हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा रविवार को रोहतक में 'परिवर्तन महारैली' करेंगे. इस रैली पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा पार्टी में अपनी और अपने विश्वस्तों की उपेक्षा के चलते कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं. बता दें, हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा समर्थक लंबे समय से राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, सीनियर हुड्डा ने रविवार को होने वाली परिवर्तन महारैली से पहले कहा कि वह लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर अगला कदम उठाएंगे. हालांकि, कई लोगों का मानना है कि हुड्डा केंद्रीय नेतृत्व पर दवाब बनाने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं.
बता दें, हरियाणा में अगले दो महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व भूपिंदर सिंह हुड्डा को नजरअंदाज कर रहा है.
हुड्डा की इस रैली को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि हुड्डा पिता-पुत्र (भूपिंदर सिंह हुड्डा और दीपेंदर सिंह हुड्डा) इस रैली के जरिये बीजेपी नहीं, बल्कि अपनी ही पार्टी को संदेश देना चाहते हैं.
अब तक ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि हुड्डा कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना सकते हैं. लेकिन हुड्डा के हालिया बयान ने इस बात के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो उन्हें इस तरह का कोई कदम उठाने से कोई गुरेज नहीं होगा.
हुड्डा ने शुक्रवार को द ट्रिब्यून को बताया, "मैं रविवार को रैली में लोगों की भावनाओं के हिसाब से फैसला करूंगा." हालांकि, वह क्या फैसला ले सकते हैं, इसके बारे में उन्होंने ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया.
विधानसभा चुनाव में हुड्डा पर दांव नहीं लगाना चाहती कांग्रेस
हरियाणा में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस आलाकमान उन्हें दरकिनार किए हुए है. कांग्रेस उन्हें नेतृत्व सौंपने में हिचकिचा रही है. वहीं दूसरी ओर भूपिंदर सिंह हुड्डा और बेटे दीपेंदर सिंह हुड्डा की बेचैनी बढ़ती जा रही है.
उसी वक्त से यह चर्चा शुरू हो गई थी कि दोनों खुद को दरकिनार किए जाने की वजह से आलाकमान को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं.
लोकसभा चुनाव में भूपिंदर और दीपेंदर दोनों हार चुके हैं. पार्टी को यहां एक भी सीट नहीं मिली है. अब कांग्रेस आलाकमान वहां भूपिंदर को उतना तवज्जो नहीं देना चाहता. जबकि वे चाहते हैं कि आलाकमान उन्हें पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की तरह ताकत दे. पार्टी को लगता है कि इस हार ने राज्य में उसका भविष्य और कमजोर बना दिया है.
यही वजह है कि पार्टी हुड्डा पर दांव नहीं लगाना चाहती. इधर, हुड्डा को लग रहा रहा है पार्टी उन्हें लगातार कमजोर करना चाह रही है. सूत्रों का कहना है इस रैली का मकसद बीजेपी नहीं अपनी पार्टी कांग्रेस को ताकत दिखाना है.
पार्टी अध्यक्ष अशोक तंवर को लगता है कि यही मौका है जब हुड्डा पिता-पुत्र दोनों पर और दबाव बनाया जा सकता है. तंवर का कहना है कि लोकसभा चुनाव में जिस भी उम्मीदवार को हार मिली हो वह अब विधानसभा चुनाव न लड़े और दूसरे को मौका दे. तंवर का कहना है कि वह भी चुनाव नहीं लड़ना चाहता.
बहरहाल, सूत्रों के मुताबिक रविवार को होने वाली रैली के लिए किसी भी सीनियर कांग्रेस नेता को नहीं बुलाया गया है. याद रहे इस बीच, दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया था.
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