महाराष्ट्र(Maharashtra) नगर पंचायत चुनाव में बीजेपी(BJP) सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही. नतीजे बता रहे हैं कि आज भी राज्य में बीजेपी सबसे बड़ी ताकत है लेकिन अगर तीनों विरोधी मिल जाएं तो बीजेपी कहीं नहीं टिकती. ये भी पता जिस ओबीसी आरक्षण को लेकर पार्टियां इतना सर खपा रही थीं उसका दरअसल ग्राउंड पर कोई खास असर नहीं है.
नगर पंचायत चुनाव के आंकड़े?
नगर पंचायत चुनावों में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 384 सीटें जीती. एनसीपी दूसरे नंबर पर रही. 344 सीटों पर जीत हासिल किया. तीसरे नंबर पर कांग्रेस ने 316 और शिवसेना ने 284 सीटें जीती.
इन स्थानीय निकाय चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती लेकिन सबसे ज्यादा नगर पंचायतों पर एनसीपी ने झंडा गाड़ा है. तो वही कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बनी. शिवसेना चौथे नंबर की पार्टी है. सत्ता में शामिल तीनों पार्टी को मिलाकर एमवीए ने 57 पंचायत जीतकर निकाय चुनावों में बाजी मारी. लेकिन अकेले लड़ कर बीजेपी ने भी 25 पंचायत हासिल कर कांटे की टक्कर दी. बता दें कि कई सीटों पर MVA के सहयोगियों में सहयोग था.
एनसीपी के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने जीत के बाद बीजेपी पर हमला बोला है
एनसीपी को साढ़े तीन जिलों की पार्टी कहने वाली बीजेपी को हमारे कार्यकर्तओं ने इन नतीजों के जरिए करारा जवाब दिया है.जयंत पाटिल
हालांकि बीजेपी प्रदेश के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने बीजेपी को नंबर एक पार्टी बताया है.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कांग्रेस के प्रदर्शन को संतोषजनक बताया. पटोले के होम ग्राउंड भंडारा में भले ही उन्हें एनसीपी से मात मिली, लेकिन बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले विदर्भ में कांग्रेस सबसे आगे है और कोंकण में खाता खोला है, जिससे कांग्रेस संतुष्ट नजर आ रही हैं.
सवाल उठता है कि चुनाव में ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण का असर पड़ा?
ओबीसी रिसर्चर प्रोफेसर श्रावण देवरे का मानना है कि इन चुनावों में बीजेपी सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ी लिहाजा सबसे ज्यादा सीटें जीतना स्वाभाविक है. यूपी, बिहार और तमिलनाडु की तरह महाराष्ट्र में ओबीसी के पास राजनीतिक विकल्प नहीं है. यहां ओबीसी के वोट सभी पार्टियों में बंट जाते हैं. वही एमवीए की तीनों पार्टियों में एनसीपी, जिसका ओबीसी मे ज्यादा मराठा वोट बेस है, उसने सबसे ज्यादा पंचायत सीट हासिल की.
राजनीतिक विश्लेषक रवि किरण देशमुख कहते हैं कि स्थानीय निकायों से स्पष्ट हो रहा है कि ओबीसी आरक्षण रद्द होने का असर बड़े पैमाने पर नहीं देखा गया. इसकी वजह ये बताई जा रही है कि स्थानीय चुनाव स्थानीय मुद्दों और नेताओं पर लड़े जाते हैं. इसके अलावा राजनीतिक आरक्षण का मुद्दा आम आदमी के लिए नहीं बल्कि सिर्फ चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसका असर तब देखने को मिलता जब शिक्षा और नौकरी से जुड़े आरक्षण को ठेस पहुंची होती.
महाराष्ट्र में हुए नगर पंचायत के चुनाव ने आरक्षण के मुद्दे के लिए लिटमस टेस्ट का काम किया है. महाराष्ट्र में कुछ ही महीनों में मिनी विधानसभा यानी 28 जिला परिषद, 20 महानगर निगम और 282 नगर पालिकाओं को चुनाव होने वाले हैं. इसमें ओबीसी आरक्षण पर आए नए आदेश का किस तरह से असर होगा ये देखना दिलचस्प होगा.
बता दें कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण दिए जाने की जिम्मेदारी पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपी है. राज्य सरकारों को ओबीसी का उपलब्ध डाटा आयोग को सौंपना होगा. अगले दो हफ्ते के भीतर ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं ये आयोग तय करेगा.
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