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जब ऋषि दा को फाल्के अवॉर्ड की बधाई देने उनके घर पहुंचे थे अमिताभ 

साल 1999 का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला था ऋषिकेश मुखर्जी को

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साल 2018 का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला है अमिताभ बच्चन को. अमिताभ को जानने वाले तमाम लोग ये जरूर कहते हैं कि वो सिर्फ एक शानदार कलाकार ही नहीं बेजोड़ शख्सियत भी हैं. समय के पक्के, इंसानियत से भरे... इस मौके पर अमिताभ की इसी शख्सियत के इस पहलू से जुड़ा एक वाकया मुझे याद जा रहा है, जिसका मैं खुद गवाह रहा.

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इस वाकये को सुनने के लिए यहां क्लिक करें-

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वक्त: साल 2000 के सितंबर महीने का पहला हफ्ता

जगह: मुंबई

साल 1999 के दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की घोषणा हुई और हमारी फिल्म इंडस्ट्री का ये सबसे इज्जतदार पुरस्कार मिला ऋषिकेश मुखर्जी को. जिंदगी कैसी है पहेली हाय (आनंद).. आए तुम याद मुझे (गुड्डी).. अब के सजन सावन में (चुपके-चुपके) जैसे मिसरी घुले गानों का कोलाज कानों में तैरने लगा.

उन दिनों मैं मुंबई में सहारा न्यूज चैनल का रिपोर्टर था- अकेला रिपोर्टर. जबकि आज तक, एनडीटीवी या फिर ज़ी टीवी जैसे 24 घंटे के चैनलों के 6-7 रिपोर्टर तो कम से कम थे ही. महाराष्ट्र विधानसभा से सुबह का एक असाइनमेंट निपटाते-निपटाते करीब 3 बज चुके थे. सहारा के गोरेगांव दफ्तर से मैं निकला वर्ली सी-फेस यानी ऋषिकेश दा के घर की तरफ. साथ में कैमरामैन था सुभाष (नाम पक्के तौर पर याद नहीं लेकिन चेहरा अब भी याद है). जब हम वहां पहुंचे तो दोपहर बाद का आलस सन्नाटे की शक्ल में पसरा था.

खैर साहब.. सहमते सकुचाते हम दोनों ऋषि दा की बिल्डिंग में घुसे. लिफ्ट के चौकीदार ने सशंकित सी निगाह हम पर डाली. पूछने पर पता चला कि तमाम चैनल सुबह ही दादा का इंटरव्यू लेकर जा चुके. मैं हताश हो गया. दरअसल, मुंबई आए मुझे 2-3 महीने ही हुए थे और दूसरे चैनलों के रिपोर्टरों से गुटबंदी के लेवल का याराना अब तक नहीं हुआ था. वैसे भी सहारा उस वक्त 24 घंटे का चैनल नहीं था, सो हमारी जरूरतें और प्राथमिकताएं भी दूसरों से अलग थीं.

साल 1999 का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला था ऋषिकेश मुखर्जी को
ऋषिकेश मुखर्जी
(फोटो: ट्विटर/Gana.com)
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मुझे लगा कि ‘बेटा, आज ये असाइनमेंट मिस होगा’, लेकिन कोशिश तो करनी ही थी. मैं अपने कैमरामैन के साथ लिफ्ट से ऊपर गया और झिझकते हाथों से ऋषि दा के फ्लैट की घंटी बजा दी. एक लड़की ने दरवाजा खोला (जो शायद उनकी नातिन थी). उन्होंने कहा- दादा आराम कर रहे हैं’. वो सुबह से इंटरव्यू दे-दे कर थक गए हैं. आप कल आइएगा.कल नाम का शब्द न्यूज के धंधे में होता ही नहीं. आज की खबर भला कल कौन लेगा. मैने गुहार लगाई. मुंबई में अपने नए होने का हवाला दिया तो पसीजे दिल से उस लड़की ने मेरा नंबर रख लिया.

मैं उतने भर से मुतमइन नहीं हुआ था. नीचे आकर मैंने चौकीदार से दोस्ती गांठने की तरकीब शुरू की. उनका हालचाल, नाम, ठिकाना वगैरह पूछना शुरू किया. उनकी बीड़ी से अपनी सिगरेट की अदला-बदली की और साथ-साथ दोनों ने धुआं उड़ाया.

चलते-चलते मैंने चौकीदार साहब को एक पर्ची पर लिखकर अपना मोबाइल नंबर दिया और दरख्वास्त की कि अगर कोई और ऋषि दा का इंटरव्यू लेने आए तो कृपया मुझे इत्तला कर देना.

पता नहीं कौन सी उम्मीद दिल में जिंदा थी सो मैंने कैमरामैन सुभाष से कहा कि कुछ देर वर्ली में ही टहलते हैं. करीब डेढ़ घंटे के बाद मेरे फोन की घंटी घनघनाई. मैंने फुर्ती से कॉल रिसीव की तो दूसरी तरफ चौकीदार साहब थे. उन्होंने कहा कि एक पुलिस पीसीआर बिल्डिंग के नीचे आई है सो लगता है कि कोई वीआईपी दादा से मिलने आने वाला है.

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साल 1999 का दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला था ऋषिकेश मुखर्जी को
‘नमक हराम’ की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना के साथ ऋषिकेशमुखर्जी
(फोटो: ट्विटर/Indianhistorypics)

हम बिजली की सी तेजी से वर्ली सी-फेस की उस बिल्डिंग पर जा पहुंचे और लिफ्ट पर जाकर खड़े हो गए. 2-3 मिनट के बाद तेजी से चलता हुआ एक शख्स बिल्डिंग में दाखिल हुआ. वो शख्स था सदी का नायक- अमिताभ बच्चन. मेरे हाथ-पैर फूल गए, लेकिन पता नहीं किस सुरूर में उनके साथ ही लिफ्ट में घुस गया. लिफ्ट के अंदर मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान हुआ. कैमरा देखकर अमिताभ शायद सोच रहे थे कि हमें हृषि दा के इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है सो उन्होंने कोई हैरानी नहीं जताई.

दरवाजा दादा की नातिन ने ही खोला. अमिताभ के साथ हम भी अंदर घुस गए. नातिन शायद सोच रही थी कि हम अमिताभ के साथ आए हैं. इस गफलत का नतीजा ये था कि मैं ग्रेट ऋषिकेश दा के ड्राइंग रूम में बिना बुलाए मौजूद था और सामने बैठी थीं सिनेमा जगत की दो महान हस्तियां.

दादा, बहुत-बहुत मुबारक’- गले लगते हुए अमिताभ ने कहा.

शुक्रिया.. जया कैसी है?’- ऋषि दा ने पूछा

अच्छी है’- अमिताभ बोले

अभिषेक की फिल्म कैसी चल रही है?’- दादा ने पूछा (अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म रिफ्यूजी करीब डेढ़ महीना पहले ही रिलीज हुई थी)

अच्छी चल रही है दादा, धीरे-धीरे सीखेगा’- मुस्कुराते हुए अमिताभ ने कहा.

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मैं मंत्रमुग्ध होकर ये बातचीत सुन रहा था. इसके बाद क्या बातें हुईं मुझे याद नहीं, क्योंकि मेरे जहन में ‘आनंद’, ‘अभिमान’, ‘चुपके चुपके’, ‘गोलमाल’, ‘बेमिसाल’ जैसी फिल्मों के सीन एक्वेरियम की मछलियों की तरह तैर रहे थे.

जी साहब, कहां से हैं आप?’- अचानक अमिताभ साहब की भारी-भरकम आवाज मेरे कानों में पड़ी.

ज..जी.. मैं सहारा चैनल से हूं’- मैने घबराते हुए जवाब दिया.

दादा का इंटरव्यू करना है आपको?

जी हां..

तो कीजिए.

मैंने फौरन कैमरामैन से हरकत में आने को कहा. ऋषिकेश मुखर्जी खिड़की के सामने बैठे थे. बैकग्राउंड में उफनता समंदर था. मैंने माइक लिया तो बोले- ‘अरे, अगेंस्ट लाइट शॉट लेगा. चेहरा काला आएगा.

इसके बाद वो खुद ही उठकर किताबों के एक रैक के सामने गए. मैं मन ही मन मुस्कुराया कि ‘बेटा, उसके सामने कैमरा लगा रहे हो जो कैमरे को चलना सिखाता है.’

इसके बाद मैंने अमिताभ बच्चन से भी दादा साहेब अवॉर्ड पर बधाई ‘बाइट’ ली. वहां से निकला तो मैं सातवें आसमान पर था. एक रिपोर्टर को मिली स्टोरी से ज्यादा एक फिल्मी दीवाने की दो महान हस्तियों से मुलाकत का नशा मुझ पर सवार था.

खैर.. मुंबई की लोकल ट्रेन की ही तरह अगले दिन से जिंदगी फिर अपने रूटीन कामकाज की पटरियों पर दौड़ने लगी,. लेकिन अब जबकि खुद अमिताभ बच्चन को दादा साहेब अवॉर्ड की घोषणा हुई है तो लग रहा है कि एक बार फिर मुंबई जाकर जुहू इलाके में पहुंच जाऊं और ‘जलसा’ के सामने खड़ा होकर चौकीदार से दोस्ती गांठूं. पता नहीं इस बार किस हस्ती से मुलाकात हो जाए.

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