नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने से केवल कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि राज्य में विपक्षी दलों के भी सियासी समीकरण बदल गए हैं. AAP का समर्थन पिछले कुछ महीनों में काफी बढ़ा है, लेकिन सिद्धू को कांग्रेस पार्टी द्वारा पंजाब प्रदेश अध्यक्ष चुनने के बाद AAP अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है.
यह लेख निम्नलिखित पांच सवालों के जवाब देगा
आप पार्टी की रणनीति में क्या बदलाव आयेगा?
सिद्धू को लेकर आप पार्टी ने क्या सोचा था?
पंजाब में आप की क्या स्थिति है?
सिद्धू आप पार्टी के लिए कैसे खतरा हैं?
आगे क्या हो सकता है?
आम आदमी पार्टी की रणनीति में बदलाव
कुछ समय पहले तक AAP पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार और पिछली बार राज्य में सत्ता में रही आकाली-भाजपा दल पर तो राजनीतिक हमला कर रही थी लेकिन पार्टी ने सिद्धू के खिलाफ कुछ नहीं बोला. AAP के संयोजक अरविंद केजरीवाल तो पिछले महीने तक कह रहे थे कि, "सिद्धू का आम आदमी पार्टी में शामिल होने के लिए स्वागत है." जब यह साफ हो गया कि सिद्धू कांग्रेस में ही रहेंगे. तो AAP ने सिद्धू पर उनके बकाया बिजली बिल न देने का आरोप लगाया.
आखिरी हफ्ते ही AAP की पंजाब इकाई के अध्यक्ष भगवंत मान ने सिद्धू के तकिया कलाम 'ठोको ताली' की जगह 'ठोको ट्वीट' का इस्तेमाल कर उन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह राज्य में हुए बिजली खरीद समझौते के खिलाफ बोले. हाल में आप द्वारा सिद्धू पर किए गए इन हमलों ने पार्टी के उनके प्रति नरम रवैये को खत्म कर दिया.
AAP ने सिद्धू को लेकर क्या सोचा था?
AAP पिछले महीने तक कह रही थी कि सिद्धू का "पार्टी में शामिल होने के लिए स्वागत है." पार्टी ने उन्हें कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं दिया जिससे कि वह AAP पार्टी में शामिल हो जाए. आप का नेतृत्व स्पष्ट था कि वह सिद्धू को पार्टी की ओर से पंजाब के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती. यह राज्य में AAP के मौजूदा नेतृत्व या फिर सिद्धू के बहुत ज्यादा स्वतंत्र होने की आशंका के कारण हो सकता है.
AAP चाहती थी कि सिद्धू कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अपना कोई दल बना लें ताकि काग्रेंस के चुनाव जीतने की संभावना कम हो जाए. AAP में सिद्धू का शामिल हो जाना कोई बात थी. इसका परिणाम यह हुआ कि सिद्धू ने कांग्रेस छोड़ने के बजाए पार्टी में ही बेहतर मौके की तलाश की.
AAP की पंजाब में अभी क्या स्थिति है?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंजाब बदलाव चाहता है. सभी राजनीतिक वर्ग में काफी असंतोष भी है. AAP भी इससे अछूता नहीं है. ज्यादा गुस्सा शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस से है क्योंकि इन दोनों दलों का पिछले पांच दशकों से पंजाब की राजनीति में प्रभुत्व है.
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के गुस्से की वजह से भाजपा की स्थिति इससे भी ज्यादा खराब है. भाजपा के नेता तो छोटी जनसभाएं और मीटिंग भी नहीं कर पा रहे हैं.
पंजाब के कई मतदाताओं के बीच यह आम धारणा बन रही है कि, "हमने सभी दलों को मौका दिया है. इस बार AAP को एक बार मौका देना चाहिए " पंजाब में असंतोष का फायदा AAP को हो रहा है. पार्टी को उम्मीद थी कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से पार्टी के समर्थन में हुई गिरावट और क्षेत्र माझा और दोआबा में पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी दूर होगी.
सिद्धू AAP के लिए क्यों खतरा है?
कांग्रेस नेतृत्व द्वारा पंजाब की कमान नवजोत सिंह सिद्धू को सौंपने के बाद AAP के लिए मामला जटिल बन गया है. सिद्धू भाजपा में 2004 से 2016 तक और कांग्रेस में 2017 से अब तक रहने के दौरान भी वह हमेशा अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ बोलते रहे हैं. उन्होंने भाजपा में रहते हुए अपने ही गठबंधन दल शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व करने वाले बादल परिवार, कांग्रेस में रहते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह के भी आलोचक रहे हैं.
बादल परिवार और कैप्टन जिन्हें कि एक मजबूत राजनेता के रूप में देखा जाता है. ऐसा सिद्धू के मामले में नहीं था. उन्होंने तो पहले क्रिकेट से करियर की शुरुआत की थी. फिर वह मैच में कॉमेंट्री, कॉमेडी शो में जज और रिएलिटी शो बिग बॉस में आकर टीवी पर्सनैलिटी के रूप में प्रसिद्ध हुए. AAP की तरह सिद्धू भी पंजाब की राजनीति में बदलाव का वादा करते रहे हैं. इस कारण दोनों एक ही वर्ग के वोट पाने के लिए लड़ रहे हैं.
क्या जो मतदाता बदलाव चाहते हैं? वह AAP को मौका देंगे या फिर सिद्धू को अपने नए नेता के रूप में चुनेंगे? यह सवाल ही तय कर सकता है कि आगे पंजाब में क्या होगा?
अब आगे क्या?
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस अपने दो सत्ता के केंद्रों को कैसे संभालती है- सीएम के रूप में कैप्टन को और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सिद्धू को.
सिद्धू के पंजाब कांग्रेस की कमान संभालने के बाद यह संभव है कि उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में उनकी काफी महत्वपूर्ण भूमिका हो. हालांकि मौजूदा विधायकों के बहुमत को अपने पक्ष में करने के उनके शुरुआती कदम से तो यह संकेत मिलता है कि वह इनमें से कई विधायक को आगामी विधानसभा चुनाव में भी टिकट देंगे.
यह फैसला सिद्धू को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि कई विधायक सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं. कांग्रेस को यह भी फैसला करना है कि पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से सीएम का चेहरा कैप्टन होंगे या फिर सिद्धू?
कांग्रेस अपने दोनों नेताओं को प्रोजेक्ट करने का विकल्प चुनती है तो बदलाव के चेहरे के रूप में सिद्धू की पिच फिर से कमजोर हो जाएगी. AAP की बात करें तो तो उसे दोआबा और माझा क्षेत्र में अपनी संगठनात्मक कमजोरियों को दूर करने के साथ ही राज्य के हिंदुओं के वोट के लिए अधिक मेहनत करनी होगी. सिद्धू माझा के ही रहने वाले हैं और उनकी नियुक्ति क्षेत्र में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा सकती है.
आप के पास माझा और दोआबा एरिया में कोई मजबूत चेहरा नहीं होने के कारण उसे इस पर ध्यान देना होगा. पार्टी के पास पंजाब में कोई विश्वसनीय हिंदू चेहरा भी नहीं है. फिलहाल AAP पार्टी पूर्व पुलिस अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह को प्रोजेक्ट कर यह कमी पूरी करने की कोशिश कर रही है.
AAP पार्टी माझा के शहरी क्षेत्र की किसी एक सीट से कुंवर विजय को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे सकती है. कुंवर विजय को एक हिंदू नेता के रूप में नहीं देखा जाता. वह इतने बड़े नहीं हैं कि कांग्रेस को मिलने वाले हिंदू मतों को AAP के पक्ष में कर लें. ऐसी स्थिति में उनके पास एक ही उम्मीद है कि भाजपा को मिलने वाले वोटों से रणनीतिक बदलाव हो सकता है.
कांग्रेस को अपने हिंदू वोटों को बनाए रखने के लिए अपनी रणनीति पर फिर से काम करना होगा. कैप्टन अमरिंदर सिंह की हिंदू मतदाताओं में एक हद तक पहुंच थी. यह अभी साफ नहीं है कि क्या सिद्धू भी हिंदुओं के बीच ऐसा समर्थन हासिल कर पाएंगे या नहीं.
आने वाले कुछ हफ्तों में AAP को अगर पता चलता है कि पंजाब में उसका समर्थन कम हो रहा है तो उसे शिरोमणि अकाली दल छोड़ चुके सुखदेव सिंह ढींडसा और रणजीत सिंह ब्रह्मापुरा जैसे नेताओं के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. पार्टी इन नेताओं के साथ बातचीत कर रही है.
यह स्पष्ट है कि पंजाब की राजनीति में एक दिलचस्प मंथन चल रहा है, जिसमें AAP और सिद्धू के नेतृत्व वाली कांग्रेस दोनों ही बदलाव का वादा कर रही हैं.ऐसे में यह भी महत्वपूर्ण है कि बादल और कैप्टन को कम न आंकें, ये दोनों ही पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य में कहीं अधिक जड़ें जमाए हुए हैं.उस पर और बाद में.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)