केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में अपने गढ़ मिदनापुर में बीजेपी में शामिल होते हुए तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बागी सुवेंदु अधिकारी ने कहा था, "टोलाबाज भाईपो (भ्रष्ट भतीजे) को हटाओ." TMC से कई नेता बीजेपी में चले गए हैं लेकिन अधिकारी का जाना सबसे बड़ी बात है. सुवेंदु अधिकारी और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के बीच के मतभेद सार्वजानिक हो चुके हैं.
TMC छोड़कर जाने वाले नेताओं में एक बात कॉमन ये रही है कि अधिकतर अभिषेक के खिलाफ थे. कई नेताओं ने कहा कि 'अब पार्टी दीदी नहीं चलाती हैं.' बीजेपी भी अपने कैंपेन में TMC में नंबर 2 अभिषेक बनर्जी पर निशाना साध रही है. बीजेपी लगातार कह रही बंगाल में भी भाई-भतीजावाद की राजनीति चलती है.
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने रह गए हैं और अब ज्यादा से ज्यादा स्पॉटलाइट ज्यादातर मौन रहने वाले 'युवराज' अभिषेक बनर्जी पर है.
एक 'शरारती' छात्र जिसे क्रिकेट पसंद था
33 साल के अभिषेक अपनी बुआ ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर की छत्रछाया में पले-बढ़े हैं. TMC कवर करने वाले वेटरन पत्रकार याद करते हैं कि जब वो ममता के कालीघाट स्थित घर जाते थे तो 9-10 साल का अभिषेक क्रिकेट खेलते मिल जाता था.
एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "अभिषेक हमसे पूछता कि क्या हम उसके साथ कुछ बॉल खेलेंगे."
शहर के नाव नालंदा स्कूल में पढ़े अभिषेक के एक टीचर बताते हैं कि वो अच्छा छात्र होने के लिए नहीं जाने जाते थे, लेकिन उन्हें बाहर मजा आता था.
बनर्जी ने स्कूल के बाद दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग एंड मैनेजमेंट (IIPM) से BBA और MBA की डिग्री ली. ये इंस्टीट्यूट बाद में अपनी फ्रॉड हरकतों की वजह से विवादों में आया.
ममता के भाई अमित और उनकी पत्नी लता के बेटे अभिषेक को मुख्यमंत्री के सबसे खास लोगों में से एक माना जाता है. अभिषेक का छात्र राजनीति का इतिहास नहीं रहा है.
2014 से ममता के उस वक्त के विश्वासपात्र मुकुल रॉय के कहने पर अभिषेक को पार्टी के पावर सेंटर्स में लाया गया. उसके बाद से ही रॉय की TMC से दुरी शुरू हो गई थी और अब बीजेपी में हैं. कहते हैं कि रॉय को अभिषेक ने ही साइडलाइन किया था.
राजनीति में एंट्री
उस समय तृणमूल यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष सुवेंदु अधिकारी को काबू में रखने के लिए ममता ने तृणमूल युवा नाम का संगठन बनाया और अभिषेक को उसका इंचार्ज बना दिया. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट कहती है कि अभिषेक ने संगठन को एक कॉर्पोरेट संस्थान की तरह चलाया और मेंबरशिप में 28 करोड़ बनाए.
2014 में सोमेन मित्रा के इस्तीफे के बाद खाली हुई डायमंड हार्बर संसदीय सीट पर पार्टी ने अभिषेक को चुनाव लड़ाया. बनर्जी चुनाव जीत गए और 26 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के सांसद बने.
उसी साल सुवेंदु अधिकारी की जगह अभिषेक को तृणमूल यूथ विंग का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद अभिषेक का प्रभाव पार्टी में मौजूदा हद तक बढ़ गया, जहां वो रिसोर्स मैनेजमेंट, डेलीगेशन और चुनाव के काम के लिए जिम्मेदार हैं.
कोलकाता के प्रिंस
अभिषेक का लाइफस्टाइल और व्यक्तित्व शुरुआत से ममता से अलग रहा है. ममता जहां कम से कम संसाधनों के इस्तेमाल के लिए जानी जाती हैं. वहीं, अभिषेक साउथ कोलकाता के बड़े घर में रहते हैं, कमांडो से घिरे रहते हैं और चमचमाती SUV में चलते हैं.
वो हर साल डायमंड हार्बर में एक बड़ा स्पोर्ट्स टूर्नामेंट कराते हैं, जिसकी लागत कथित रूप से 15-20 करोड़ पड़ती है.
ममता बनर्जी 2012 में अभिषेक की दिल्ली में हुई शादी में शामिल नहीं हुई थीं. अभिषेक की शादी काफी बड़े स्तर पर हुई थी. हालांक, कहा जाता है कि ममता अभिषेक की दोनों बेटियों से काफी करीब हैं.
अभिषेक का पार्टी में कद जैसे-जैसे बढ़ा है, वैसे-वैसे पार्टी के खिलाफ उगाही, भ्रष्टाचार और अवैध बिजनेस के आरोप भी लगते गए. कुछ आरोप अभिषेक पर भी लगे हैं.
हालांकि, इन सबके बीच वो ममता बनर्जी से भी ज्यादा पहुंच से दूर रहे.
इस प्रक्रिया में अभिषेक ने TMC में उन नेताओं के पर काटे, जिनकी महत्वाकांक्षाएं 'पार्टी से ज्यादा' हो रही थीं. इसमें मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी और सौमित्र खान जैसे नेता शामिल हैं.
इस सबकी वजह से पार्टी के वरिष्ठ नेता भी खफा बताए जाते हैं, जो मानते हैं कि अभिषेक राजनीतिक उठापटक से नहीं गुजरे हैं और उन्हें पावर थमा दी गई है.
2019 लोकसभा चुनाव में अभिषेक को TMC के कैंपेन के आयोजन की जिम्मेदारी मिली थी. हालांकि, वो अपनी सीट बचा ले गए थे लेकिन पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं था.
इस बड़े नुकसान से उबरते हुए अभिषेक के कहने पर ही ममता ने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए बुलाया.
प्रशांत किशोर और पार्टी में खटपट
किशोर और उनकी कंपनी I-PAC ने जल्दी ही पार्टी और राज्य सरकार के अंदर सभी संगठन और ऑपरेशनल नियंत्रण ले लिया. इस वजह से अभिषेक के शब्द आखिरी बन गए. किशोर और उनकी टीम ने 'मास सर्वे' के आधार पर वेटरन डिस्ट्रिक्ट स्तर के नेताओं को साइडलाइन कर दिया. इन्हें बागी या भ्रष्ट रूप में देखा गया.
चुनावों के नजदीक आने पर पार्टी ने जिलों में ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद वरिष्ठ नेताओं को हटाया और हर जिले में एक अलग पार्टी कमेटी बनाई गई. इन कमेटियों को एक केंद्रीय कमेटी देख रही थी और इनका नियंत्रण अभिषेक के पास था.
सालों से अभिषेक ने खुद को जनता से सीधी बातचीत से दूर रखा है. एक काबिल मैनेजर के तौर पर उनकी प्रतिष्ठा बढ़ रही है, लेकिन अभी भी उन्हें ममता की तरह जनता का नेता के रूप में खुद को स्थापित करना बाकी है.
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