गुजरात विधानसभा के चुनाव में पूरे देश की दिलचस्पी है. वजह है कि इसे 2019 के आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. दूसरी बड़ी वजह है कि 22 सालों में पहली बार ऐसा लग रहा है कि बीजेपी का कांग्रेस से मुकाबला कुछ कड़ा होगा. राहुल गांधी के बदले तेवरों की भी खूब चर्चा है.
अल्पेश ठाकुर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी जैसे तीन युवा नेताओं का साथ मिलने से माना जा रहा है कि कांग्रेस को कुछ फायदा होगा. लेकिन क्या ये फैक्टर कांग्रेस को बीजेपी से आगे ले जाने की हालत में हैं?
- सौराष्ट्र और कच्छ में पटेलों की नाराजगी बीजेपी के लिए बड़ी फिक्र
- नॉर्थ गुजरात में बीजेपी से आगे निकल सकती है कांग्रेस
- ग्रामीण, आदिवासी क्षेत्र कांग्रेस के मजबूत गढ़
ऐसे में गुजरात राज्य के किस इलाके में कौन मजबूत है इस पर एक नजर डालते हैं:
- नॉर्थ गुजरात
- सौराष्ट्र कच्छ
- सेंट्रल गुजरात
- साउथ गुजरात
साउथ गुजरात:
साउथ गुजरात पिछले कई सालों से बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है. राज्य का ये इलाका कारोबारी तौर पर सबसे समृद्ध है. खास बात ये है कि यहां शहरी और ग्रामीण इलाके दोनों हैं. शहरी इलाकों में बीजेपी का दबदबा है.
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यहां के आदिवासी बहुल इलाके जहां कांग्रेस की पकड़ मजबूत मानी जा रही है. 2012 विधानसभा चुनाव में साउथ गुजरात से बीजेपी ने 50 फीसदी से ज्यादा का वोट लेकर 80 फीसदी सीटें हथियाई थीं. कांग्रेस को इस इलाके में सिर्फ 37 फीसदी वोट मिले थे.
2017 में क्या बदला?
इस चुनाव में फिजा बदली-बदली सी नजर आ रही है. जीएसटी लागू होने के बाद सूरत में कपड़ा कारोबारियों का विरोध प्रदर्शन तो आपको याद ही होगा. सूरत के डायमंड कारोबारी का भी कहना है कि जीएसटी की वजह से उनको नुकसान हुआ है.
जानकारों के मुताबिक कारोबारियों से भरे इस इलाके में नोटबंदी और जीएसटी से नाराजगी बड़ा मुद्दा हैं. कांग्रेस को लगता है सूरत-भरुच जैसे जिलों में बीजेपी के लिए बढ़ती नाराजगी से कांग्रेस को फायदा होगा क्योंकि आदिवासी इलाकों में पहले ही उसका दबदबा बढ़ा है.
सौराष्ट्र कच्छ:
पटेलों के दबदबा वाला सौराष्ट्र बीजेपी के लिए परंपरागत तौर पर मजबूत गढ़ रहा है. केशुभाई पटेल यहां के बड़े बीजेपी नेता रहे हैं. लेकिन इस बार पटेलों में राज्य सरकार से कुछ नाराजगी है. ये इलाका पटेल के आंदोलन से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है. इसलिए बीजेपी यहां दबाव महसूस कर रही है. पिछले 22 सालों से इस क्षेत्र में बीजेपी ने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ रखा था.
साल 2012 के चुनाव में बीजेपी को इस क्षेत्र से 45 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ था वहीं कांग्रेस को 37 फीसदी.
2017 में क्या बदला?
इस बार बीजेपी के लिए इस क्षेत्र से सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है. सौराष्ट्र की राजनीति में पटेल समुदाय का वर्चस्व है. केशुभाई भी इसी समुदाय से आते हैं जिनकी बदौलत 1995 से ही बीजेपी इस क्षेत्र में सबसे आगे है. लेकिन अब स्थिति ये है कि पटेलों का आरक्षण को लेकर बीजेपी से मोहभंग हो गया है. वहीं पटेल नेता हार्दिक भी खुले तौर पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी का विरोध करते नजर आ रहे हैं.
माना जाता है कि करीब 35 सीटों पर यहां पटेल किसी को भी हराने या जिताने की स्थिति में हैं. ऐसे में हार्दिक और पटेलों का समर्थन कांग्रेस को रेस में ला सकता है.
नॉर्थ गुजरात:
नॉर्थ गुजरात में मामला कांग्रेस और बीजेपी में करीबी मुकाबला है. 2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 53 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं. माना यही जा रहा है कि नॉर्थ गुजरात में कांग्रेस कड़ी टक्कर देने की स्थिति में है.
2017 में क्या बदला?
2012 के चुनावों में वोट शेयर के मामले में कांग्रेस से बीजेपी करीब 10 परसेंट आगे थी. लेकिन हाल ही में आए ओपिनियन पोल के अनुमानों के मुताबिक इस बार वोट शेयर में रिकवरी के आसार है. जानकार ये भी मान रहे हैं कि अगर शंकर सिंह वाघेला फैक्टर काम नहीं करता है तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर और कम हो सकता है. लेकिन अगर वाघेला फैक्टर कांग्रेस के लिए नकारात्मक साबित हो सकता है.
सेंट्रल गुजरात:
सेंट्रल गुजरात में दोनों पार्टियों के बीच 2012 में करीब-करीब बराबरी का मुकाबला रहा था. वडोदरा जिले के दम पर बीजेपी आगे निकल गई. लेकिन कांग्रेस ने इलाके की 40 में से 18 सीटें हासिल की थीं.
2017 में क्या बदला?
वडोदरा जैसे जिले में जीएसटी और नोटबंदी अपना असर दिखा सकती है. 2012 के चुनावों में इस जिले की 13 सीटों में से 10 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. इस बार कारोबारियों में थोड़ी नाराजगी देखने को मिल रही है.
आदिवासी-ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत
गुजरात की 182 सीटों में से 98 सीटें यानी आधे से ज्यादा सीटें रूरल सीटें हैं. इन सीटों पर बीजेपी की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है. 2012 के चुनावों में ग्रामीण इलाकों की इन 98 सीटों में से कांग्रेस 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी वहीं बीजेपी 44 सीटों ही जीत सकी थी. ऐसे में आर-पार की लड़ाई के लिए ग्रामीण सीटें कांग्रेस को बढ़त दिला सकती हैं.
आदिवासी बहुल इलाके कांग्रेस का मजबूत किला हैं. इनमें कांग्रेस से सीट और वोट शेयर दोनों मामलों में बीजेपी से आगे है. 2012 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर आरक्षित (अनुसूचित जन जाति) वाले इलाके से 45.3% रहा था. जबकि बीजेपी का वोट शेयर 40.2 % था. गुजरात की जनसंख्या में 15% जनजाति हैं.
अब फैसला 9 और 14 दिसबंर को होने वाली वोटिंग में होगा. नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे.
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