प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने सोमवार, 11 जुलाई को नई दिल्ली में नए संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ (Ashok ) का अनावरण किया, पीतल का बना ये विशाल अशोक स्तंभ साढ़े 6 मीटर ऊंचा है और इसका वजन साढ़े 9 हजार किलो है. लेकिन अनावरण के बाद यह विवाद का कारण बन गया. कई विपक्षी नेताओं ने उद्घाटन की आलोचना की और कई तरह की चिंताओं को व्यक्त किया है.
AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जोर देकर कहा कि सरकार के मुखिया को संसद के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण की भूमिका नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि लोकसभा का अध्यक्ष संसद का प्रतिनिधित्व करता है.
उन्होंने ट्वीट किया कि, संविधान - संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है. सरकार के प्रमुख के रूप में @PMOIndia को नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था. लोकसभा का अध्यक्ष सदन का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीनस्थ नहीं हैं. @PMOIndia ने सभी संवैधानिक नियमों का उल्लंघन किया है.
CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह "हमारे संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है." उन्होंने ट्वीट किया कि, "प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करना हमारे संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है. संविधान स्पष्ट रूप से हमारे लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को अलग करता है - कार्यपालिका (सरकार), विधायिका (संसद और राज्य विधानसभाएं) और न्यायपालिका."
कई कांग्रेसी नेताओं ने भी इस अनावरण की आलोचना की, कुछ ने प्रतीक में उकेरे गए शेरों की अभिव्यक्ति की भी आलोचना की है. राज्यसभा सांसद और एआईसीसी के प्रवक्ता जयराम रमेश ने ट्वीट किया- सारनाथ के अशोक स्तंभ में बने सिंहों के कैरेक्टर यानी चरित्र और प्रकृति दोनों को पूरी तरह से बदल दिया गया है. उन्होंने कहा कि ये साफ तौर पर राष्ट्रीय चिह्न का अपमान है!
कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर ने भी ट्वीट किया, "75 साल से भारत का राज्य चिन्ह एक ही रहा है लेकिन अचानक कुछ संघी के पास दूसरा चिन्ह है.. क्या आप असली और नकली में अंतर ढूंढ सकते हैं?" उधर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी ट्वीट कर चिंता जताई है.
टीएमसी के राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने भी नई संसद के ऊपर बने इस अशोक स्तंभ पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने भी कहा कि ये हमारे राष्ट्रीय चिह्न का अपमान है. जवाहर ने आरोप लगाए कि सारनाथ के अशोक चिह्न में बने सिंह सुंदर, वास्तविक और आत्मविश्वासी हैं. जबकि 'मोदी जी के' अशोक स्तंभ में बने सिंहों में झुंझलाहट, अनावश्यक रूप से आक्रामकता दिखती है और उनमें अनुपात नहीं है.
बिहार की RJD ने भी ट्वीट किया- मूल कृति के चेहरे पर सौम्यता का भाव तथा अमृत काल में बनी मूल कृति की नकल के चेहरे पर इंसान, पुरखों और देश का सबकुछ निगल जाने की आदमखोर प्रवृति का भाव मौजूद है. हर प्रतीक चिन्ह इंसान की आंतरिक सोच को प्रदर्शित करता है. इंसान प्रतीकों से आमजन को दर्शाता है कि उसकी फितरत क्या है.
अशोक स्तंभ को सही तरीके से कॉपी किया गया है- पूर्व ASI ADG
हालांकि, पूर्व एडीजी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), बीआर मणि ने कहा कि 1905 में मिला अशोक स्तंभ को संसद भवन के शीर्ष पर स्थापित करने के लिए बिल्कुल सही तरीके से कॉपी किया गया है.
उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "विपक्षी नेताओं के दावों को निराधार या निरर्थक नहीं कहेंगे, लेकिन इस पर राजनीतिक टिप्पणी करना सही नहीं है." मूल स्तंभ 7-8 फीट है जबकि यह लगभग 21 फीट है, उन्होंने बताया कि यह अंतर परिप्रेक्ष्य को बदल देता है.
उन्होंने कहा, "जमीन से देखा जाए तो इसका एंगल अलग दिखता है लेकिन सामने से देखने पर साफ होता है कि इसे कॉपी करने का अच्छा प्रयास किया गया है."
कुछ अन्य का मत था कि राष्ट्रीय प्रतीक के उद्घाटन के लिए हिंदू संस्कार नहीं किए जाने चाहिए थे, क्योंकि भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है.
बता दें कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 11 जुलाई को नई दिल्ली में नए संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया. इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी मौजूद थे.
राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करने के बाद प्रधानमंत्री ने एक पूजा की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस इमारत पर सरकार को करीब 1,250 करोड़ रुपये खर्च करने की उम्मीद है, जो शुरुआती बजट खर्च 977 करोड़ रुपये से 29 फीसदी ज्यादा है.
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