कर्नाटक चुनाव के लिए तारीखों के ऐलान के साथ ही वहां की राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है. यहां के चुनाव में जातियों का काफी अहम रोल होता है. राज्य की कुल आबादी का 72 फीसदी यानी 4 करोड़ 96 लाख वोटर हैं. लेकिन लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के वोटर सरकार बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. राज्य में बनने वाले अधिकांश मुख्यमंत्री भी इन्हीं दोनों समुदाय से ही रहे हैं.
लिंगायत का है दबदबा
कर्नाटक में संख्या बल के हिसाब से लिंगायत संप्रदाय मजबूत और राजनीतिक के लिहाज से काफी प्रभावशाली है. राज्य में इनकी आबादी करीब 17 फीसदी है.
लिंगायत राज्य की 224 में से करीब 100 सीटों पर सीधा असर डालते हैं. और फिलहाल कर्नाटक विधानसभा में 52 विधायक लिंगायत समुदाय से हैं.
लिंगायतों को कर्नाटक में बीजेपी का पारंपरिक वोट माना जाता है. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के कैंडिडेट बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही हैं. लेकिन कांग्रेस ने इस समुदाय को अपनी ओर खींचने और बीजेपी के वोट बैंक में सेध लगाने के इरादे से लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है.
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वोक्कालिगा का भी है काफी असर
लिंगायतों के अलावा इस राज्य में वोक्कालिगा समुदाय का भी काफी असर रहा है. राज्य में 11 फीसदी आबादी रखने वाली वोक्कालिगा कम्युनिटी विधानसभा की करीब 80 सीटों पर असर डालती है. अब तक इस समुदाय के 6 मुख्यमंत्री राज्य में बन चुके हैं.
कर्नाटक में लिंगायतों और वोक्कालिगा के अलावा दलित काफी अहम भूमिका में रहते हैं. राज्य में दलित समुदाय की आबादी करीब 19 फीसदी है और चुनाव में इनकी भूमिका भी खास रहती है.
इन सबके अलावा राज्य में मुस्लिमों की आबादी 16 फीसदी है, वहीं ओबीसी 16 फीसदी और अन्य जातियां 21 फीसदी के करीब है.
राज्य में 12 मई को चुनाव कराए जाएंगे और वोटों की गिनती 15 मई को होगी. 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए पिछली बार की तरह इस बार भी एक ही चरण में चुनाव होंगे.
बीजेपी-कांग्रेस ने जोर लगाया
कर्नाटक में सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी दोनों के लिए इन चुनावों को राजनीतिक तौर पर अहम माना जा रहा है. पिछले कुछ साल में कई विधानसभा चुनाव हारने के बाद कर्नाटक ही एकमात्र बड़ा राज्य है जहां की सत्ता पर कांग्रेस काबिज है.
बीजेपी इन चुनावों में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. वहीं कांग्रेस के सिद्धारमैया कांग्रेस के किले को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
इन दोनों पार्टियों के अलावा देवगौड़ा की अगुवाई वाली जेडीएस इस चुनावी अखाड़े में तीसरी पार्टी के रूप में दमखम दिखाने की कोशिश कर रही है. अब ये तो 15 मई को ही पता चल पाएगा कि इस चुनाव में किस पार्टी को जातियों का साथ मिलता है और सत्ता तक पहुंचने में सफल रहती है.
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