कांग्रेस में कलह थमने का नाम नहीं ले रही है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब से होते हुए अब ये महाराष्ट्र कांग्रेस तक पहुंच गया है. महाराष्ट्र में सीधा-सीधा वार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के चहेते रहे सचिन सावंत पर हुआ है. सावंत को प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने मुख्य प्रवक्ता पद से डिमोशन कर सिर्फ प्रवक्ता बना दिया है. लेकिन विवाद की असली जड़ 2016 में एनसीपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले अतुल लोंढे बने हैं. क्योंकि नाना ने उन्हें मुख्य प्रवक्ता बना दिया है.
राहुल के करीबियों को हटाने की वजह?
पर ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी के गुडबुक वाले सिर्फ सचिन सावंत ही दरकिनार किए गए हैं. बल्कि इस लिस्ट में विदर्भ के बुलढाणा जिले के अभिजित सकपाळ को सोशल मीडिया के प्रमुख पद से हटा दिया गया है. दरअसल सकपाळ द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस के लिए किए गए कार्यों से खुश होकर हाल ही में खुद राहुल गांधी ने उनकी तारीफ की थी.
इसीलिए महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में अब सवाल पूछा जा रहा है कि क्या राहुल गांधी के गुडबुक वाले लोगों को जानबूझकर महत्वपूर्ण पदों से हटाया जा रहा है? लेकिन प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले खुद भी राहुल गांधी की पसंद से ही चुने गए थे. ऐसे में वो क्यों राहुल समर्थकों को साइडलाइन कर रहे हैं?
इस पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद चुनचुनवार बेहद तीखी टिप्पणी करते हैं. वो कहते हैं,
प्रदेश कांग्रेस की जंबो कार्यकारिणी को गौर से देखने पर वो नागपुर जिला कांग्रेस की कार्यकारिणी अधिक नजर आती है. जहां तक राहुल गांधी के करीबी लोगों को दरकिनार करने का सवाल है, तो नाना पटोले ऐसा दो वजहों से करते नजर आ रहे हैं. पहला ये कि संगठन में उनसे वरिष्ठ या राहुल गांधी के बेहद करीबी लोगों को वो आदेश देने में हिचकिचाहट महसूस कर रहे होंगे. इसलिए जूनियर लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाकर वे संगठन कोे अपने हिसाब से चला सकेंगे.प्रमोद चुनचुनवार, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
चुनचुनवार दूसरी जो वजह बताते हैं वो बेहद दिलचस्प लगती है. उन्होंने कहा कि नाना पटोले खुद राहुल गांधी समर्थक माने जाते हैं. लिहाजा वो महाराष्ट्र में सचिन सावंत या अभिजीत सकपाळ जैसे अन्य राहुल गांधी के करीबियों से खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे होंगे. महाराष्ट्र से उनके अलावा राहुल गांधी के करीब कोई अन्य संगठन का नेता न रहे. इसी दूसरी वजह से भी उन्होंने नई कार्यकारिणी में राहुल गांधी समर्थकों को कम तवज्जो दी होगी.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र और मुंबई कांग्रेस में विवाद का बवंडर उस समय आया है जब मुंबई, नागपुर, ठाणे सहित कई महत्वपूर्ण महानगरपालिकाओं का चुनाव सिर पर है. सावंत ने तो नाराज होकर सीधे सीधे सोनिया गांधी और राहुल गांधी को चिट्ठी लिख दी है.
मुंबई कांग्रेस में भी ऊपर से नीचे तक चल रही किचकिच
सिर्फ महाराष्ट्र में ही खटपट चल रही है, ऐसा नहीं है. दरअसल मुंबई कांग्रेस और मुंबई यूथ कांग्रेस में भी किचकिच चल रही है. गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले सूरज सिंह ठाकुर को जब मुंबई यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनाया गया, तो उन्होंने खुलकर बांद्रा (पूर्व) से पार्टी के विधायक जीशान सिद्दीकी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उधर सिद्दीकी मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप के खिलाफ बांहें चढ़ाए हुए हैं.
दरअसल सिद्दीकी पूर्व राज्यमंत्री बाबा सिद्दीकी के बेटे हैं और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मातोश्री के निवासस्थान वाले बांद्रा (पूर्व) इलाके से विधायक भी हैं. यही वजह है कि जगताप गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले एनएसयूआई से यूथ कांग्रेस तक सफर करने वाले सूरज सिंह ठाकुर को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं. लेकिन दिल्ली में बैठे कांग्रेस के रणनीतिकारों ने सिद्दीकी विधायक होते हुए यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष पद बहाल कर दिया.
विधायक जीशान सिद्दीकी की तरह ही एआईसीसी सदस्य विश्वबंधु राय ने भी मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. राय का आरोप है कि जगताप पार्टी में उत्तर भारतीयों को महत्व नहीं देते हैं. उन्होंने मुंबई बीएमसी चुनाव के मद्देनजर उत्तर भारतीयों की पंचायत सभाओं का आयोजन करने की घोषणा तो कर दी है, लेकिन अभी तक उत्तर भारतीय नेताओं से संपर्क तक करना शुरू नहीं किया है. ध्यान रहे कि किसी समय पूर्व सांसद एवं पूर्व मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष रहे संजय निरुपम के करीबी राय संगठन में महत्व नहीं दिए जाने से खफा हैं.
क्या अंदरूनी विवादों पर पड़ेगा परदा?
अब महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव सचिन सावंत ने तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए नांदेड जिले की देगलूर - बिलोली विधानसभा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार का प्रचार करने की घोषणा की है. उनका साफ-साफ कहना है कि पार्टी में सभी का सम्मान होना चाहिए लेकिन किसी का सम्मान करते हुए दूसरे का अपमान न हो इसका भी खयाल रखा जाना चाहिए. हालांकि उन्होंने अब खुद को संगठन के काम में झोंक देने की कोशिश नए सिरे से शुरू की है.
महाराष्ट्र कांग्रेस के मीडिया सेल में स्थान पाने वाले जाकिर अहमद इस बात से बिल्कुल भी इत्तेफाक नहीं रखते कि पार्टी में किसी नए या फिर राहुल गांधी के करीबी माने जाने वालों को कम महत्व दिया जा रहा है. बहुत कुरेदने के बावजूद उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले के नेतृत्व में पार्टी में सभी जाति धर्म और विभाग के लोगों को स्थान दिया गया है. उनके अध्यक्ष बनने के बाद से संगठन में नया उत्साह निर्माण हुआ है. जिसके बल पर आगामी चुनाव में पार्टी शानदार विजय हासिल करेगी.
पूरा सियासी खेल दिल्ली नहीं महाराष्ट्र स्तर पर हुआ
वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एक्सपर्ट अभिमन्यु शितोले महाराष्ट्र कांग्रेस की जंबो कार्यकारिणी बनने को राजनीतिक दृष्टिकोण से सही बताते हैं. उन्होंने कहा कि,
महाविकास आघाड़ी सरकार में कांग्रेस शामिल भले है, लेकिन उसके पास अपने कार्यकर्ताओं को संगठन में पद बांटने के अलावा और कुछ नहीं है? महामंडलों का बंटवारा भी लटका हुआ है. शुरुआत में जब नाना पटोले ने प्रदेश कार्यकारिणी की एक छोटी कमेटी बनाई और अप्रूवल के लिए प्रदेश के प्रभारी एसके पाटिल के समक्ष रखी, तो उन्होंने इस कमेटी को विस्तारित करने का सुझाव दिया. पाटिल के सुझाव पर पहले 190 पदाधिकारियों की कमेटी बनी, लेकिन उसमें भी कुछ बड़े नेताओं के करीबी छूट गये. तो अब 238 लोगों की जंबो कमेटी बन गई है.अभिमन्यु शितोले, वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एक्सपर्ट
शितोले बताते हैं कि जंबो कमेटी बनाते वक्त नाना पटोले का क्षेत्रीय संतुलन साधने का गणित गड़बड़ा गया है. दरअसल बुरे वक्त में कांग्रेस के साथ खड़े रहने वाले पुराने पदाधिकारियों को संगठन में स्थान देते वक्त उनका प्रमोशन करना चाहिए न कि किसी प्रकार से नाराज. वो साफ शब्दों में कहते हैं कि जंबो कार्यकारिणी का सारा खेल महाराष्ट्र स्तर के नेताओं ने खेला है. दिल्ली के वरिष्ठ पदाधिकारियों की भूमिका महाराष्ट्र से गई सूची को मंजूरी देने भर की रही.
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