ADVERTISEMENTREMOVE AD

कृषि कानूनों को वापस लेने से था इंकार, 4 कारणों से झुकी मोदी सरकार

12 दौर की बैठकों के बावजूद कृषि कानूनों पर टस से मस ना होने वाली मोदी सरकार को अचानक क्यों झुकना पड़ा ?

Published
न्यूज
3 min read
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया . लेकिन इस एलान के साथ एक सवाल खड़ा हुआ कि किसान नेताओं के साथ 12 दौर की बैठकों के बावजूद कृषि कानूनों पर टस से मस ना होने वाली मोदी सरकार को अचानक क्यों झुकना पड़ा ?

0

नंबर 1-डटे रहे किसान, पीछे हटी सरकार

ठंड, गर्मी, बरसात की परवाह किए बिना किसान दिल्ली की सीमीओं पर डटे रहे. 600 से ज्यादा किसानों की मौत और तमाम दिक्कतों के बाद भी आंदोलन पर असर नहीं पड़ा और यह चलता रहा. सरकार ने किसानों को दिल्ली बॉर्डर से हटाने के कई प्रपंच किए. लोहे की कीलें, लाठीचार्ज, केस पर केस, बीजेपी नेताओं और भक्तों ने किसानों को बदनाम करने की मुहिम चलाई, लेकिन किया जमे रहे. अब सरकार के पास कोई उपाय बचा नहीं था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नंबर 2-चुनावी फैक्टर

इस आंदोलन के खत्म होन की सबसे बड़ी वजह चुनावों को माना जा रहा है. अगले साल की शुरुआत में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें पंजाब, यूपी, उत्तराखंड भी शामिल हैं. पश्चिमी यूपी के किसानों ने कृषि कानूनों का भारी विरोध किया है. किसान नेता राकेश टिकैत पश्चिमी यूपी से ही आते हैं, उनका सबसे ज्यादा प्रभाव यूपी और हरियाणा में ही माना जाता है.

कृषि कानूनों के कारण इस इलाके में बीजेपी का नेताओं का भारी विरोध शुरू हो गया. कई जगहों पर केंद्रीय मंत्रियों, विधायकों, सांसदों को किसानों ने घेरना शुरू किया, कई बार मारपीट तक की स्थिति आ गई. सी-वोटर एबीपी के एक हालिया सर्वे में यूपी में बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले 100 से ज्यादा सीटों के नुकसान का अनुमान जताया गया है. तो ये पैनिक बटन दबने का कारण हो सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पंजाब में भी चुनाव होना है. ये शुरुआत से इस आंदोलन का केंद्र रहा है, किसान आंदोलन में शामिल होने वाले सबसे ज्यादा किसान इसी राज्य से हैं. पंजाब में भी अगले साल की शुरुआत में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. पुरानी सहयोगी शिरोमणी अकाली दल कृषि कानूनों के मुद्दे पर बीजेपी और एनडीए से अलग हो चुकी है. पंजाब में बीजेपी की स्थिति ज्यादा मजबूत कभी नहीं रही, लेकिन आंदोलन की वजह से वह पंजाब में पहले से भी ज्यादा कमजोर हो गई है.

उत्तर प्रदेश से सटे उत्तराखंड के इलाकों के किसान भी कृषि कानूनों का विरोध कर रहे है. चुनावी साल में पहाड़ी राज्य में बीजेपी किसान आंदोलन की वजह से कोई नुकसान उठाए से बचना चाह रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तीसरी वजह-लीगल फैक्टर

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 12 जनवरी को कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी थी, कोर्ट ने मामले के समाधान के लिए एक 3 सदस्यीय कमिटी का भी गठन किया है. सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचीत के बाद इस कमिटी ने इसी साल मार्च में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है, हालांकि 6 महीने से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है.

मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. माना जा रहा है कि कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक के बाद सरकार के पास इस मामले खोने के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं था, साथ ही डर ये भी था कि अगर कोर्ट ने किसानों के पक्ष में फैसला दिया तो फजीहत और होगी. ये भी कानूनों के वापस लेने की बड़ी वजह माना जा रही है

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चौथी वजह-लखीमपुर खीरी कांड बना टर्निंग प्वाइंट

3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में किसानों पर गाड़ी चढ़ाने और उसके बाद हुई हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गई. पूरी घटना का मुख्य आरोपी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा आशीष मिश्र है. इस घटना के बाद से ही केंद्र सरकार बैकफुट पर आ गई. पूरे प्रकरण में बीजेपी को लेकर एक नकारात्मक संदेश आम लोगों में गया.

अभी के कुछ और कारणों की बात करें तो 26 नवंबर यानी जब आंदोलन को एक साल हो रहे हैं, तब तक किसानों ने यूपी से लेकर दिल्ली तक बड़े प्रदर्शन प्लान कर रखे थे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×