महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है. राज्य में सरकार बनने के आसार नजर नहीं आने पर राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी, जिसे पहले केंद्रीय कैबिनेट ने और फिर राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है.
उधर, शिवसेना समर्थन पत्र सौंपने के लिए राज्यपाल की ओर से अतिरिक्त समय न देने पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. शिवसेना का कहना है कि राज्यपाल ने उन्हें समर्थन पत्र सौंपने के लिए और समय नहीं दिया. इतना ही नहीं, राष्ट्रपति शासन लागू होने के खिलाफ भी शिवसेना सुप्रीम कोर्ट में दूसरी याचिका दाखिल करने की तैयारी में है.
राष्ट्रपति शासन लागू होने को लेकर क्या है कानून?
- अगर चुनाव नतीजों में किसी पार्टी को बहुमत न मिला हो.
- जिस पार्टी को बहुमत मिला हो, वह सरकार बनाने से इनकार कर दे और राज्यपाल को दूसरा कोई ऐसा गठबंधन न मिले, जो सरकार बनाने की स्थिति में हो
- अगर राज्य सरकार विधानसभा में हार के बाद इस्तीफा दे दे और दूसरे दल सरकार बनाने के इच्छुक या ऐसी स्थिति में न हों
- अगर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन न किया हो
- अगर कोई राज्य सरकार जान-बूझकर आंतरिक अशांति को बढ़ावा या जन्म दे रही हो
- अगर राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह न कर रही हो
क्या महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करना कानूनन सही फैसला है?
किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन को लेकर किसी मामले में कोर्ट की भूमिका के लिए एसआर बोम्मई केस का जिक्र किया जाता है. साल 1994 में कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया था, जो आर्टिकल 356 के संदर्भ में मील का पत्थर बन गया. कोर्ट ने माना था कि कर्नाटक की बोम्मई सरकार की बर्खास्तगी अनुचित थी और उन्हें बहुमत साबित करने का मौका मिलना चाहिए था.
इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को ये देखने के लिए कि सरकार बन सकती है या नहीं, सबसे पहले फ्लोर टेस्ट कराना चाहिए.
ठीक ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ है. इस मामले में भी यही महत्वपूर्ण रहा कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट नहीं कराया. महाराष्ट्र में राज्यपाल ने पहले सरकार गठन के लिए बीजेपी को और फिर शिवसेना को बुलाया. इसके बाद राज्यपाल ने एनसीपी को भी बुलाया. लेकिन जब शिवसेना और एनसीपी ने समर्थन पत्र सौंपने के लिए और वक्त मांगा तो राज्यपाल ने उन्हें वक्त नहीं दिया. और ना ही फ्लोर टेस्ट कराया.
कोर्ट की भूमिका क्या हो सकती है?
अगर अब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होने का मामला सुप्रीम कोर्ट में जाता है, तो संभव है कि कोर्ट कहे कि राज्य में फ्लोर टेस्ट कराना चाहिए. अगर कोर्ट फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला करती है तो इसे शिवसेना-एनसीपी की जीत माना जा सकता है. शिवसेना और एनसीपी कोर्ट से फ्लोर टेस्ट देने के लिए दो से तीन दिन का वक्त मांग सकती है.
अगर कोर्ट फ्लोर टेस्ट के लिए कहती है तो वह 24 या 48 घंटे का वक्त दे सकती है, क्योंकि कर्नाटक और गोवा के मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि फ्लोर टेस्ट जल्द से जल्द हो जाना चाहिए.
अगर सुप्रीम कोर्ट शिवसेना के हक में फैसला लेती है और ये कहती है कि राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश नहीं भेजनी चाहिए थी, शिवसेना-एनसीपी को समर्थन साबित करने के लिए और वक्त देना चाहिए था और फ्लोर टेस्ट कराना चाहिए था. तो कोर्ट शिवसेना-एनसीपी को बहुमत साबित करने के लिए 24 घंटे का वक्त दे सकती है. लेकिन उस स्थिति में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस को मिलकर सरकार बनाने पर फैसला लेना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)