भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते में शामिल ना होने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर को बैंकॉक RCEP समिट के दौरान अपने संबोधन में इस फैसले के बारे में बताया.
RCEP, एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) के 10 देशों और (अब भारत को छोड़कर) उनके 5 फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) भागीदारों चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच एक प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता है.
ASEAN के 10 देशों और 6 बाकी देशों ने नवंबर, 2012 में नोम पेह में 21वीं ASEAN समिट के दौरान RCEP वार्ताओं की शुरुआत की थी. इसके पीछे का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी समझौता करना था.
अब जब भारत ने RCEP समझौते में शामिल होने से इनकार किया है तो सवाल उठता है कि भारत के इस फैसले के पीछे की वजहें क्या हैं? चलिए, कुछ वजहों पर नजर दौड़ाकर इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं
आयात शुल्क बढ़ोतरी के खिलाफ 'अपर्याप्त' संरक्षण
भारत जिन वजहों से RECP समझौते से दूर हुआ है, उनमें से एक बड़ा कारण आयात पर शुल्क बढ़ाने के खिलाफ 'अपर्याप्त' संरक्षण था. इसके अलावा भारत को बाजार में ज्यादा पहुंच की अपनी मांग पर कोई ठोस भरोसा नहीं मिला था, ना ही नॉन-टैरिफ बैरियर्स पर उसकी चिंताएं दूर हुईं.
दरअसल भारत अपने उत्पादों के लिए बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था. वह अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिए कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाए हुए था.
पीएम मोदी ने 4 नवंबर को RCEP को लेकर कहा,
‘‘RCEP करार का मौजूदा स्वरूप पूरी तरह इसकी मूल भावना और इसके मार्गदर्शी सिद्धान्तों को परिलक्षित नहीं करता है. इसमें भारत द्वारा उठाए गए बाकी मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक समाधान नहीं किया जा सका है. ऐसे में भारत के लिए RCEP समझौते में शामिल होना संभव नहीं है.’’पीएम नरेंद्र मोदी
कृषि और उद्योग से जुड़े संगठनों का विरोध
भारत में कृषि, उद्योग, डेयरी फार्म्स से जुड़े कई संगठन RCEP समझौते का विरोध कर रहे थे. इस विरोध के पीछे आशंकाएं थीं कि भारत के RCEP समझौते पर सहमत होने के बाद चीन से यहां मैन्युफैक्चर्ड गुड्स और न्यूजीलैंड से डेयरी प्रोडक्ट्स की डंपिंग होगी, जिससे घरेलू हितों को नुकसान पहुंचेगा. उद्योग जगत की आशंका थी कि इस समझौते से ‘मेक इन इंडिया’ को भी झटका लगेगा.
राजनीतिक विरोध
भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस हाल ही में RECP समझौते के खिलाफ खुलकर सामने आ गई.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2 नवंबर को कहा था कि सरकार पहले से ही बुरी स्थिति का सामना कर रही भारतीय इकनॉमी को RCEP के जरिए बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी में है.
उन्होंने कहा था कि हमारे किसानों, दुकानदारों, छोटी और मझली इकाइयों के लिए इसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे.
व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका
RCEP समझौते के मौजूदा स्वरूप में चीन समेत कई देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की आशंकाएं काफी ज्यादा थीं. देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका थी कि भारत अगर इस समझौते पर हस्ताक्षर करता तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाती. ऐसे में निर्यात की तुलना में ज्यादा आयात से व्यापार घाटा और बढ़ जाता.
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