17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना में कार्यरत सभी महिला अधिकारियों पर परमानेंट कमीशन लागू होगा. कोर्ट ने केंद्र को 3 महीने के अंदर सेना की सभी महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने का निर्देश दिया है. अब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर निशाना साधाऔर कहा है कि केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में तर्क हर भारतीय महिला का अपमान करने वाला है.
महिला आर्मी ऑफिसर कमांड पोस्ट या परमानेंट सर्विस के लायक नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का ये तर्क हर भारतीय महिला का अपमान करने वाला है. मैं भारतीय महिलाओं को आवाज उठाने और बीजेपी सरकार को गलत ठहराने के लिए बधाई देता हूं.राहुल गांधी
पूरा मामला क्या है?
दरअसल, सभी महिला अधिकारियों पर परमानेंट कमीशन लागू करने का फैसला इसी मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट के साल 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र की अपील पर सुनवाई करते हुए आया है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र की उस दलील को नकार दिया, जिसमें उसने महिला अधिकारियों की ‘शारीरिक क्षमता’ और सामाजिक मान्यताओं का हवाला दिया था. बेंच ने केंद्र से कहा कि सैन्य बलों में लैंगिक भेदभाव खत्म करने के लिए मानसिकता बदलने की जरूरत है.
कोर्ट ने लगाई केंद्र को फटकार
कोर्ट ने कहा कि शारीरिक क्षमता को लेकर केंद्र की दलील गलत धारणा पर आधारित है और उनको (महिलाओं को) समान मौके से रोकने का कोई संवैधानिक आधार नहीं है. बार एंड बेंच के मुताबिक, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि महिलाओं को कमजोर समझना एक गलत धारणा है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेना में महिला अधिकारी कमांड पोस्टिंग के लिए भी एलिजिबल होंगी. कोर्ट ने कहा है कि महिला अधिकारियों को कमांड पोस्ट देने पर पूरी तरह रोक तर्कहीन और समानता के अधिकार के खिलाफ है. एनडीटीवी के मुताबिक, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने अपने फैसले में कहा, ''महिलाओं की शारीरिक रूपरेखा का उनके अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है. मानसिकता को बदलने की जरूरत है.''
केंद्र ने दलील दी थी कि सेना में ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले पुरुषों की बड़ी संख्या है, जो अभी भी यूनिट्स की कमांड में महिला अधिकारियों को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने की अनुमति देने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर कोई रोक ना होने के बावजूद भी केंद्र ने इसे लागू नहीं किया.
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