संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत होने को पाकिस्तान अपनी जीत बता रहा है. पाकिस्तान का कहना है कि भारत इसे अंदरूनी मामला बताता है लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर बातचीत होना भारत की हार है. लेकिन क्या इस दावे में दम है? क्या वाकई कश्मीर पर भारत की स्थिति में कोई बदलाव आया है?
मीटिंग का होना ही इस बात का सबूत है कि कश्मीर मामला एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है. इस मीटिंग से जम्मू और कश्मीर पर सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को वैधता मिली है. यह पहला कदम है लेकिन आखिरी नहीं. बात तब तक नहीं रुकेगी जब तक न्याय नहीं हो जाता.मलीहा लोधी, यूएन में पाकिस्तानी एंबेसडर
इस बारे में यूएन में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन से भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल पूछे गए. एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार ने पूछा कि अब जब कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर UN में बातचीत हो रही है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि कश्मीर सिर्फ द्विपक्षीय मामला है.
मैम आप सिक्योरिटी काउंसिल कवर करती है. आप जानती हैं इस मीटिंग मे कोई भी पार्टी मामला उठा सकती है. लेकिन इस मीटिंग का कोई नतीजा नहीं हुआ. मैं और कुछ नहीं कहना चाहता. हम बस इतना कह रहे हैं कि जिन देशों के संबंध सामान्य होते हैं, वो जिस तरीके से बातचीत करते हैं, वैसे ही हम भी तैयार हैं. हमारे केस में शिमला समझौते के तहत हम प्रतिबद्ध हैं. अब यह पाकिस्तान पर निर्भर है कि वो आतंकवाद रोके और बातचीत शुरू करे.सैयद अकबरुद्दीन, यूएन में भारतीय प्रतिनिधि
क्यों जीत का पाकिस्तानी दावा झूठा?
पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर औपचारिक बातचीत चाहता था. लेकिन सुरक्षा परिषद में देशों का साथ न मिलने के कारण ऐसा नहीं हो पाया. आखिर में चीन बंद दरवाजों के पीछे होने वाली मीटिंग का प्रस्ताव लाया. कोई भी स्थायी सदस्य ऐसा कर सकता है. लेकिन ऐसी मीटिंग का न तो ब्योरा पब्लिक किया जाता है, न ही इनकी रिकॉर्डिंग होती है.
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चार ने भारत को समर्थन दिया. रूस ने तो मीटिंग के बाद खुलकर कहा कि कश्मीर केवल द्विपक्षीय मामला है.
इकनॉमिक टाइम्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि अमेरिका ने कश्मीर को भारत का आतंरिक मामला बताया. वहीं फ्रांस के भी चीन से मामले पर विचार को लेकर मतभेद रहे. चीन जहां बातचीत को पूरी तरह कश्मीर आधारित करना चाहता था. वहीं फ्रांस इसे निचले दर्जे पर 'अन्य मामले' में रखना चाहता था.
मीटिंग के बाद भारत के खिलाफ ज्वाइंट स्टेटमेंट भी जारी नहीं किया गया. इसके लिए 5 में से 3 स्थायी सदस्यों की रजामंदी जरूरी होती है. यह भारत के पक्ष में बनी स्थिति का सबसे पुख्ता प्रमाण है.
यहां तक चीन ने भी मीटिंग के बाद दिए स्टेटमेंट में खुलकर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया. चीन ने दोनों देशों से शांति की अपील करते हुए कहा, 'भारत और पाकिस्तान में किसी को भी एकतरफा कदम नहीं उठाना चाहिए.' मतलब साफ है कि चीन ने एक हद से ज्यादा न तो भारत से बैर लिया, न पाकिस्तान से दोस्ती निभाई.
पाकिस्तान के झूठ के 9 सबूत
- स्थायी सदस्य के तौर पर चीन ने बैठक बुलाई थी, उसे इसका हक है. लेकिन बैठक क्लोजडोर (अनौपचारिक) थी, इसलिए कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाएगा.
- पाकिस्तान की औपचारिक बैठक की मांग ठुकरा दी गई
- पाक विदेश मंत्री महमूद कुरैशी की चिट्ठी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया
- बैठक में हिस्सा लेना चाहता था पाकिस्तान मगर इजाजत नहीं मिली
- कश्मीर पर सुरक्षा परिषद की बैठक एक घंटे चली. सुरक्षा परिषद के ज्यादातर सदस्यों ने भारत का साथ दिया.
- बैठक के बाद कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं गया, जबकि चीन बैठक के बाद आधिकारिक बयान चाहता था
- बैठक के बाद पाकिस्तान और चीन के राजदूतों ने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया
- ज्यादातर देशों ने कश्मीर को भारत-पाकिस्तान के बीच का मामला बताया
- अमेरिका, फ्रांस, रूस गुयाना, अफ्रीकी देशों, डोमिनिक रिपब्लिक ने भारत का साथ दिया
बैठक से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से कश्मीर मुद्दे को लेकर फोन पर बातचीत की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने इमरान खान से कहा कि वह भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत के जरिए कश्मीर मुद्दे को सुलझाएं.
बैठक के बाद व्हाइट हाउस के उप प्रेस सचिव होगान गिडले ने एक बयान में कहा, ‘‘राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जम्मू-कश्मीर में हालात के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता के जरिए तनाव कम करने पर जोर दिया.’’
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