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येदियुरप्पा के साथ बार बार ऐसा क्यों होता है? CM पद फिर निकल गया

येदियुरप्पा को मलाल रह गया, कुर्सी में बैठ भी नहीं पाए और चली गई

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ढाई दिन में ही बी एस येदियुरप्पा को फिर मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा. लेकिन उनके साथ ही हमेशा ऐसी ट्रैजेडी क्यों होती है? वो तीन बार मुख्यमंत्री बने पर एक बार भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. बार बार किस्मत उनसे रूठ जाती है और मुख्यमंत्री की गद्दी से उन्हें जाना पड़ता है.

कर्नाटक के लिंगायत नेता येद्दी चार साल से मुख्यमंत्री की गद्दी पर नजर जमाए बैठे थे, पर 2018 में बहुमत मिला नहीं. खींचतान करने की बहुत कोशिश की पर टूट गए और संख्या नहीं जुटा पाए. इमोशनल भाषण दिया, विपक्ष को अवसरवादी ठहराया पूरा जोर लगाया पर बात नहीं बन पाई.

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येदियुरप्पा को बार बार देना पड़ता है इस्तीफा

1. पहली बार 7 दिन

साल 2004 में धरम सिंह की कांग्रेस-जेडीएस सरकार से जब जेडीएस ने समर्थन वापस लिया तो बीजेपी-जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी. कुमारस्वामी और येदियुरप्पा को 20-20 महीने मुख्यमंत्री बनाने के वादे के साथ गठबंधन हुआ. लेकिन कुमारस्वामी ने अपने कार्यकाल के 20 महीने खत्म होने के बाद येदियुरप्पा के लिए समर्थन देने से मना कर दिया और येदियुरप्पा सिर्फ 7 दिन मुख्यमंत्री रह पाए.

2. दूसरी बार मई 2008

इस बार येदियुरप्पा ने दूसरी बार थोड़ा लंबे वक्त के लिए सरकार संभाली, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. मई 2008 में बीजेपी सत्ता में आई और वो मुख्यमंत्री बने. लेकिन तीन साल में ही जुलाई 2011 में अवैध खनन में भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

भ्रष्टाचार के घेरे में रहने वाले येदियुरप्पा

बीजेपी के अंदर उनके जितने दोस्त हैं करीब करीब उतने ही दुश्मन होंगे. उनका स्टाइल बेहद आक्रामक है. पार्टी के अंदर ही उनके सहयोगी कहते हैं कि वो तानाशाह की तरह व्यवहार करते हैं.

येदियुरप्पा जैसे ही 2008 में मुख्यमंत्री बने तो कुछ वक्त बाद ही उनपर पद का दुरुपयोग करके अपने बेटों को बंगलुरू में जमीन अलॉट करने का आरोप लगा. वो ये आरोप झेल ही रहे थे कि कर्नाटक लोकायुक्त ने उन्हें अवैध खनन मामले में दोषी ठहरा दिया. आखिरकार 31 जुलाई 2011 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा

कुर्सी जाती है तो बिफर जाते हैं?

येदियुरप्पा को जब भी कुर्सी छोड़नी पड़ती है तो वो गुस्सा हो जाते हैं. 2011 में बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने को मजबूर किया तो उन्होंने पार्टी से नाता तोड़कर अपनी अलग पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) बना लिया.

साल 2013 में केजेपी और बीजेपी की बुरी तरह हार हुई. लेकिन जनवरी 2014 में केजेपी का बीजेपी में विलय हो गया. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक की 28 सीटों में से 19 में जीत हासिल की और तब से येदियुरप्पा ने मन में पाल लिया कि वो 2018 में मुख्यमंत्री बनेंगे.

अक्टूबर 2016 में उन्हें और उनके परिवार को सीबीआई अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया, फिर क्या था वो पूरे जोर शोर से सीएम की कुर्सी पाने के लिए जुट गए.

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तीसरी बार ढाई दिन नहीं झेल पाए

येदियुरप्पा को उम्मीद थी कि बीजेपी को बहुमत मिलेगा और वो इस बार कार्यकाल पूरा करेंगे. 17 मई को सरकार बनाने के बाद उन्हें पहले बहुमत साबित करने के लिए उन्हें 15 दिन का वक्त मिला था, पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे घटाकर सिर्फ 24 घंटे कर दिया और ये वक्त उन्हें कम पड़ गया. वो मंत्रिमंडल भी नहीं बना पाए और कुर्सी चली गई.

येदियुरप्पा ने सरकारी बाबू के तौर पर जीवन की शुरुआत की थी. फिर हार्डवेयर की दुकान खोली. फिर राजनीति में आए तो चढ़ते चले गए. पर लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री बनने का योग नहीं बन पाया उनके लिए. तीसरी बार किस्मत धोखा दे गई.

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