ADVERTISEMENTREMOVE AD

AAP को चेता गया 2017, अपने हुए बागी, तो कभी चुनावों में मिली मात

8 राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को देखते हुये AAP ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ कर्नाटक पर नजर रखी है

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

बदलाव की राजनीति का सपना देखकर और दिखाकर राजनीति में उतरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2017 अच्छा साबित नहीं हुआ. संगठन में विस्तार के लिहाज से भी इस साल को पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं कहा जा सकता है.

हालांकि उतार चढ़ावों के बावजूद महज 5 साल में दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना और एक दूसरे राज्य पंजाब और दिल्ली के स्थानीय निकाय में मुख्य विपक्ष बन जाना, किसी भी कम 'उम्र' की राजनीतिक पार्टी के लिए उपलब्धि से कम नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2015 में दिल्ली जीता था, करिश्मा जारी नहीं रहा

साल 2015 में जिस हैरतअंगेज चुनाव परिणाम के साथ दिल्ली की सत्ता पर AAP काबिज हुयी, उसे देखकर तो यही लगा कि चुटकी बजाते ही सब कुछ बदल देने की धुन में रमे नौजवानों की यs टोली पूरे देश में बड़े राजनीतिक बदलाव की बहार लाएगी. लेकिन इस साल के शुरू में हुये दिल्ली नगर निगम चुनाव और फिर पंजाब, गोवा के विधानसभा चुनाव में AAP को उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिलना, पार्टी की मिशन विस्तार योजना के लिये स्पीड ब्रेकर साबित हुआ.

कई पुराने साथियों का मोहभंग हुआ

AAP के कई पुराने सहयोगियों का इस साल पार्टी पार्टी से मोहभंग हुआ. प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और प्रो. आनंद कुमार को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा, असीम अहमग, जितेंद्र तोमर और अब कुमार विश्वास सरीखे नेताओं के पार्टी में रहकर ही उभर रहे बगावती असंतोष को नजरंदाज नहीं किया जा सकता.

केजरीवाल ने चुप्पी का लिया सहरा

पंजाब और गोवा की जनता से वादों और दावों के जाल में नहीं फंसने का दो टूक जवाब मिलने के बाद साल 2017 से पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के दूसरे नेताओं ने जुबां काबू में रखने की नसीहत ली.

जीवन के पहले दो चुनाव लड़कर दोनों बार मुख्यमंत्री बनने और अपनी पार्टी को सत्तासीन करने का रिकॉर्ड बनाने वाले AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिये भविष्य में पार्टी का स्ट्राइकिंग रेट बरकरार रख पाने की चुनौती गुजरते समय के साथ गंभीर होती जा रही है. गुजरात विधानसभा चुनाव में आप को मिली करारी शिकस्त और कांग्रेस के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन का असर दिल्ली समेत दूसरे राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ना तय है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

8 राज्यों के विधानसभा चुनाव पर नजर

लाभ के पद के मामले में फंसे आप के 21 विधायकों की विधानसभा सदस्यता पर चुनाव आयोग में लटकी तलवार पार्टी के लिये इस साल की दूसरी बड़ी परेशानी बनी. इसका फैसला अगले साल के शुरू में ही आने की उम्मीद है.

अगले साल 8 राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को देखते हुये आप ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक पर नजर रखी है. इन राज्यों में AAP अपना संगठन मजबूत करने में लगी है. जबकि पंजाब में बने जनाधार को दरकने से बचाने के लिये केजरीवाल ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को राज्य इकाई का प्रभारी बनाकर नुकसान रोकने की कवायद की है.

वहीं पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रभारी गोपाल राय छत्तीसगढ़ में, रत्नेश गुप्ता मध्य प्रदेश में, केजरीवाल के पूर्व राजनीतिक सलाहकार आशीष तलवार कर्नाटक में और फिलहाल नाराज चल रहे कुमार विश्वास राजस्थान में AAP के लिये चुनावी जमीन तैयार करने में जुटे हैं.

केजरीवाल खुद 2019 के लोकसभा चुनाव की कमान संभाल रहे हैं. साल 2018 के लिए केजरीवाल की पहली आसन्न चुनौती राज्यसभा की दिल्ली की तीन सीटों के लिये माकूल चेहरों का चुनाव करना है. इसके लिये मंथन के दौर से गुजर रहे आप नेतृत्व पर सभी की नजरें टिकी हैं कि पार्टी किन चेहरों को संसद के उच्च सदन के लिए चुनती है.

(इनपुट: भाषा)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×