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कीर्ति आजाद, अशोक तंवर और पवन वर्मा TMC में शामिल, कितना होगा ममता को फायदा?

अशोक तंवर ने 2019 में कांग्रेस छोड़ी थी, कीर्ति आजाद बीजेपी के बाद अब कांग्रेस में थे, पवन वर्मा जेडीयू में रहे हैं.

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भारत
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गोवा, त्रिपुरा, असम, यूपी और अब हरियाणा-बिहार...क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (mamta banerjee) खुद को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देख रही हैं और पार्टी को बढ़ाने में जुटी हैं. हाल फिलहाल के उनके फैसले तो इसी ओर इशारा करते हैं. उनके कई समर्थक कहते भी हैं कि ममता बनर्जी पीएम बनने की काबिलियत रखती हैं. इसी रास्ते पर कदम बढ़ाते हुए 23 नवंबर को ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद (kirti Azad), पूर्व जेडीयू जेडीयू नेता पवन वर्मा (pavan varma) और कांग्रेस के पूर्व नेता अशोक तंवर (Ashok Tanwar) को पार्टी में शामिल कराया.

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अशोक तंवर हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं, कीर्ति आजाद बिहार से आते हैं और पवन वर्मा जेडीयू में कई बड़े पदों पर रहे हैं.
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कौन हैं अशोक तंवर?

अशोक तंवर हरियाणा के झज्जर से आते हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनका राजनीतिक क्षेत्र सिरसा रहा है. अशोक तंवर ने एक बार सांसदी का चुनाव जीता है जो उन्होंने सिरसा से लड़ा था. लेकिन अशोक तंवर ने संगठन में कई अहम पदों पर काम किया है. एनएसयूआई से अपनी राजनीति की शुरआत करने वाले अशोक तंवर 2014 से 2019 तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. एक समय उन्हें हरिय़ाणा में राहुल गांधी की युवा टीम का सबसे अहम हिस्सा कहा जाता था, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले अशोक तंवर ने कांग्रेस छोड़ दी थी.

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अशोक तंवर का हरियाणा में कितना असर?

हरियाणा में करीब 20 फीसदी दलित वोटर हैं और अशोक तंवर दलित समुदाय से ही आते हैं, हालांकि वो एक बार ही लोकसभा चुनाव जीत पाए हैं लेकिन संगठन मं लंबे समय तक काम करने का अनुभव उनके पास है. हालांकि कांग्रेस ने उनके बाद दलित समुदाय से आने वाली ही कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. लेकिन अशोक तंवर की अपनी पहचान सिरसा और अंबाला जैसे जिलों में उनकी पकड़ है. हालांकि ये पकड़ चुनाव जीतने में काम आएगी ये कहना जरा मुश्किल है क्योंकि चुनावी राजनीति में अशोक तंवर कोई बहुत कामयाब नहीं रहे हैं.

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कांग्रेस क्यों छोड़ी और टीएमसी क्यों चुनी?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ अशोक तंवर का 36 का आंकड़ा है. दोनों में कभी नहीं बनी, जब तक वो कांग्रेस में थे हमेशा कांग्रेस दो खेमों में बंटी रही. 2019 में अशोक तंवर को हुड्डा की जिद की वजह से ही प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया था, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया.

अशोक तंवर बीजेपी या इनेलो को छोड़कर टीएमसी में इसलिए गए क्योंकि बीजेपी से उनका वैचारिक मतभेद है और वो खाटी कांग्रेसी रहे हैं. इनेलो से वो हमेशा सिरसा में ग्राउंड पर लड़ते रहे हैं और जेजेपी भी इनेलो से ही निकली है तो अशोक तंवर के पास बहुत ज्यादा ऑप्शन नहीं थे. इसके अलावा हरियाणा के बाहर वो नई शुरुआत तो अब कर नहीं सकते थे.

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कीर्ति आजाद कौन हैं?

कीर्ति आजाद 1983 में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं. पहले कीर्ति आजाद बीजेपी में हुआ करते थे और 1999, 2009 के अलावा 2014 में दरभंगा से बीजेपी के टिकट पर ही जीतकर भी आते रहे. लेकिन उन्होंने डीडीसीए को लेकर दिवंगत अरुण जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, जिसके बाद उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और उनकी पत्नी भी आम आदमी पार्टी में होते हुए कांग्रेस में आ गईं.

कीर्ति आजाद के पिता भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्र रह चुके हैं. अब कीर्ति आजाद कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में आ गए हैं.
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पवन वर्मा कौन हैं?

पवन वर्मा जेडीयू के कद्दावर नेता रहे हैं और प्रशांत किशोर को जेडीयू में लाने में उनकी बड़ी भूमिका थी. वर्मा पहले भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी रहे हैं. जेडीयू ने 2014 में पवन वर्मा को राज्यसभा भेजा था, जहां वो 2016 तक सांसद रहे. पवन वर्मा जेडीयू के बीजेपी से गठबंधन के खिलाफ थे, जिसके बाद पवन वर्मा को प्रशांत किशोर के साथ ही पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में जेडीयू से निकाला गया था. पवन वर्मा को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था और वो नीतीश कुमार के सलाहकार भी रह चुके हैं.

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कीर्ती आजाद और पवन वर्मा का बिहार में असर?

पवन वर्मा को भले ही चुनावी राजनीति का बहुत अनुभव ना हो लेकिन वो नीतीश के लिए रणनीति बनाते रहे हैं और कई पदों पर रहे हैं. इसलिए संगठन का उन्हें ठीक-ठाक अनुभव है.

अगर कीर्ति आजाद की बात करें तो उनके पिता बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वो तीन बार दरभंगा से सांसद रहे हैं और भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा होने की वजह से भी उनकी अपनी पहचान है. इसलिए टीएमसी के लिए कीर्ति आजाद बिहार में बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं.

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क्या बिहार और हरियाणा में चुनाव लड़ेगी TMC?

अभी टीएमसी ने यहां चुनाव लड़ने का ऐलान तो नहीं किया है लेकिन जिस तरह से पश्चिम बंगाल के बाहर ममता बनर्जी कदम बढ़ा रही हैं, तो इनकार भी नहीं किया जा सकता है और बहुत मुमकिन है कि ये नेता आने वाले वक्त में अपने-अपने राज्यों में टीएमसी के लिए बड़ी भूमिका निभाते नजर आयें, क्योंकि हरियाणा और बिहार के चुनाव मे अभी वक्त है और हो सकता है ममता ये तैयारी 2024 को नजर में रखकर कर रही हों.

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यूपी चुनाव पर भी ममता की नजर

उत्तर प्रदेश में भी ममता बनर्जी की पार्टी एंट्री मारने की कोशिश कर रही है. हाल ही में टीएमसी ने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमला पति त्रिपाठी के परिवार से राजेश पति त्रिपाठी और ललितेश पति त्रिपाठी को कांग्रेस से शामिल किया है. जिसके बाद यूपी में चुनाव में टीएमसी के कूदने के कयास लगाए जा रहे हैं. हो सकता है समाजवादी पार्टी के साथ ममता बनर्जी की पार्टी का गठबंधन भी हो जाये.

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