कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद चले नाटक में सबसे ज्यादा नजर जिस एक शख्स पर है वह हैं स्पीकर के आर रमेश कुमार. जितनी चर्चा इस राजनीतिक घटनाक्रम की हो रही है और उससे ज्यादा उत्सुकता रमेश कुमार की अगली चाल को लेकर है. आखिर वह क्या फैसला करेंगे. क्या वह विधायकों का इस्तीफा का मंजूर कर लेंगे या फिर उन्हें अयोग्य करार देंगे. सुप्रीम कोर्ट भी रमेश के रुख पर नजर बनाए हुए है.
राजनीति के माहिर और मुखर खिलाड़ी
रमेश कुमार राजनीति के माहिर और बेहद मुखर खिलाड़ी हैं. उनके आलोचक कहते हैं कि हाउस में वह सदस्यों से भी ज्यादा बोलते हैं. रमेश कुमार की वर्किंग स्टाइल में राजनीति और एक्टिंग का दिलचस्प घालमेल देखने को मिलता है.
रमेश ने कई कन्नड़ सीरियलों में नेता की भूमिका निभाई है और सदन में वह विधायकों को काबू करने में संवाद अदायगी और पंचलाइन का इस्तेमाल करने से खुद को रोक नहीं पाते.
कुमार ने पहला चुनाव 1978 में जीता था. उस दौरान वह कोलार जिले के श्रीनिवासपुरा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते थे. इसके बाद उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा. वह अपने कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जी वी वेंकटशिवा रेड्डी से पांच बार चुनाव जीते हैं और चार बार हारे हैं. इनमें से ज्यादातर चुनावों में हार जीत का अंतर एक हजार वोट से भी कम का रहा है. दोनों के समर्थकों के बीच कई बार खूनी हिंसा हो चुकी है.
डायलॉगबाजी कभी-कभी भारी पड़ जाती है
पाला बदलने में माहिर कुमार कांग्रेस से जनता पार्टी में गए. फिर जनता दल में आए और अब कांग्रेस के विधायक हैं. हालांकि कभी-कभी उनकी डायलॉगबाजी उन्हें भारी पड़ जाती है. इस साल की शुरुआत में उन्होंने बीजेपी की ओर से जनता दल (एस) के विधायकों को खरीदने की कोशिश का हवाला देते हुए अपनी तुलना रेप पीड़ित के तौर पर की दी थी. इससे जुड़े एक ऑडियो क्लिप में उनका नाम भी था. इसके बाद उन्होंने कहा था वह एक रेप पीड़ित जैसा महसूस कर रहे हैं. उन्हें अपने इस बयान पर माफी मांगनी पड़ी थी.
कई बार रमेश मामलों को भावुकता भरा मोड़ दे देते हैं. कई दफा वह सार्वजनिक तौर पर रो भी पड़े हैं. पिछले साल वह चामुंडेश्वरी से पूर्व सीएम सिद्धारमैया की हार पर सार्वजनिक रूप से रो पड़े थे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)