पर 15 जून की महापंचायत की धमकी के अलावा अन्य अल्टीमेटम भी जारी किए गए हैं.
5 जून को टिहरी गढ़वाल जिला प्रशासन को संबोधित एक पत्र में, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने कहा कि स्थानीय लोगों ने उत्तराखंड के कई उल्लिखित बेल्टों से छोड़ने के लिए 10 दिनों का समय दिया था. विहिप ने अपने पत्र में लिखा है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे हिंदू युवा वाहिनी और ट्रेडर्स यूनियन ऑफ टिहरी गढ़वाल के साथ मिलकर 20 जून को विरोध स्वरूप हाईवे जाम कर देंगे.
पत्र में दावा किया गया है कि उक्त समुदाय के सदस्य उत्तराखंड की महिलाओं, धर्म, संसाधनों और संस्कृति को खतरे में डालने के लिए कूड़ा बीनने, फल और आइसक्रीम विक्रेता के रूप में घूमते हैं.
महापंचायत की अनुमति नहीं
पुरोला में तनाव को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने 15 जून को होने वाली महापंचायत के आयोजनकतार्ओं को अनुमति नहीं दी है. विश्व हिंदू परिषद और प्रधान संगठन की ओर से अनुमति मांगी गई थी. इसके अलावा पुरोला में धारा 144 लागू करने की तैयारी की जा रही है. आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस अधीक्षक ने शांति व्यवस्था व कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक कंपनी पीएसी भी मांगी है.
मुस्लिम जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधिमंडल ने की सीएम से मुलाकात
पुरोला मामले में मुस्लिम जनप्रतिनिधियों का प्रतिनिधिमंडल सोमवार, 12 जून की शाम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिला. उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स, लक्सर विधायक हाजी मौ. शहजाद, राज्य हज समिति के अध्यक्ष खतीब अहमद, वक्फ बोर्ड के सदस्य मोहम्मद अनीस, सदस्य इकबाल अहमद, राज्य हज समिति सदस्य नफीस अहमद ने मांग की कि पहाड़ में माहौल खराब कर रहे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.
उन्होंने सीएम को बताया कि पीढ़ियों से राज्य में रह रहे लोगों को कुछ असामाजिक तत्व प्रताड़ित कर रहे हैं.
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