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'जय सियाराम Vs जय श्री राम' और पार्टी में कोहराम, 2023 से पहले MP बीजेपी के दर्द

MP कैबिनेट विस्तार, टिकट कटने का डर और राहुल फैक्टर के बीच BJP रात्रि भोज में क्या पका?

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हाल ही में मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ दल बीजेपी ने रात्रि भोज का आयोजन किया. अब ऐसे आयोजनों का होना कोई खास बात न होकर भी खास हो गई, क्योंकि इस समय प्रदेश में कैबिनेट विस्तार की चर्चाएं गरम हैं.

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इसके साथ ही साल भर से कम समय में एमपी विधानसभा 2023 के चुनाव होने हैं, इधर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने प्रदेश में कुछ नहीं तो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जोश तो भर ही दिया है साथ ही बीजेपी को ललकारा भी है. फिर चाहे वो वनवासी और आदिवासी शब्द पर बवाल हो या फिर जय सियाराम और जय श्री राम में अंतर.

हालांकि हम यहां भारत जोड़ो यात्रा की बाद कुछ देर से करेंगे. उसके पहले मध्यप्रदेश के किस्सों में बात करेंगे सत्ता पक्ष में पक रही खिचड़ी के बारे में.

एक बार फिर राज्य में हिंदुत्व विषयों पर चर्चा बढ़ गई है, क्या एमपी चुनाव में बढ़ेगा केंद्रीय नेतृत्व का दबदबा ?

लगभग हर राजनीतिक वर्ग ने 2020 में हुए सत्ता पलट के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रवैए में फर्क देखा और स्वीकार किया है.

सॉफ्ट और जनमानस के चहेते जैसी छवि वाले शिवराज सिंह चौहान ने हार्डकोर हिंदुत्व की राह पकड़ते हुए अपने आपको मोदी-योगी युग का नेता बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

फिर चाहे वो बुलडोजर मामा का चित्र हो या फिर सांप्रदायिक दंगों के दौरान उनके बयान हों. लव जिहाद पर कानून से लेकर गुंडों को जमीन में गाड़ देने वाले वक्तव्य तक...धीरे धीरे शिवराज सिंह चौहान कट्टर हिंदूवादी नेता होने का तमगा पहनने से बिल्कुल भी नहीं कतराए हैं.

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अब एक बार फिर मध्यप्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात भी शिवराज सिंह ने छेड़ी है. इसके अलावा लव जिहाद के कानून को और सख्त करने की बात चल रही है. अभी हाल ही में महाकाल लोक, ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की मूर्ति स्थापना जैसे प्रोजेक्ट्स लॉन्च करने में बीजेपी मुखर है ऐसे में राज्य के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आने वाले चुनाव में केंद्रीय नेतृत्व का दबदबा बढ़ने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं.

हार्डकोर हिंदुत्व के अलावा शिवराज अपने रूठे नेताओं को मनाने में लगे हुए हैं.

रात्रि भोज के बारे में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने यह कहा है कि ये औपचारिक मिलन था और मंत्रियों नेताओं को अपने अपने क्षेत्र में जाने के लिए कहा गया है लेकिन सूत्र बताते हैं कि भोज में और भी कई 'पकवान' बने थे. इनमे सबसे अहम था मंत्रीमंडल में विस्तार.

राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि ऊपर से सबकुछ सही दिखने के बावजूद, बीजेपी में कई नेता सरकार से नाखुश हैं.

पत्रकार आगे कहते हैं कि...

रीवा संभाग जहां से 18 विधायक बीजेपी के हैं और महाकौशल जहां से 13 बीजेपी विधायकों ने 2018 में जीत दर्ज की थी, दोनों ही इलाकों के नेताओं को मंत्रिमंडल में संख्याबल और पसंद के अनुरूप जगह नहीं मिली है. ऐसे में यहां के नेताओं की नाराजगी नुकसान पहुंचा सकती है. यह भी कारण है कि मंत्रीमंडल में फेरबदल समय की जरूरत बन गया है और इन नेताओं को खुश करने का प्रयास किया जाएगा.

क्या गुजरात जैसे ही मध्यप्रदेश में बीजेपी नेताओं का पत्ता कट सकता है ?

जिस हिसाब से बीजेपी अलग अलग प्रदेशों में चुनाव लड़ रही है उससे एक बात तो तय है कि पार्टी जीतने के लिए अपने नेताओं की बलि देने को तैयार है. साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए जमीन भी मजबूत करने में लगी है.

इसी कड़ी में मध्यप्रदेश में भी कई नेताओं का पत्ता कटने की भी चर्चा गाहे बगाहे निकल ही आती है. जैसे जैसे चुनाव का मौसम नजदीक आ रहा है वैसे वैसे इन चर्चाओं का वजन बढ़ रहा है.

सिंधिया खेमा, शिवराज खेमा, वीडी शर्मा का गुट, कैलाश विजयवर्गीय का गुट इन सभी गुटों के नेताओं के बीच टिकट को लेकर असमंजस बना हुआ है. कई नेताओं के टिकट कट सकते हैं. कई ऐसे हैं जिनका क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है, और कई बार समझाइश भी दी जा चुकी है.

ऐसे में रात्रि भोज में चर्चा यह भी रही कि आखिर किसका पत्ता कटेगा और किसको दोबारा मौका मिलेगा.

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कांग्रेस की चुनौती

ऊपरी तौर पर मध्यप्रदेश के बीजेपी नेता भले ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के असर को नकार रहे हों लेकिन ये बात दबी आवाज में वो भी मानते हैं कि कांग्रेस के कार्यकर्ता इस बार और मेहनत करेंगे और असली चुनौती इन्हीं की मेहनत से मिलती है.

अपनी यात्रा के दौरान एक तरफ जहां आम जन मानस और अपने कार्यकर्ताओं के बीच राहुल गांधी पैदल चल रहे थे वो वहीं दूसरी ओर बीजेपी पर निशाना भी साध रहे थे.

मध्यप्रदेश में बीजेपी को उन्होंने आदिवासी मुद्दों पर भी निशाना बनाया, वनवासी या आदिवासी को लेकर एक विस्तृत बहस छेड़ने में राहुल सफल रहे हैं.

राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कहा था कि BJP और आरएसएस के लोग जय श्री राम बोलते हैं, लेकिन जय सिया राम और हे राम का कभी प्रयोग नहीं करते. उन्होंने कहा कि सीता जी के बिना भगवान राम का नाम अधूरा है -वो एक ही हैं इसीलिए हम 'जय सियाराम' कहते हैं. लेकिन आरएसएस वाले जय सियाराम नहीं कह सकते क्योंकि उनके संगठन में महिलाएं आ ही नहीं सकतीं. जिसमें महिलाएं नहीं सकतीं वो राम का संगठन नहीं हो सकता है.

वहीं दूसरी ओर महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, नर्मदा नदी के किनारे आरती जैसी चीजों से एमपी के कथित सवर्णों में भी पैठ बनाने की कोशिश की है.

अब देखना यह होगा कि सब कुछ ठीक है, कहती हुए बीजेपी कितना कुछ ठीक कर पाती है और चुपचाप पड़ी कांग्रेस कितना शोर मचा पाती है.

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