दुपहिया वाहन पर सवार होकर मुझे लगता है कि मैं खुले आसमान में उड़ता पंछी हूं. मैंने पहली गीयर्ड बाइक 1994 में चलाई थी, जब में 10वीं में पढ़ती थी. वो बाइक मेरे भाई की थी.
कॉलेज में मुझे एक स्कूटी दे दी गई थी, पर मेरा दिल हमेशा बाइक पर ही था. काम की वजह से मुझे ग्रामीण इलाकों में जाना होता था, खास तौर पर ओडिशा के गांवों में, और यह काम बाइक पर ही हो सकता था.
मैं एक सेकेंड हैंड यामाहा आरएक्स चलाती थी, जिसे मेरे पति ने मुझे उपहार में दिया था. पर पिछले कुछ दिनों से मैं एक नई बाइक खरीदने का मन बना रही थी.
आखिर मुझे एक मॉडल पसंद आ गया और मैंने उसे खरीदने का मन बना लिया. मैं और मेरे देवर उसे खरीदने के लिए कटक गए.
शोरूम पर जाकर हमने सेल्स/सपोर्ट डेस्क को कहा कि हमें बाइक को टेस्ट ड्राइव करना है. उन्होंने गाड़ी को तैयार करने तक हमें इंतजार करने को कहा. कुछ देर बाद उन्होंने हमें वर्कशॉप एरिया में बुलाया. जब मैंने बाइक पर बैठकर चाबी मांगी, तो उन्होंने मुझे पूछा, “मैडम, आप चलाएंगी इसे?” मेरे हां कहते ही सेल्स पर्सन के साथ-साथ वर्कशॉप में काम करते लोग भी वहां से गायब हो गए.
मैं मामले का पता लगाने के लिए डेस्क पर गई, तो उनकी प्रतिक्रिया सुनकर हैरान थी.
सॉरी मैडम, हम औरतों को बाइक नहीं दे सकते. आप चाहें तो स्कूटी चला लें और आपके साथ आए व्यक्ति बाइक चलाकर देख सकते हैं.
मैंने इसका विरोध किया और पूछा कि क्या उनके यहां कोई लिखित नियम है कि वे औरतों को गाड़ी चलाने नहीं दे सकते. तो उन्होंने कहा,
नहीं मैडम, ऐसा कोई नियम तो नहीं, पर हमें यकीन नहीं कि आप इस बाइक को चला सकेंगी. क्या आप हमें अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखा सकती हैं?
मैंने उन्हें अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया, पर तब भी उन्हें तसल्ली नहीं हुई. सेल्स पर्सन ने मुझे पूछा, “आपकी लंबाई क्या है?”
मैंने इस सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं समझी. मैंने कहा, “मुझे आप लोगों का व्यवहार पसंद नहीं आया, मैं कहीं और से बाइक खरीद लूंगी.”
मैं वहां से बाहर निकलने को ही थी कि एक सेल्स पर्सन मेरे पीछे आया और माफी मांगते हुए बोला, “इससे पहले बाइक खरीदने हमारे यहां कोई महिला ग्राहक नहीं आई, इसीलिए यह परेशानी हुई. आप आकर टेस्ट ड्राइव ले सकती हैं.”
यहां तक कि जब मैंने टेस्ट ड्राइव ली, तब भी आदमी और औरतें मुझे ऐसे देख रहे थे, जैसे मैं कोई सर्कस का अजूबा हूं. और मैं सोच रही थी, “क्या हमारे देश में औरतों का बाइक चलाना इतनी बड़ी बात है? क्या वाकई वक्त बदला है?”
(सुदत्ता खुंटिया भुवनेश्वर में बाल अधिकार व शिक्षा कार्यकर्ता हैं.)
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