बीजेपी को योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में ही करारी हार का सामना करना पड़ा. यह बीजेपी के साथ योगी आदित्यनाथ के लिए भी बड़ा झटका है. आइए जानते हैं वे 8 वजहें, जिनसे बीजेपी को इस अहम उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा-
एसपी-बीएसपी का गठबंधन
बीएसपी का साथ मिलना गोरखपुर में एसपी की जीत की वजह बना. बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ती. लेकिन बीजेपी की आक्रामकता को देखते हुए मायावती ने पुराने विवादों को भूल कर समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया. ये तालमेल बीजेपी पर भारी पड़ा.
बीजेपी का उम्मीदवार तय करने में देरी
बीजेपी ने यहां उम्मीदवार तय करने में काफी देरी की. पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानंद से लेकर एक्टर रवि किशन के नाम पर माथापच्ची होती रही. आखिर में उपेंद्र नाथ शुक्ला का नाम तय हुआ. जबकि उपेंद्र नाथ शुक्ला और योगी के रिश्ते कभी अच्छे नहीं रहे. शुक्ला को टिकट मिलते ही योगी समर्थकों में निराशा छा गई.
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निषाद फैक्टर से हमेशा मुश्किल
जब भी यहां निषाद उम्मीदवार खड़ा हुआ है. बीजेपी को मुश्किल हुई है. 1998 में और 1999 में योगी आदित्यनाथ यहां कड़े मुकाबले में महज 26000 और 7000 वोटों से जीते थे. दोनों बार, उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी के जमुना निषाद मैदान में थे.
दलित,यादव, मुस्लिम वोटर साथ-साथ
गोरखपुर में निषाद समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर हैं. लगभग साढ़े तीन लाख. यादव और दलित वोटर दो-दो लाख हैं. ब्राह्रण वोटर सिर्फ 1.5 लाख वोटर हैं. कहा जा रहा था कि साढ़े तीन लाख निषाद वोट और दो-दो लाख दलित और यादव वोटरों की गोलबंदी बीजेपी पर भारी पड़ी.
ब्राह्मण-ठाकुर टकराव
गोरखपुर में ब्राह्मण और ठाकुरों के बीच प्रतिस्पर्धा का लंबा इतिहास रहा. इस क्षेत्र में बीजेपी के भीतर ठाकुरों और राजपूत लॉबी के टकराव ने भी बीजेपी का नुकसान किया.
एसपी का हाथ इनके साथ
2014 में चुनावों की हार के बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी को सिर्फ यादवों की पार्टी की छवि से बाहर निकालने की कोशिश शुरू कर दी. निषाद पार्टी, पीस पार्टी और और हाशिये के दूसरे समुदायों की पार्टी से एसपी का तालमेल गोरखपुर में बीजेपी के खिलाफ गया.
पिछड़े बीजेपी से खफा
लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने निषाद समुदाय को तवज्जो नहीं दी. इससे निषादों ने डॉ. संजय N I S H A D की पार्टी यानी निर्बल इंडियन शोषित हमारा दल- निषाद को इस बार खुल कर समर्थन दिया. गोरखपुर में पिछड़े वोटरों के बीच इस बात को लेकर गुस्सा था कि उनकी अच्छी खासी संख्या होने के बाद उन्हें ही राजनीतिक मुठभेड़ और पुलिस एक्शन का निशाना बनाया जाता है. इन समुदायों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ी.
एसपी की नई रणनीति
समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से टक्कर लेने के लिए विकास के बदले सोशल इंजीनियरिंग का नारा बुलंद किया और इसी रणनीति पर काम किया. अखिलेश यह अच्छी तरह जानते हैं कि एसपी-बीएसपी को पुरानी कड़वाहट से बाहर निकलना होगा और दलितों को साथ जोड़ना होगा.
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