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AAP में राघव चड्ढा तेजी से आगे क्यों बढ़ रहे- डेटा पॉलिटिक्स, केजरीवाल का भरोसा

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़े CA Raghav Chadha का उदय हमें AAP की राजनीति के बारे में क्या बताता है?

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दिल्ली और पंजाब में शानदार जीत के बाद अब आम आदमी पार्टी (AAP) की नजर गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है. पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने इस काम को देखने के लिए अपने सबसे भरोसेमंद राघव चड्ढा को चुना है.

18 सितंबर को आम आदमी पार्टी ने गुजरात में राघव चड्ढा को सह प्रभारी बनाया है. यह दूसरा मौका है जब उन्हें हाई प्रोफाइल स्टेट इलेक्शन का मैनेजमेंट सौंपा गया है. इससे पहले, उन्हें दिल्ली आईआईटी के पूर्व सहायक प्रोफेसर संदीप पाठक के साथ पंजाब स्टेट इलेक्शन्स को संभालने का काम सौंपा गया था, जिसमें आम आदमी पार्टी ने भारी अंतर से जीत हासिल की थी.

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आम आदमी पार्टी में बहुत कम नेताओं ने पिछले दस वर्षों में चड्ढा जैसी उन्नति देखी है.

  • 2013 राधव चड्ढा ने वॉलेंटियर के तौर पर शुरुआत की थी और जल्द ही पार्टी प्रवक्ता बन गए थे.

  • 2015 में उन्हें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था.

  • 2019 में उन्हें आम आदमी पार्टी ने दक्षिण दिल्ली संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया, उन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.

  • 2020 में दिल्ली की राजिंदर नगर विधानसभा सीट से चड्ढा को विधायक के तौर पर चुना गया, इसके बाद उन्हें दिल्ली जल बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया गया.

  • 2021 में संदीप पाठक के साथ उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनावों को हैंडल किया. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 117 विधानसभा सीटों में से 92 पर जीत हासिल करते हुए कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया.

  • 2022 में राघव पंजाब से राज्यसभा सदस्य बने. वे राज्य के उन पांच उम्मीदवारों में से एक थे जो निर्विरोध निर्वाचित हुए थे.

एक तरह से, एक दशक से भी कम समय में अपने पांच संस्थापक सदस्यों में से चार के चले जाने वाली पार्टी में चड्ढा की तेजी ऊपर उठने की दौड़, इस बात की दिलचस्प अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि कैसे आम आदमी पार्टी हाल के इतिहास में भारत का सबसे सफल राजनीतिक स्टार्ट-अप बन गई है.

यह समझने के लिए कि राघव चड्ढा की हालिया नियुक्ति से आम आदमी पार्टी के आंतरिक कामकाज के बारे में क्या पता चलता है, क्विंट ने AAP के विभिन्न स्तरों के उन पदाधिकारियों से बात की जिन्होंने चड्ढा के साथ मिलकर काम किया है और जिन्होंने उन्हें दूर से देखा है.

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'डेटा की राजनीति'

2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रचंड जीत और भारत के अग्रणी राजनीतिक रणनीतिकारों में से एक प्रशांत किशोर के उदय ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की. जिसने जीतने में डेटा, वोटर सर्वे, हार्ड नंबर और आंकड़ों के महत्व को उजागर किया है.

आम आदमी पार्टी के एक विश्वसनीय सूत्र ने क्विंट को बताया कि चड्ढा अपना होमवर्क अच्छी तरह से करते हैं और हमेशा फैक्ट और डाटा उनके पास रहता है. सूत्र के अनुसार "2014 के विधानसभा चुनावों के बाद नेताजी (अरविंद केजरीवाल) ने महसूस किया कि किसी खास विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध होने से पार्टी कोई चुनाव नहीं जीतेगी, लेकिन नंबर्स और डेटा से चुनाव में जीत मिल सकती है."

इस उद्देश्य की पूर्ति चड्ढा जैसे नेता बखूबी करते हैं. सूत्र ने विस्तार से बताया कि "यदि आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि राघव जी ने कभी भी विशेष विचारधारा के लिए खुद को प्रतिबद्ध नहीं किया है. उनकी राजनीति की शैली संजय सिंह जी या दुर्गेश (पाठक) भैया से अलग है. संजय जी या दुर्गेश भैया कांग्रेस-शैली की धर्मनिरपेक्ष राजनीति की ओर अधिक झुकाव रखते हैं, यह शैली नेताजी (अरविंद केजरीवाल) के साथ बहुत सहज नहीं हैं. वह (राघव चड्ढा) उन लोगों में से एक हैं जो इस बात पर जोर देते हैं कि AAP एक ऐसी पार्टी है जो चीजों को आगे बढ़ाती है और यह एक विकास समर्थक, कल्याण समर्थक पार्टी है."
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पावर का केंद्रीकरण

2022 के पंजाब चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के खिलाफ कांग्रेस के तर्क के मुख्य सिद्धांतों में से एक, शासन करने के लिए पार्टी का केंद्रीकृत दृष्टिकोण था. कांग्रेस के कई नेताओं ने आरोप लगाया था कि अगर आम आदमी पार्टी सत्ता में आती है तो वह तो पंजाब में एक दिखावटी सरकार बनाएगी, जिसमें एक कठपुतली मुख्यमंत्री पार्टी प्रमुख केजरीवाल के इशारे पर काम करेगा.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में इन दावों को दोहराते हुए कहा था कि "पंजाब के लोग जानते हैं कि भगवंत मान को पंजाब में आप का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर अरविंद केजरीवाल दिल्ली से दूर राज्य में सरकार चलाना चाहते हैं."

भले ही कांग्रेस के दावे पंजाब के मतदाताओं को पसंद न आए हों, लेकिन आम आदमी पार्टी के कई पदाधिकारी इस बात से सहमत हैं कि पार्टी के भीतर केवल एक पावर का केंद्र है, जहां केजरीवाल और सिसोदिया दूसरों के साथ ज्यादा परामर्श किए बिना अधिकांश निर्णय लेते हैं.

एक सूत्र ने क्विंट को बताया कि "पार्टी के भीतर महत्वपूर्ण पदों पर लोगों को नियुक्त करने की प्रक्रिया बहुत लंबी और बोझिल नहीं है. अरविंद जी मनीष सिसोदिया जी से सलाह लेकर निर्णय लेते हैं और नियुक्त करने का फैसला हो जाता है." सूत्र आगे बताता है कि "वर्तमान में चड्ढा जी को अनुकूल माना जाता है. ठीक वैसे ही जैसे 2017 के पंजाब चुनाव से पहले संजय सिंह जी थे. लोगों को न तो उठने में और न ही गिरने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है."

केजरीवाल के साथ नजदीक से काम करने वाले एक अन्य सूत्र ने आम आदमी पार्टी में नेताओं के उत्थान और पतन की तुलना एक वीडियो गेम से की.

उन्होंने कहा "हम अक्सर मजाक में कहते हैं कि आम आदमी पार्टी में अगर आप सफल होते हैं, तो अरविंद केजरीवाल आपकी कठिनाई का स्तर बढ़ा देते हैं. यही राघव चड्ढा और संदीप पाठक के साथ हो रहा है. पंजाब में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. यही वजह है कि राघव चड्ढा और संदीप पाठक को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आगामी चुनावों के लिए अहम जिम्मेदारी दी गई है."

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एक 'यंग, मीडिया-सैवी सोशलाइट' का उदय

आम आदमी पार्टी के भीतर चड्ढा के उदय में योगदान देने वाले कई कारणों में से एक उनका प्रभावी और आकर्षक रिज्युमे है. चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के अलावा, चड्ढा एक दक्ष और इंटेलिजेंट (बुद्धिमान) प्रवक्ता हैं, टीवी डिबेट्स के दौरान कामकाजी मिडिल वर्ग और अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले मध्यम वर्ग से अपील करते हैं और पार्टी के नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं.

एक पार्टी वर्कर ने कहा "वह (राघव चड्ढा) नेताजी के लिए खतरा नहीं हैं, क्योंकि वह एक व्यापक जन नेता नहीं हैं. वह एक अच्छे वक्ता हैं और टीवी डिबेट्स में काफी अच्छी बहस करते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों को आकर्षित नहीं कर पाते हैं. वह अरविंद जी को चुनौती नहीं देते, बल्कि उनकी तारीफ करते हैं."

क्विंट ने इस रिपोर्ट के लिए जिन लोगों से बात की उनमें से अधिकांश ने राघव चड्ढा को मीडिया-सैवी राजनेता के तौर पर चित्रित किया, जो अपना होमवर्क अच्छी तरह से करते हैं. कई लोगों का यह भी मानना ​रहा कि उनकी उम्र ने उनके पक्ष में काम किया है.

उदाहरण के लिए पंजाब के एक AAP पदाधिकारी ने कहा कि "2022 के विधानसभा चुनावों में चीजें किस तरीके से कैसे काम करेंगी इसके लिए चड्ढा ने काफी होमवर्क किया."

पदाधिकारी ने आगे बताया कि "अपने शुरुआती दौरों में राघव चड्ढा ने अलग-अलग लोगों के साथ बात की और मिलने जुलने में काफी समय लगाया. उन्होंने यह समझने की कोशिश की कि पंजाब में राजनीति कैसे संचालित होती है. इसके अलावा उन्होंने राज्य की सांस्कृतिक और राजनीतिक बारीकियों को भी समझा."

आम आदमी पार्टी के भीतर राघव चड्ढा को बीजेपी के तेजस्वी सूर्या या कांग्रेस के जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार (ऐसे युवा नेता जिनकी पृष्ठभूमि लोगों को जोड़ने वाली रही है) के जवाब के तौर में भी देखा जाता है. लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से डिग्री के साथ एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के तौर पर उनकी साख उनकी ताकत में इजाफा करती है.

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गुजरात की चुनौती

आम आदमी पार्टी के गुजरात चुनाव प्रभारी के तौर पर चड्ढा की नियुक्ति कई उद्देश्यों को पूरा करती है. सबसे पहले, यह पार्टी कैडर को बताती है कि अच्छा काम करने वालों को उचित इनाम दिया जाता है और दूसरा, यह उन्हें आश्वस्त करती है कि जिस टीम ने पंजाब चुनाव में भारी जीत दिलाई थी अब वही टीम गुजरात को हैंडल कर रही है.

राघव चड्ढा की नियुक्ति से गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं गोपाल इटालिया और इसुदान गढ़वी के बीच किसी भी तरह के विवाद से बचने में मदद मिलेगी. चुनाव अभियान के लिए चड्ढा को प्रमुख चेहरे के तौर पर सामने करने से राज्य (गुजरात) के विभिन्न नेताओं के बीच संतुलन बनाना आसान हो जाएगा. पार्टी के अंदर उनके प्रभाव और पंजाब में उपलब्धियों को देखते हुए चड्ढा के शामिल होने पर किसी के नाखुश होने या आपत्ति करने की संभावना नहीं है.

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