ADVERTISEMENTREMOVE AD

तमाम ऐलान के बाद भी पेट्रोल की कीमत क्यों कम नहीं कर पा रही सरकार?

जेटली समेत कई नेताओं ने कई तरह के बचत और कमाई के ऐलान कर दिए,लेकिन उनसे पेट्रोल-डीजल की कीमतें क्यों कम नहीं हो रही?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बारे में बहुत कुछ पढ़-सुन लिया होगा आपने. इसी के साथ आप लगातार आधार से 90 हजार करोड़ के फायदे, इनकम टैक्स रिटर्न से करीब 30 हजार करोड़ की कमाई और दूसरी सरकारी कमाई और बचत की खबरों को भी सुन रहे होंगे.

ऐसे में क्या आपके जेहन में ये सवाल नहीं उठता कि केंद्र सरकार को इतनी ही बचत और कमाई हो रही है, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने के लिए सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती क्यों नहीं कर रही? हर बार फिस्‍कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा गड़बड़ाने की बात क्यों कही जाने लगती है? आइए जरा पेट्रोल-डीजल की कीमतों और सरकारी बचत के इस समीकरण को विस्तार से समझते हैं-

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ये लिस्ट जो आप देख रहे हैं, वो दिल्ली में 24 सितंबर, 2018 के पेट्रोल प्राइस का ब्योरा है. आपको मालूम होगा कि कच्चे तेल की इंटरनेशल कीमतों से ही देश में पेट्रोल की कीमत तय की जाती है.

  • 24 सितंबर को 1 बैरल कच्चे तेल की इंटरनेशनल कीमत थी 87.94 डॉलर. 1 बैरल में 158.98 लीटर कच्चा तेल होता है.
  • इस हिसाब से 158.98 लीटर कच्चे तेल की कीमत हुई 6353.52 रुपये (24 सितंबर को 1 डॉलर= 72.24 रुपये)
  • यानी एक लीटर कच्चे तेल की कीमत हुई 39.96 रुपये
  • डीलर के पास जब ये पहुंचा, तो एक लीटर पेट्रोल की कीमत हुई - 41.99 रुपये
  • इस पर केंद्र सरकार ने 19.48 रुपये की एक्साइट ड्यूटी लगाई. राज्य सरकार ने 17.59 रुपये का वैट लगाया. 3.66 रुपये का डीलर कमीशन हुआ.
  • इस तरह एक लीटर पेट्रोल की कीमत आप तक पहुंचते-पहुंचते हो गई 82.72 रुपये.
अब ऐसे में साफ है कि आप एक लीटर पेट्रोल जब लेते हैं, तो करीब-करीब दोगुना तो सिर्फ एक्साइज ड्यूटी और वैट ही दे देते हैं. वहीं आपके तकरीबन सभी पड़ोसी देशों की सरकार आपसे कम कीमत पर अपनी जनता को पेट्रोल मुहैया करा रही है.

बचत का ऐलान, फिर कीमतों में कटौती क्यों नहीं?

अब जरा 26 सितंबर का अरुण जेटली का बयान जानिए, जब 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसला सुनाया, उसी वक्त देश के वित्तमंत्री ने ऐलान किया कि हमने, यानी सरकार ने आधार के सही इस्तेमाल से सालाना 90 हजार करोड़ की बचत की है.

वहीं 31 अगस्त को आए आंकड़ों के बाद कहा गया कि इस साल इनकम टैक्स रिटर्न भरने वालों की संख्या 71 फीसदी बढ़ी है. अब ये आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि टैक्स बेस में बड़ा इजाफा हुआ है और इससे सरकारी खजाने की हालत भी मजबूत हुई होगी.

आपको पता होगा कि पहले इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिर तारीख 31 जुलाई थी. 31 जुलाई तक के रिटर्न भरने वालों के आंकड़ों पर एसबीआई की रिपोर्ट में 30 हजार करोड़ के अतिरिक्त फायदे का अनुमान लगाया गया था.

ऐसे में आधार से बचत, इनकम टैक्स रिटर्न से फायदे होने के बावजूद डीजल-पेट्रोल की मार झेल रहे लोगों को राहत क्यों नहीं दी जा रही है? अब खर्चे का भी अनुमान जोड़ लेते हैं. सरकारी अनुमान ही बताते हैं कि अगर मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी में 1 रुपये की कटौती करती है, तो उस पर 13 हजार करोड़ का बोझ आएगा.

इस हिसाब से 10 रुपये की कटौती कर देती है, तो बोझ आएगा 1 लाख, 30 हजार करोड़. और ये बोझ तो महज आधार की बचत और इनकम टैक्स रिटर्न की अतिरिक्त कमाई से ही निकाला जा सकता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×