तेलंगाना के खम्मम में KCR ने 18 जनवरी को बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता का शक्ति प्रदर्शन किया. KCR की पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (TRS) के भारत राष्ट्रीय समिति (BRS) बनने के बाद यह पहली बार है, जब तेलंगाना में इतनी बड़ी रैली का आयोजन किया गया था. इस रैली में अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, पिनराई विजयन और डी.राजा समेत कई दलों के नेताओं ने मंच साझा किया. कहा जा रहा है कि KCR, लोकसभा चुनाव 2024 के लिए नए मोर्चे की जमीन तैयार कर रहे हैं. लेकिन, जानकार इससे विपक्षी एकता में सबसे बड़ी टूट के रूप में देख रहे हैं. सवाल ये है कि आखिर तीसरा फ्रंट बन क्यों रहा है? थर्ड फ्रंट के नेता आखिर कांग्रेस के साथ क्यों नहीं आना चाहते हैं? सवाल ये भी है कि क्या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को साथ में लिए बिना थर्ड फ्रंट बीजेपी को टक्कर दे सकता है?
KCR की रैली से BJP-कांग्रेस को क्या संदेश?
साल 1980 के दशक के बाद से भारत की राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का उभार होता है. ये क्षेत्रीय दल कभी बीजेपी नेतृत्व वाले NDA में तो कभी कांग्रेस नेतृत्व वाले UPA में शामिल रहे, लेकिन हाल की राजनीति में कई क्षेत्रीय दल ऐसे हैं, जो इन दोनों घटक दलों से इतर जाकर एक थर्ड फ्रंट की बात कर रहे हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए KCR ने अपनी पार्टी TRS को राष्ट्रीय पार्टी BRS के रूप में घोषणा की. इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि जो बीजेपी और कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहते वो इससे जुड़कर राष्ट्रीय राजनीति में कुछ अच्छा कर सकते हैं. यही वजह है कि तेलंगाना में रैली कर KCR ने 2024 का बिगुल फूंक दिया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि कांग्रेस से इतर देश में एक थर्ड फ्रंट भी है, जो बीजेपी को हराने के लिए तैयार है.
ममता बनर्जी क्यों नहीं हुईं शामिल?
कांग्रेस से इतर थर्ड फ्रंट बनाने की सिफारिश करने वाले नेताओं में ममता बनर्जी का नाम सबसे ऊपर आता है. लेकिन, ममता बनर्जी का KCR की रैली में न शामिल होना कई सवाल खड़े कर रहा है. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी KCR के नेतृत्व में खड़े हो रहे थर्ड फ्रंट में वामदलों की एंट्री से खफा हैं. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में वामदल ममता बनर्जी की खिलाफत करता है. लिहाजा, ममता बनर्जी नहीं चाहती कि थर्ड फ्रंट में वामदल की एंट्री हो. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी राजनीति वामदलों के खिलाफ ही की और उन्ही की राजनीति को पछाड़ते हुए अपनी राजनीति चमकाई.
KCR को कांग्रेस से क्या दिक्कत?
साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं. वहां, केसीआर की सरकार है और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस है. बीजेपी भी तेलंगाना में अपना आधार बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है. बीजेपी की हाल ही में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जेपी नड्डा ने जिन 9 राज्यों में जीत का लक्ष्य रखा है, उसमें तेलंगाना मुख्य रूप से है. क्योंकि, इससे बीजेपी के लिए साउथ की राह आसान हो जाएगी. ऐसे में KCR नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे ऐसे किसी गठबंधन में शामिल हो, जिसमें कांग्रेस या बीजेपी शामिल हो.
क्या साउथ में कारगर साबित हो पाएंगे KCR?
राष्ट्रीय राजनीति में नरसिम्हा राव, एचडी देवगौड़ा और जयललिता के बाद जो साउथ का दबदबा कमजोर हुआ है, उसको केसीआर भरना चाहते हैं. इसी को भरने के लिए KCR अब राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहते हैं और उन्हें 2024 का चुनाव इसके लिए मुफीद लग रहा है. KCR से पहले दक्षिण के कई नेताओं ने अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा को पूरा करने की कवायद की, लेकिन सफल नहीं हो सके.
देश की कुल 545 लोकसभा सीटों में से 131 संसदीय सीटें दक्षिण भारत से आती हैं. कर्नाटक में 28, तेलंगाना 17 में आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुडुचेरी और लक्ष्यदीप में 1-1 सीट है. ऐसे में अगर कोई साउथ की पार्टी इन 131 लोकसभा सीटों में 100 सीटें जीतने की क्षमता रखती है तो उसके लिए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी हनक जमाने से कोई नहीं रोक सकता है. केसीआर भले ही राष्ट्रीय राजनीति की बात कर रहे हों, लेकिन उनके मन में दक्षिण की इन्हीं सीटों पर बीजेपी को मात देने की रणनीति है.
कांग्रेस के बगैर कैसे सफल होगा थर्ड फ्रंट?
केसीआर ने साउथ के साथ नॉर्थ का संगम कर दिया है. मतलब नॉर्थ के बड़े नेताओं को साथ लिया है. यूपी, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब में कुल मिलाकर लोकसभा की 142 सीटें हैं, इसमें अगर थर्ड फ्रंट 100 सीटें जीतने में कामयाब हो जाता है तो भी राष्ट्रीय राजनीति में थर्ड फ्रंट सबसे ऊपर दिखेगा. जानकारों का मानना है कि अगर यह ग्राफ चुनाव में दिखता है तो फिर कांग्रेस से बार्गेनिंग करने में थर्ड फ्रंट को आसान होगा. और उसमें कांग्रेस को झुकना पड़ सकता है.
जानकारों का भी मानना है कि बीजेपी के विरोध में पॉलिटिक्स करने वाली सभी पार्टियां एक मंच पर नहीं आ सकतीं, ऐसे में तीसरे फ्रंट की संभावना है. संभव है कि नीतीश कुमार भी आने वाले दिनों में इस फ्रंट का हिस्सा बन जाएं, क्योंकि कांग्रेस अगर अपना नेतृत्व चाहती है तो विपक्ष में थर्ड फ्रंट में ही कई पीएम के दावेदार बिना अपनी दावेदारी किए एक साथ रह सकते हैं.
साउथ में अभी भी बीजेपी का जनाधार कमजोर
उधर, बीजेपी उत्तर भारत में भले ही अपने वर्चस्व स्थापित करने में सफल रही हो, लेकिन दक्षिण में मोदी का जादू फीका रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी कर्नाटक और तेलंगाना में सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में खाता तक नहीं खोल सकी. यही वजह है कि केसीआर राष्ट्रीय पार्टी बनाकर दक्षिण अस्मिता को जगाना चाहते हैं. हालांकि, इस बात को कांग्रेस भी बाखूबी से समझ रही है, जिसके चलते राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा का आगाज साउथ से ही किया. देश के सबसे बड़ा सूबे यूपी से ज्यादा वक्त वहां गुजारा. इससे साउथ की राजनीतिक ताकत और केसीआर की रणनीति को समझा जा सकता है.
अगर 2024 में थर्ड फ्रंट कामयाब नहीं होता है तो फिर क्या...?
मौजूदा समय में भारत की राष्ट्रीय राजनीति में जो स्थिति बन रही है उससे तो यही संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के इतर एक तीसरा फ्रंट तैयार हो रहा है, जिसका नेतृत्व केसीआर कर रहे हैं. लेकिन, अगर ये थर्ड फ्रंड कामयाब नहीं होता है तो फिर क्या होगा? जानकारों का मानना है कि नॉर्थ में अभी भी मोदी की काट विपक्ष नहीं खोज पाया है. साउथ के कुछ राज्यों, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु में बीजेपी ने अपने जानाधार बढ़ाने शुरू कर दिए हैं, अगर वहां बीजेपी थोड़ा भी कामयाब होती है तो फिर विपक्ष के मंसूबों पर पानी फिर सकता है. ऐसे में आने वाला वक्त ही बताएगा की भारत की राष्ट्रीय राजनीति में थर्ड फ्रंट का क्या महत्व रहने वाला है?
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