ADVERTISEMENTREMOVE AD

मलियाना दंगा: 36 साल बाद फैसला,39 आरोपी बरी,सुनवाई के दौरान 40 आरोपियों की मौत

Meerut riot: पीड़ितों की मानें तो उन्होंने इन साढ़े 3 दशक में अपनों के खोने का दर्द तिल तिल कर महसूस किया है.

Published
न्यूज
4 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

Meerut Riots 1987: 23 मई 1987 को हुए मेरठ के मलियाना सांप्रदायिक दंगों में सभी 39 आरोपियों को बरी कर दिया गया है. 36 साल तक इस मामले की सुनवाई करने वाली अदालत को आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिले. दंगे के एक साल बाद इस मामले में 79 आरोपियों के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी. मलियाना दंगों के पीड़ितों का कहना है कि वह इस मामले में अब ऊपरी कोर्ट में अपील दाखिल करेंगे. बता दें कि शनिवार को मेरठ के एडिशनल जुडिशल मजिस्ट्रेट-6 लखविंदर सिंह सूद की अदालत ने यह फैसला सुनाया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

साढ़े 3 दशक बाद आया फैसला

36 साल तक चली इस सुनवाई के दौरान केस के 40 आरोपियों की मौत हो गई. वहीं कई पीड़ितों की भी मौत हो गई. अब जब दंगों का फैसला आया है तो पीड़ितों को निराशा हाथ लगी है. पीड़ितों की मानें तो उन्होंने इन साढ़े 3 दशक में अपनों के खोने का दर्द तिल तिल कर महसूस किया है. लेकिन उन्हें अदालत से जो उम्मीद थी उसके मुताबिक इंसाफ नहीं मिल सका, अब वह ऊपरी अदालत में अपनी फरियाद रखेंगे.

अधिवक्ता सचिन मोहन ने फैसले की पुष्टि करते हुए बताया कि अदालत का लिखित आदेश मंगलवार तक आयेगा. केस में 40 आरोपियों को कोर्ट ने बरी किया है. 22 से 23 आरोपियों की मौत हो चुकी है. इसकी रिपोर्ट फाइल पर है. बाकी आरोपी फिलहाल अदालत से फरार है. पुलिस इतने लंबे वक्त में उन्हें तलाश नहीं कर पाई है और उनके खिलाफ अलग से मुकदमा चलेगा.
0

क्या है पूरा मामला?

आरोप था कि हाशिमपुरा दंगे के अगले दिन मलियाना में दंगाइयों ने पुलिस और पीएसी के साथ मिलकर 63 लोगों की हत्या कर दी थी और 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. बता दें, 23 मई 1987 को मलियाना के होली चौक पर सांप्रदायिक दंगा भड़का था. दंगे के केस के वादी याकूब अली ने अदालत को बताया कि पुलिस और पीएसी ने गोलियां चलाई और इस वारदात को अंजाम दिया था.

अप्रैल 1987 में शबे बरात के दिन मेरठ में सांप्रदायिक दंगों का दौर शुरू हुआ जो दो-तीन महीनों तक रुक-रुक कर चलता रहा, इस दौरान कई बार कर्फ्यू भी लगाकर स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश की गई थी.

घटनाक्रम के मुताबिक 23 मई 1987 की दोपहर करीब 2:30 बजे पीएसी की 44 वीं बटालियन के कमांडेंट और मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का जत्था भारी पुलिस बल के साथ मलियाना पहुंचा और वहां पहले से चल रहे दंगे को कंट्रोल करने के नाम पर गोलियां चलाई गई. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी बाद में दंगा पीड़ितों से मिलने पहुंचे थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुएं से बरामद किए गए शव

24 मई 1987 को मेरठ के जिलाधिकारी ने 12 लोगों का मारा जाना स्वीकार किया. जून 1987 के पहले सप्ताह में आधिकारिक रूप से 15 लोगों की हत्या स्वीकार की गई. इनमें कई शव कुएं से बरामद किए गए थे. 27 मई 1987 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मलियाना दंगा मामले में न्यायिक जांच की घोषणा की थी.

न्यायिक जांच के दौरान मलियाना में पीएसी की निरंतर तैनाती रही, जिसके चलते गवाहों की पूछताछ और गवाही ठीक से नहीं हो सकी. आरोप था कि पुलिस और पीएसी गवाहों को धमका रहे हैं.

इस केस में आरोपियों के वकील छोटे लाल बंसल ने कहा- किस सत्य की जीत हुई है, हाशिमपुरा नरसंहार से पहले दंगाइयों ने पीएसी के ऊपर बम फोड़े थे, जिससे पुलिस और पीएसी नाराज थी, इसी क्रम में हाशिमपुरा के लोगों को पीएसी ने निशाना बनाया था. इसी तरह मलियाना में जब दंगा हुआ तो पीएसी और पुलिस ने बजाए दंगाइयों के बेकसूर हिंदुओं को इस पूरे मामले में फंसा दिया, जबकि वहां लूट करने वाले दंगाई थे.

लाल बंसल ने आगे कहा कि पुलिस और पीएसी उनके साथ थी. उन्होंने घरों में गोलियां चलाई, लूट की और लोगों को मार डाला. पुलिस ने जानबूझकर बेकसूरों को फंसा कर इस मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम का रूप दिया. यह बात केस के वादी याकूब ने 2022 में अदालत में हुई जिरह में भी स्वीकार की है. हम शुरू से यह बात कह रहे थे, इस केस को पुलिस ने हिंदू बनाम मुस्लिम बनाया, जबकि यह संघर्ष पुलिस और मुस्लिमों के बीच था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

1 साल में पूरी हुई दंगों की जांच

जनवरी 1988 में पीएसी हटाए जाने के बाद जस्टिस जी एल श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग की रिपोर्ट 31 जुलाई 1989 को पेश की गई, लेकिन इसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. मलियाना दंगों की जांच मेरठ पुलिस ने करीब 1 साल में पूरी की और 23 जुलाई 1988 को इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई थी.

केस के वादी याकूब अली बताते हैं कि 23 मई को पुलिस और पीएसी ने एक-एक घर में घुसकर लोगों को गोलियां मारनी शुरू की. दूसरे समुदाय के लोग लूटपाट मचाते हुए घरों में आगजनी कर रहे थे. चारों तरफ मौत का मंजर था, कई जिंदा बच्चों को भी आग में झोंक दिया गया. इस पूरी अराजकता के दौरान 106 मकान आग की भेंट चढ़ गए. सैकड़ों परिवारों पर भुखमरी की आफत आई और उनके पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं बचे थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
हिंसा के बाद कई परिवार मेरठ से दूसरे शहरों में चले गए जो आज तक शहर में लौटकर नहीं आए. पुलिस ने अपनी विवेचना में 61 गवाहों के बयानों का हवाला दिया था. लेकिन अदालत में केवल 14 गवाहों की गवाही ही हो पाई. करीब 36 साल की सुनवाई के दौरान 420 महीनों में इस केस में 800 से ज्यादा बार अदालत ने सुनवाई की तारीख दी थी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

हाशिमपुरा में भी हुए थे दंगे

मलियाना दंगों के ठीक एक दिन पहले शहर के हाशिमपुरा में भी सांप्रदायिक दंगे हुए थे. दंगों के दौरान हाशिमपुरा में पीएसी पहुंची और मुस्लिम घरों से 42 लोगों को खींच कर अपने साथ ले गई. इन लोगों को गाजियाबाद में नहर के किनारे पीएसी की गाड़ी से उतारकर गोलियां चलाकर मार डाला गया.गाजियाबाद एसएसपी की रिपोर्ट के बाद इस मामले में केस दर्ज हुआ था और बाद में मुकदमा चला. 2018 में इस मामले में अदालत का फैसला आया जिसमें 16 पीएसी के जवानों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×