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प्रशांत किशोर की गांधी परिवार से मुलाकात: एजेंडा क्या था और आगे क्या होगा?

Congress में कुछ लोग Prashant Kishor को विपक्षी एकता का सूत्रधार मानते हैं

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राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और कांग्रेस नेतृत्व (Congress leadership) के बीच राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के आवास पर हुई बैठक के कई मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा था कि ये अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर हुई है. लेकिन ऐसा लगता है कि बैठक उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी.

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बताया जा रहा है कि राहुल और प्रियंका गांधी दोनों इस बैठक में मौजूद रहे, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी 'वर्चुअल' तरीके से जुड़ीं. केसी वेणुगोपाल और हरीश रावत जैसे दो दिग्गज नेता और महासचिव भी राहुल के आवास में जाते देखे गए थे. अटकलें लगाई गई हैं कि ये दोनों भी बैठक में मौजूद रहे थे.

ये लेख तीन बातों को प्रमुखता से देखेगा.

  • एजेंडा क्या था?

  • बैठक क्यों महत्वपूर्ण थी?

  • आगे क्या होगा?

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एजेंडा क्या था?

शुरुआती अटकलें कह रही थीं कि बैठक का फोकस पंजाब कांग्रेस का संकट है. इसकी एक वजह प्रशांत किशोर का पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का सलाहकार होना हो सकता है. हालांकि, बाद में साफ हो गया कि बैठक इससे बढ़कर थी.

एक पार्टी नेता ने कहा, "वो एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत हैं. सामान्य है कि वो पार्टी नेतृत्व से मिलेंगे तो चर्चा राष्ट्रीय स्तर की होगी, न कि सिर्फ एक राज्य पर."

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ एक संगठित विपक्ष खड़ा करना चर्चा का विषय रहा है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, किशोर ने कांग्रेस नेतृत्व को बताया है कि अगर सभी विपक्षी दल साथ आ जाएं तो बीजेपी के राष्ट्रपति उम्मीदवार को 2022 में हराया जा सकता है.

कांग्रेस में कुछ लोग प्रशांत को विपक्षी एकता का सूत्रधार मानते हैं. ऐसी भी अफवाहें हैं कि वो भविष्य में पार्टी में शामिल हो सकते हैं.

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बैठक क्यों महत्वपूर्ण थी?

प्रशांत किशोर का कांग्रेस के साथ 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों में साथ आना सकारात्मक नहीं रहा था. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा था.

इसके बाद से ही किशोर के साथ किसी तरह के संबंध को लेकर पार्टी और खासकर राहुल में संशय की बातें सामने आई हैं. हालांकि, किशोर और गांधी परिवार के बीच संपर्क का माध्यम बना हुआ है और माना जाता है कि प्रशांत और प्रियंका का रिश्ता अच्छा है.

कांग्रेस में किशोर के खिलाफ उठने वाले स्वरों की वजह ये भी है कि उनके दो बड़े क्लाइंट वो पार्टियां हैं जो कांग्रेस से अलग हुई हैं- आंध्र प्रदेश में YSRCP और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस. जब प्रशांत ने तमिलनाडु में DMK का कैंपेन संभाला था तो कहा जाता है कि उन्होंने पार्टी से कांग्रेस के साथ सीट-शेयरिंग पर आक्रामक रवैया अपनाने को कहा था.
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किशोर की एनसीपी चीफ शरद पवार और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे समेत कई गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों के साथ मुलाकात से भी कांग्रेस के कई नेताओं को ऐसा लगा कि वो गैर-कांग्रेसी विपक्ष खड़ा कर रहे हैं.

हालांकि, प्रशांत किशोर ने कहा था कि 'थर्ड फ्रंट' या 'फोर्थ फ्रंट' भारत में नहीं चलेगा. इसे ऐसे देखा गया कि किशोर कांग्रेस के महत्त्व को नकार नहीं रहे हैं.

क्विंट ने पहले ही रिपोर्ट किया था कि किशोर की मुलाकातों का लक्ष्य गैर-कांग्रेसी विपक्ष खड़ा करना नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय विकल्प पर काम शुरू करना है.

कांग्रेस नेतृत्व के साथ बैठक शायद इसी प्रक्रिया का अंत है. ये साफ है कि किशोर का रिकॉर्ड अब गांधी परिवार की नजरों में अच्छा है क्योंकि उनके संभाले कैंपेन के तहत बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एमके स्टालिन की जीत हुई है.
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आगे क्या होगा?

13 जुलाई को बातों की पुष्टि हुई. कांग्रेस नेतृत्व प्रशांत किशोर के साथ खुले तौर पर जुड़ने के लिए तैयार है. दूसरा कि किशोर बीजेपी के खिलाफ एक राष्ट्रीय गठबंधन में कांग्रेस को अहम मानते हैं. ये दोनों ही बातें अपने आप में महत्वपूर्ण हैं.

किशोर बंगाल और तमिलनाडु में जीत के बाद कह चुके हैं कि वो राजनीतिक रणनीतिकार का काम छोड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि आने वाले समय में वो विपक्षी नेताओं से मुलाकात करते रहेंगे और एक राष्ट्रीय विकल्प खड़ा करने में अहम भूमिका निभाएंगे.

ऐसा कहा जा रहा है कि किशोर सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों और महत्वपूर्ण 'इन्फ्लुएंसर' से मिलकर राजनीतिक दलों से परे एक नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश में हैं.
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खबरें हैं कि प्रशांत का संगठन IPAC अगले साल होने वाले उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ संभावित डील के लिए संपर्क में है.

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व की और पंजाब, उत्तराखंड और गोवा जैसे चुनावी राज्यों में अलग-अलग धड़ों के बीच संतुलन बनाने की है. पार्टी लोकसभा में अधीर रंजन चौधरी को हटाकर नया नेता भी नियुक्त कर सकती है.

बड़ी तस्वीर ये उभर कर आती है कि महामारी, किसान आंदोलन और बंगाल चुनाव के बाद राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं और विपक्ष बीजेपी का मुकाबला करने की संभावना देखता है. प्रशांत किशोर की हालिया पहल और कांग्रेस में दिखती सक्रियता इसी प्रक्रिया का हिस्सा लगते हैं.

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