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RSS की तुलना PFI से: बीजेपी के इतने विरोध के बावजूद चुप क्यों हैं नीतीश कुमार?

Bihar Politics: एक बार फिर BJP-JDU आमने-सामने, किसका पलड़ा भारी?

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बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नीतीश कुमार (nitish Kumar) की जनता दल यूनाइटेड (JDU) में खटपट की खबरें एक बार फिर सामने आई हैं. वजह मंत्री पद या नेताओं की तू-तू मैं-मैं नही, बल्कि पटना के SSP मानवजीत सिंह ढिल्लो (Manavjit Singh Dhillon) हैं. दरअसल, पटना के एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने पटना में पकड़े गए टेटर मॉड्यूल के दो संदिग्धों के बारे में जानकारी देते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की तुलना RSS से करकर विवाद खड़ा कर दिया था.

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ढिल्लो ने 14 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कहा,

"जिस तरह से RSS की शाखा होती है और स्वयंसेवकों को ट्रेनिंग दी जाती है, ठीक उसी तरह से PFI भी अपने लोगों को शारीरिक प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देता है."

बस फिर क्या था ढिल्लो के इस बयान के बाद बिहार में बवाल शुरू हो गया. बीजेपी ढिल्लो के बर्खास्तगी की मांग करने लगी. जगह-जगह ढिल्लो के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे. बीजेपी के दरभंगा के सांसद गोपालजी ठाकुर ने तो यहां तक मांग कर दी कि मानवजीत सिंह ढिल्लो के आतंकियों से रिश्ते की जांच हो जाए.

'चिल मोड' में क्यों हैं नीतीश कुमार एंड पार्टी?

इस पूरे मामले में बिहार सरकार में गठबंधन की दूसरी पार्टनर जेडीयू 'चिल' दिख रही है. जहां बीजेपी आक्रामक है वहीं जेडीयू शांत. नीतीश कुमार के पास बिहार मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृह मंत्रालय भी, जिस वजह से बीजेपी नीतीश पर ढिल्लो के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही थी, लेकिन नीतीश कुमार ने इस पूरे मामले पर चुप्पी साध रखी है.

पटना कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल और इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके नवल किशोर चौधरी नीतीश कुमार और जेडीयू की इस 'स्ट्रैटेजी' पर कहते हैं कि नीतीश भले ही बीजेपी के साथ सरकार में हों लेकिन वो कभी भी आरएसएस के साथ खड़े नहीं दिखे हैं.

नवल किशोर कहते हैं,

इस बार भी नीतीश के स्टैंड को लेकर चौंकना नहीं चाहिए, क्योंकि नीतीश की छवि सेक्यूलर और प्रोग्रेसिव नेताओं की है, नीतीश समाजवाद की राजनीति करने वालों में से हैं, इसलिए वो कभी भी खुद को किसी एक धर्म से जोड़कर नहीं रखते हैं."

बता दें कि बीजेपी के बड़े से लेकर छोटे नेता ढिल्लो पर एक्शन की मांग कर रहे हैं लेकिन जेडीयू मानवजीत सिंह ढिल्लो की बचाव में नजर आ रही है.

जेडीयू नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा, जिस बयान को लेकर हंगामा है, वो राजनीति का मामला नहीं है, अगर पटना एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने कोई गलती की होगी तो सर्विस कोड के मुताबिक कार्रवाई करने की जिनकी जवाबदेही है, वे देखेंगे. यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है.

यही नहीं आरएसएस और पीएफआई की तूलना के सवाल पर भी उपेन्द्र कुशवाहा ने बीच का रास्ता चुना और कह दिया कि आरएसएस और पीएफआई को पॉजिटिव या निगेटिव सर्टिफीकेट नहीं देने वाले हम लोग कौन होते हैं, वो तो एजेंसी का काम है.
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कहा जाता है कि आरएसएस की बुनियाद पर ही बीजेपी खड़ी है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे नेता संघ से ही आए हैं. जिस वजह से भी एसएसपी के बयान पर बीजेपी आक्रामक है.

"आरएसएस पर टिप्पणी करने वाले सरकार में मंत्री"

जहां बीजेपी आरएसएस के समर्थन में धरना से लेकर बयान दे रही है वहीं नीतीश कुमार की पार्टी के नेता और बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने तो यहां तक कह दिया कि बहुत से लोगों ने पहले भी आरएसएस पर टिप्पणी की और वो लोग आज केंद्र में मंत्री बने बैठे हैं, बीजेपी में हैं, इसलिए इन सब बात को छोड़िए.

दिल के खुश रखने को गालिब यह ख्याल अच्छा है

शायर मिर्जा गालिब को वो शेर है न कि 'हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है', वैसा ही कुछ बीजेपी के साथ भी हुआ है. जब मामला तूल पकड़ा तो बिहार के एडीजी मुख्यालय ने एसएसपी को 'कारण बताओ नोटिस' जारी किया. एडीजी पुलिस मुख्यालय जितेंद्र सिंह गंगवार ने पटना के पुलिस कप्तान मानवजीत सिंह ढिल्लो से नोटिस के जरिए पूछा कि ''आखिर ऐसा बयान क्यों दिया.''

वहीं एसएसपी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने भी मीडिया के सामने आकर जवाब दिया और कहा कि आरोपियों से पूछताछ के दौरान उन्होंने जो कहा वहीं मैंने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा. ढिल्लो ने कहा, मेरे बयान का गलत मतलब निकाला गया. हमने वही कहा जो दस्तावेजों में लिखा था और पूछताछ के दौरान जब आरोपियों से उनके काम करने के तरीके के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा -'जैसे अन्य संगठन अपने लोगों को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने के नाम पर प्रशिक्षण देते हैं.' हालांकि ढिल्लो से जवाब मांगने के अलावा कोई बड़ा एक्शन नहीं हुआ.

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क्यों नीतीश शांत हैं, क्यों बीजेपी कुछ नहीं कर पा रही?

पटना कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल और बिहार की राजनीति समझ रखने वाले नवल किशोर कहते हैं,

"नीतीश कुमार भले ही कितना बीजेपी के स्टैंड के खिलाफ चले जाएं, लेकिन बीजेपी उन्हें छोड़ नहीं सकती है, क्योंकि बीजेपी सत्ता हाथ से जाने नहीं दे सकती है. जब बीजेपी सत्ता के लिए कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी से समझौता कर सकती है तो नीतीश से इस मुद्दे पर नाराज होकर क्या होगा."

वहीं नवल किशोर नीतीश कुमार के बारे में कहते हैं कि नीतीश कभी भी अपने दरवाजें बंद नहीं रखना चाहते हैं, वो बीजेपी के साथ होकर भी उसकी विचारधारा से अलग रहते हैं. अगर मान लीजिए कल बीजेपी से अलग होने का मौका मिले तब नीतीश के पास दूसरी पार्टियों से मिलने का रास्ता बना रहेगा. क्योंकि उनकी छवि ही ऐसी है.

कुल मिलाकर इस पूरे मामले में भले ही बीजेपी आरएसएस को लेकर भावुक हो या आक्रामक हो लेकिन नीतीश कुमार का पलड़ा साफ भारी दिख रहा है. नीतीश कम सीट के बाद भी मजबूत दिख रहे हैं.

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नीतीश बीजेपी पर पहले भी चलाते रहे हैं 'तीर'

तीर के निशान वाली जेडीयू की पहचान नीतीश कुमार पहली बार बीजेपी के स्टेंड से अलग नहीं दिख रहे हैं, इससे पहले भी कई मौकों पर वो बीजेपी से बिल्कुल अलग दिखे हैं. चाहे पीएम मोदी के रहते हुए जनता दल यूनाइटेड (JDU) की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताने का प्रस्ताव पास कराना हो या फिर जातीय जनगणना के मामले पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ दिखना हो.

नीतीश ने इससे पहले भी बीजेपी के खिलाफ पॉपुलेशन कंट्रोल पर कानून के मुद्दे पर अलग स्टैंड लिया था. नीतीश ने साफ कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि जरूरी यह है कि लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित किया जाए. ताकि प्रजनन दर में खुद-ब-खुद कमी आए.

इसके अलावा जिस नागरिकता संशोधन कानून पर बीजेपी आक्रामक थी वहीं यहां भी मोदी सरकार से उलट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनआरसी और एनपीआर को लेकर कहा था कि ये बिहार में लागू नहीं होगा. हालांकि संसद में जेडीयू ने केंद्र के नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया था.

लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी ने भी नीतीश को उनकी घटती सीटों और कमजोर जनाधार का ऐहासास बार-बार कराया है. चाहे वो बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की बात हो या जातीय जनगणना के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना हो.

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