ADVERTISEMENTREMOVE AD

मायावती को साथ लाना चाहता है 'INDIA' गठबंधन का एक गुट, लेकिन खड़गे का प्लान अलग है

'INDIA' गठबंधन इस बात पर असमंजस में है कि मायावती को साथ लाने का प्रयास किया जाए या नहीं. इसके 3 पहलू हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

BSP सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने 6 सितंबर को 'INDIA' गठबंधन पर जमकर जुबानी हमला बोला. उन्होंने विपक्षी गठबंधन पर अपना नाम 'इंडिया' रखकर नरेंद्र मोदी सरकार को देश का नाम 'भारत' करने के लिए उकसाने का आरोप लगाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

'INDIA' गठबंधन के भीतर एक गुट है, मुख्य रूप से कांग्रेस के कुछ नेता, जो BSP को अपने साथ लाना चाहता है. हालांकि, गठबंधन पर मायावती के सार्वजनिक रूप से जुबानी हमला बोलने से इस गुट के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं.

माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान, खासकर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की BSP को लेकर एक अलग रणनीति है.

चलिए इस आर्टिकल में हम इन तीन सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं...

  • क्यों कांग्रेस का एक गुट BSP के साथ गठबंधन करने के लिए उत्सुक है?

  • BSP और उसके आधार को लेकर कांग्रेस आलाकमान की रणनीति क्या है?

  • 'INDIA' के साथ गठबंधन पर BSP का स्टैंड क्या है?

क्यों कांग्रेस का एक गुट BSP के साथ गठबंधन करना चाहता है?

उत्तर भारत के एक कांग्रेस नेता ने द क्विंट को बताया

"गठबंधन को BSP की जरूरत है. अगर SP, कांग्रेस और RLD एक साथ आते हैं, तो भी वर्तमान परिस्थितियों में हम अभी भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी से पीछे हैं. अगर मायावती साथ आती हैं तो यह बदल सकता है."
हालांकि, सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, BSP के साथ गठबंधन की वकालत करने वालों का कहना है कि इससे कांग्रेस को हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और उन सभी राज्यों में फायदा हो सकता है, जहां BSP की उपस्थिति है.

कांग्रेस के एक दलित नेता ने द क्विंट से बातचीत में कहा "BSP का मतदाता मूल रूप से बीजेपी विरोधी वोटर है. एक पल के लिए उत्तर प्रदेश को भूल जाइए. अन्य सभी राज्यों में BSP के वोटर ये अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पार्टी जीत नहीं सकती, BSP को वोट दे रहे हैं. यह प्रतिबद्धता का स्तर है. अगर मायावती को सम्मानजनक तरीके से बुलाया जाता है तो ये वोटर INDIA गठबंधन की ओर रुख करेंगे.''

लेकिन BSP के साथ समझौते की कोशिश कर रहा कांग्रेस का एक धड़ा, मायावती की ठंडी प्रतिक्रिया से निराश है.

ऐसे ही एक नेता ने कहा कि आदर्श स्थिति में मायावती देख सकती हैं कि कांग्रेस दलित उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख (बृजलाल खाबरी) की जगह एक भूमिहार (अजय राय) को लेकर आई, जिससे सद्भावना प्रदर्शित हो सके. नेता के अनुसार यह कांग्रेस की तरफ से मायावती को संकेत है कि कांग्रेस यूपी में BSP के आधार को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मल्लिकार्जुन खड़गे का दांव: क्या है कांग्रेस की रणनीति?

कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व, खासतौर पर पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के दिमाग में बहुत अलग रणनीति है.

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि खड़गे BSP के साथ गठबंधन के माध्यम से नहीं बल्कि तीन-आयामी दृष्टिकोण के साथ BSP द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली राजनीति को कांग्रेस में लाने के इच्छुक हैं. जिसमें शामिल हैं-

  • कांग्रेस के भीतर प्रतिनिधित्व बढ़ाना

  • दलित-बहुजन समुदायों की सुरक्षा के लिए कांग्रेस का आक्रामक रुख

  • दलित सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ना

खड़गे ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में व्यक्तिगत रूप से दलित संगठनों तक कांग्रेस की पहुंच बनाई. सर्वे के अनुसार, कांग्रेस ने कर्नाटक में लगभग दो-तिहाई दलित वोट हासिल किए, जो राज्य में हाल के साल में अभूतपूर्व हैं क्योंकि राज्य में दलित वोट बीजेपी और कांग्रेस के बीच लगभग बराबर बंट गया है.

खड़गे एक दलित और बौद्ध हैं. कहा जाता है कि वे दलित, विशेषकर अंबेडकरवादी संगठनों का समर्थन हासिल करने को लेकर आश्वस्त हैं.

उदयनिधि स्टालिन से जुड़े हालिया विवाद पर मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने जो रुख अपनाया है, वह इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है.

स्टालिन द्वारा सनातन धर्म को 'बीमारी' के रूप में आलोचना करने के बाद, प्रियांक खड़गे भी आसानी से अपनी पार्टी के कई साथियों की तरह वही रुख अपना सकते थे कि 'कांग्रेस सभी धर्मों और दृष्टिकोणों का सम्मान करती है.' हालांकि, प्रियांक खड़गे ने खुलेआम कहा कि जो भी धर्म असमानता को बढ़ावा देता है, वह धर्म नहीं है.

इस मामले पर प्रियांक खड़गे की शब्दावली पूरी तरह अंबेडकरवादी थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसके बाद, सोशल मीडिया पर कई मुखर दलित-बहुजन अकाउंट सक्रिय रूप से उदयनिधि स्टालिन और प्रियांक खड़गे के समर्थन में सामने आए, जो असल में कांग्रेस समर्थक नहीं हैं.

यह अंबेडकरवादी वोटर्स, संगठनों और प्रभावशाली लोगों के लिए एक संकेत था कि कांग्रेस एक प्रैक्टिकल विकल्प हो सकती है.

वो अंबेडकरवादी दलित युवा टारगेट हो सकते हैं, जो शायद मायावती के रवैये से बेसब्र हैं और उन्हें नहीं पता कि वो कहां जाएं.

BSP क्या सोच रही?

BSP के मामले में कांग्रेस एक अजीब जगह पर खड़ी है. एक तरफ, पार्टी जानती है कि वह BSP को दूर नहीं कर सकती, खासकर यूपी में जहां अभी भी कोई ऐसा नेता नहीं है, जो मायावती के कद के करीब भी पहुंच सके. दूसरी ओर, कांग्रेस भी खासतौर पर यूपी के बाहर BSP का जनाधार हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसमें दूसरी फैक्टर SP है.

BSP को बीजेपी की सहयोगी बताकर अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनावों में मुसलमानों और कुछ हद तक दलितों के बीच BSP के वोट का एक बड़ा हिस्सा छीनने में कामयाब रहे.

तीन तलाक, UAPA (संशोधन) जैसे मुसलमानों से संबंधित मुद्दों पर मायावती की अपनी अस्पष्टता और बीजेपी से सीधे मुकाबला न करने की इच्छा भी उनके समर्थकों में गिरावट की वजह बनी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

BSP के नेता भी पीछे में कहते हैं कि मायावती को बीजेपी से अधिक SP और कांग्रेस से ज्यादा खतरा लगता है.

SP ने पहले ही यूपी में BSP के अल्पसंख्यक बेस को छीन लिया है. वहीं, कांग्रेस ने राजस्थान में BSP विधायक को अपने पाले में कर लिया है और खड़गे के नेतृत्व में BSP के कोर वोटर्स को छीनने की कोशिश है. पर इसका एक दूसरा पहलू भी है.

BSP को डर है कि INDIA गठबंधन में अन्य दलों के साथ संबंधों और कांग्रेस और वामपंथियों के साथ पुराने संबंधों के कारण SP का दबदबा हमेशा अधिक रहेगा. फिर खड़गे और गांधी परिवार के बाद दूसरे नंबर की भूमिका निभाने की संभावना है.

BSP में कई लोग यह भी महसूस करते हैं कि NDA और 'INDIA', दोनों अगड़ी जातियों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक हिंदुत्व का उपयोग करता है और दूसरा धर्मनिरपेक्षता का उपयोग उत्पीड़ित जातियों की चिंताओं को दरकिनार करने के लिए करता है.

ऐसी स्थिति में, मायावती शायद NDA और 'INDIA' से समान दूरी बनाए रखने में अधिक सहज महसूस करती हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि 'INDIA' गठबंधन पर आक्रामक जुबानी हमलों का उद्देश्य BSP के मूल वोट बैंक का अनुचित फायदा उठाने से रोकना है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×