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Azam Khan के रामपुर के 'आज़म' बनने की कहानी

आजम खान ने रामपुर के नवाब परिवार की सियासत को कैसे खत्म कर दिया?

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वो नेता जिसके पास शब्दों को तंज में पिरोने का ऐसा हुनर है कि उसके चाहने वाले सुनकर वाह-वाह करने लगते हैं, और जो उसके निशाने पर होता है वो बिलबिला उठता है. वो नेता जो आपातकाल में जेल गया और बाहर आया तो एक नई पहचान और एक लंबा राजनीतिक सफर इंतजार कर रहा था. वो नेता जिसने नवाबों को पटखनी देकर रामपुर को अपने नाम का पर्याय बना लिया. जिसके बारे में उसके समर्थक नारा लगाते हैं कि “मार्क्सवादी, ना समाजवादी, रामपुर में आजमवादी” 10 बार विधायक रह चुके आजम खान की अब विधायकी चली गई है. हेट स्पीच के एक केस में इन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई है

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साल 1948 में जन्मे आजम खान (Azam Khan) ने सत्तर के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से कानून की पढ़ाई की और यहीं के छात्रसंघ चुनाव में राजनीति का ककहरा सीखा. आजम खान के रामपुर (Rampur) की राजनीति के आजम बनने की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे. उसी समय आपातकाल लगा और उन्हें भी जेल भेज दिया गया. आपातकाल के दौरान प्रताड़ना केवल आजम खान को ही नहीं मिली, बल्कि उनके परिवार को भी झेलनी पड़ी थी. उनके इंजीनियर भाई शरीफ खां पर तो नौकरी तक छोड़ने का दबाव डाला गया था.

आपातकाल के बाद जेल से छूटने पर आजम खान का कद तो बढ़ गया, लेकिन माली हालत खस्ता ही रही. उनके पिता मुमताज खान शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग सेंटर चलाते थे. आजम जेल से आते ही विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन कांग्रेस के मंजूर अली खान से हार गए. आजम खान ने ये बता दिया था कि रामपुर में वो नवाब परिवार के लिए चुनौती बनकर खड़े हो गए हैं.  

रामपुर को नवाबों का शहर कहा जाता है. रामपुर की सियासत पर नवाब रजा अली खान के परिवार का दशकों तक दबदबा रहा. साल 1980 में इन्हीं नवाबों के साए में आजम खान ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीतकर रामपुर में अपनी राजनीतिक सरगर्मियां शुरु की थी. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. रामपुर शहर पर आज उनकी छाप ऐसी है कि लोगों की जबान और जगह-जगह लगे शिलान्यास के पत्थरों पर उनका ही नाम नजर आता है.

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रामपुर के नवाब परिवार से जुड़े और मंत्री रह चुके नवेद मियां ने बीबीसी से बताया था कि “आजम खान का राजनीतिक करियर रामपुर शहर सीट से शुरू हुआ. मेरे वालिद इन्हें हमेशा से नजरअंदाज करते थे. ये नवाबों के खिलाफ तकरीरें करते थे, लेकिन हमने इन्हें हमेशा अनदेखा ही किया. उस दौर में इन्हें दीवाना कहा जाता था क्योंकि ये पागलपन की ही बातें करती थे."

लेकिन इसी नवाब परिवार ने एक बार उनकी जान भी बचाई. एक किस्सा सुनाते हुए नवेद मियां कहते हैं कि "आजम खान आज जिंदा भी हमारे वालिद की वजह से ही हैं. एक चुनाव में किले के पोलिंग बूथों पर आजम खान ने लोगों से बदतमीजी की थी. चाकू लिए लोगों ने उन्हें घेर लिया था. मेरे वालिद, लोगों और आजम के बीच में आ गए और आजम को एक कमरे में बंद करके लोगों से कहा कि अगर इसे छुओगे तो पहले मुझसे होकर गुजरना होगा. हालांकि, वे हमारे खानदान के साथ कभी भी खड़े नहीं रहे. उस समय लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे तो हमारे वालिद लोगों से कह देते थे कि छोटा वोट दीवाने को दे देना."

आजम खान ने रामपुर में पैदा हुए आजादी के आंदोलन के नेता मोहम्मद अली जौहर के नाम का इस्तेमाल अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने में खूब किया. वो रामपुर के लोगों से कहते रहे कि नवाब परिवार ने अलीगढ़ आंदोलन के नेता और खिलाफत आंदोलन से जुड़े रहे मौलाना अली जौहर से धोखा किया और अंग्रेजों का साथ दिया. उन्होंने मौलाना जौहर के नाम पर जौहर ट्रस्ट स्थापित किया और इसी के तहत रामपुर में 78 हेक्टेयर भूमि पर मौलाना जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी. जौहर ट्रस्ट के सात सदस्यों में से पांच उनके अपने परिवार के लोग थे. ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोग भी या तो आजम खान के रिश्तेदार थे या बेहद करीबी और आजम खान आजीवन यूनिवर्सिटी के चांसलर. अब इसी जौहर यूनिर्सिटी की जमीन को लेकर विवाद चल रहा है और मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

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आजम खान को रामपुर का आजम बनाने में मुलायम सिंह की भी बड़ी भूमिका रही. आजम खान और मुलायम सिंह यादव की दोस्ती और वाफादारी का जिक्र लखनऊ के सियासी गलियारों में खूब होता है. मुलायम सिंह और आजम के रिश्तों की मजबूत डोर साल 1989 से शुरू होती है, जब मुलायम सिंह यादव ने अपने मंत्री मंडल में आजम खान को शामिल किया था. इसके बाद जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तब भी आजम खान पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक थे.

साल 2009 में मुलायम और आजम के रिश्तों में तब खटास आ गई, जब समाजवादी पार्टी ने रामपुर से बॉलीवुड अभिनेत्री जयाप्रदा को टिकट दे दिया. इस चुनाव में आजम खान ने बगावती तेवर अपनाते हुए जय प्रदा के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन वो हार गए.

इसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. लेकिन, फिर साल 2010 में उन्हें पार्टी में शमिल कर लिया गया. इसी समय आजम खान ने मुलायम सिंह यादव के लिए शेर कहा था कि “कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा, तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा, ये सोचकर कि तेरा इंतजार लाजिम है, ताउम्र घड़ी की तरफ नहीं देखा.”

आजम खान को बातों का धनी कहा जाता है. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे बोलने का फन आता है, जिससे मिलता हूं अपना बना लेता हूं. वो प्रधानमंत्री को वजीर-ए-आजम और दिल्ली का बादशाह बुलाते हैं. उर्दू में तीखे तंज करके अपने राजनीतिक विरोधियों को मुश्किल में डालने वाले आजम खान अब खुद मुश्किल में हैं. शब्दों तो तंज में पिरोने का उनका हुनर ही उनके गले का फांस बन गया. कोर्ट ने प्रधानमंत्री को लेकर दिए गए उनके एक भाषण पर उन्हें तीन साल की सजा सुनाई है और उनकी विधायकी रद्द कर दी है.  

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