गुजरात में किसी तरह जीत तो मिल गई, पर आगे के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली को किसानों और ग्रामीण इलाकों में नाराजगी दूर करने की मजबूत काट निकालनी ही होगी. राजनीति के जानकारों और खुद बीजेपी के अंदर गुजरात के नतीजों से मिले संदेश को लेकर फिक्र है.
गुजरात के नतीजों में एक बात एकदम साफ है कि शहरी सीटों की वजह से राज्य में सत्ता बच गई, वरना ग्रामीण इलाकों की नाराजगी ने तो खतरा ही खड़ा कर दिया था. जाहिर है ऐसे में सरकार के पास वक्त कम है और विकल्प भी ज्यादा नहीं है. इसके लिए सबसे बड़ा मौका इस साल फरवरी का बजट ही है.
2018 में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव के पहले मोदी सरकार का ये आखिरी बजट है, जाहिर है वो इस मौके का पूरा इस्तेमाल करना चाहेगी.
तो इसमें क्या होगा? यकीन मानिए किसानों और ग्रामीण इलाकों के लिए तोहफों की बारिश करने की पूरी कोशिश की जाएगी. लेकिन मोदी सरकार के पास कितनी गुंजाइश है?
2018 में पूरा फोकस खेती किसानी और गांव ही होंगे. किसानों को एमएसपी, गांवों में रोजगार दिलाने के लिए ज्यादा रकम खर्च किया जाना तय है.
ग्रामीण इलाकों में नाराजगी
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा. इसकी सबसे बड़ी वजह थी कपास और मूंगफली के किसानों की नाराजगी. एक तो उनकी शिकायत थी कि एक तो एमएसपी पर्याप्त नहीं है और दूसरा जितनी है राज्य सरकारें वो भी नहीं दे रही हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम के तरीके को जानने वाले लोगों का कहना है गुजरात के हालात से सबक लेकर फरवरी में में बजट का फोकस गांवों और किसानों पर होना तय है.
गुजरात में किसानों को नोटबंदी और फसलों के सही दाम न मिलने की दोहरी मार पड़ी थी. जैसे राज्य के किसानों को मूंगफली और कपास के सही दाम नहीं मिले थे. यहां तक कि दाम एमएसपी (सरकारी खरीद कीमत) से नीचे चले गए थे. नवंबर में मूंगफली की सरकारी खरीद का दाम 4450 रुपये क्विंटल था, लेकिन उसे 3800 रुपये से ज्यादा के दाम नहीं मिल रहे थे. इसी तरह कपास की सरकारी खरीद 4320 रुपये क्विंटल थी पर उसे इतने दाम देने को कोई तैयार नहीं था.
इन दोनों बातों ने किसानों और ग्रामीण इलाकों में सरकार के खिलाफ बहुत गुस्सा भर दिया.
अगले साल 8 राज्यों में चुनाव
मोदी सरकार के लिए 2019 के फाइनल एग्जाम से पहले 2018 में बड़ा टेस्ट होने वाला है. अगले साल दो चरणों में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं. पहले चरण में अप्रैल मई में कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड और फिर अक्टूबर नवंबर में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में तो बीजेपी की ही सरकार है. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार है जिसे पाने की कोशिश में बीजेपी ने पूरा जोर लगा रखा है.
बीजेपी के लिए मुश्किल बात ये है कि गुजरात की तरह इन इलाकों में शहरी सीटें कम हैं और ग्रामीण सीटें ज्यादा हैं. इसलिए नरेंद्र मोदी गुजरात जैसा जोखिम नहीं उठा सकते.
मॉनसून फेल होने से कम हुई पैदावार
अक्टूबर में मध्यप्रदेश, राजस्थान के चुनाव बेहद अहम हैं. खासतौर पर मध्यप्रदेश में किसानों को बेहद असंतोष है. इस साल मंदसौर जिले में पुलिस गोली बारी में कई किसानों की मौत हो गई थी. जिससे पूरे राज्य के किसानों में असंतोष है. राजस्थान में भी यही हालत है. जहां मॉनसून की कमी, सूखा और ज्यादा लागत से किसानों की कमाई घट गई है.
वास्तविक मोदी सरकार के तीन साल में कृषि की ग्रोथ दो परसेंट के आसपास ही रही है. जबकि यूपीए के कार्यकाल में कृषि सेक्टर 3.5 परसेंट की रफ्तार से बढ़ा था. हालांकि ये भी सच है कि एनडीए सरकार के वक्त लगातार दो साल सूखा भी पड़ा.
सरकार ने इस दौरान एमएसपी बढ़ाई गई लेकिन लागत के हिसाब से ये पर्याप्त नहीं थी. अब सरकार को किसानों के गुस्से से बचने के लिए जरूरी है उनको फसल और मेहनत का सही दाम मिले.
नरेंद्र मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे, लेकिन किसानों को अभी तक उसका असर देखने को नहीं मिला है.
सरकार सबसे पहले क्या कर सकती है?
जानकारों के मुताबिक मौसम में बदलाव की वजह से फसलों को नुकसान का मुआवजा तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए दिया जा सकता है. लेकिन कीमतों में गिरावट जैसे हालात से निपटने के लिए लंबी अवधि की योजना बनानी जरूरी है.
एमएसपी में जोरदार बढ़ोतरी मुमकिन
जानकारों के मुताबिक सरकार पहले तो एमएसपी में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी करे. इसके अलावा ये भी सुनिश्चित करे के सभी राज्य किसानों की फसल खरीदें और वक्त पर पैसा दें
कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने वादा किया है कि सरकार किसानों के कल्याण के लिए योजनाओं का अमल तय करेगी और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कोशिश दोगुनी करेगी. लेकिन सरकार के पास वक्त भी कम है और मौका भी सिर्फ एक बजट है. इस साल फरवरी का बजट अंतिम पूर्ण बजट होगा.
आय के दूसरे तरीकों के लिए मदद
सरकार किसानों की आय को दूसरे तरीकों के लिए कई योजना ला सकती है. जैसे कृषि से जुड़े उद्योग मसलन डेयरी डेवलपमेंट, मधुमख्खी पालन, कोल्ड चेन और फूड प्रोसेसिंग से जुड़ी इंडस्ट्री लाने के लिए विशेष पैकेज
मनरेगा में भारी आवंटन
बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने के लिए बजट में मनरेगा जैसी योजनाओं पर बड़े पैमाने पर पैसा दिए जाने के पूरे आसार हैं. दूसरी रोजगार गारंटी स्कीम में पैसा बढ़ाया जाएगा
सरकार की चादर छोटी है
इन तमाम योजनाओं में अमल के लिए अरबों रुपये की जरूरत है. सरकार खर्चों की फिक्र न करे तब भी अनाप शनाप खर्चों की गुंजाइश बहुत ज्यादा नहीं है, ऐसे में संतुलन बनाना कठिन होगा. ये ठीक वैसा ही है चादर छोटी है, अगर पैर ढकेंगे तो सिर बाहर निकलेगा और सिर ढकेंगे तो पैर.
2017-18 की पहली छमाही के जीडीपी आंकड़ों के मुताबिक एग्री ग्रोथ में कमी आई है. नोटबंदी की वजह से कमजोर इनकम वाले किसानों पर कर्ज बढ़ा है.
अगले चुनाव की चुनौतियां बहुत हैं. छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश में चौथी बार सरकार की तैयारी है. जबकि कर्नाटक में कांग्रेस से सत्ता छीनने की कोशिश करेगी बीजेपी.
इंडस्ट्री संगठन एसोचैम के मुताबिक 2018 से ही चुनाव साल का साल शुरू हो जाएगा इसलिए अब बड़े आर्थिक सुधारों की उम्मीद बहुत कम है. अब बीजेपी का फोकस ग्रामीण इलाकों और किसानों पर होगा. कठोर फैसलों के दिन फिलहाल गए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)