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प्रियंका की गंगा यात्रा से ‘स्टैंडअप’ के मूड में आई कांग्रेस!

तीन दिनों में प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से काशी तक गंगा के रास्ते लगभग 140 किमी की यात्रा की.

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उत्तर प्रदेश की सियासत को साधने निकलीं प्रियंका गांधी का दौरा बनारस में खत्म हुआ. तीन दिनों में प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से काशी तक गंगा के रास्ते लगभग 140 किमी. की यात्रा की. वैसे तो ये यात्रा ज्यादा समय में काफी छोटी थी लेकिन असर बड़े फलक पर देखा जा रहा है. देश में गंगा पर सियासत दशकों से चल रही है लेकिन प्रियंका गांधी ने इस यात्रा से सियासत का तरीका बदल दिया. प्रियंका के इस कदम को एक नजर में देखे तो ये यूपी में कांग्रेस का स्टैंडअप है. ये हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्रियंका इधर-उधर भटके बगैर, बिखरे कांग्रेसियों को तलाशने और साधने में ज्यादा ध्यान दे पाईं.

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वोटरों से ज्यादा समर्थकों पर फोकस

यूपी में कांग्रेस का रिवाइवल इतना आसान नहीं है ये प्रियंका भी जानती हैं. लिहाजा वो वोटरों से ज्यादा गांव-कस्बों के पुराने नेताओं पर केंद्रित रहीं. वो पुराने कांग्रेसियों को ये विश्वास दिलाना चाहती हैं कि अब कांग्रेस सिर्फ चुनाव के लिए नहीं बल्कि मैदान में डटे रहने के लिए तैयारी कर रही है.

यूपी के अंदर लोकसभा की दो और विधानसभा की सात सीटों के साथ कांग्रेस का वोटिंग परसेंट भी दहाई में नहीं है. कुल मिलाकर कहें तो कांग्रेस की इससे बुरी स्थिति क्या होगी? प्रियंका इसी हताशा और निराशा को खत्म करना चाहती हैं. चुनार में प्रियंका की नुक्कड़ सभा की तैयारियों में लगे पूर्व सांसद रामनिहोर राकेश के चेहरे पर अलग खुशी नजर आ रही है. कौशांबी से चार बार सांसद रह चुके राम निहोर राकेश कहते हैं,

प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस के बेहतर दिन आते दिख रहे हैं. प्रियंका गांधी दूसरी इंदिरा गांधी के रुप में अवतरित हुई हैं. उनके आने के बाद कार्यकर्ताओं को एक नई रोशनी मिली है.

रामनिहोर राकेश की तरह वाराणसी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल श्रीवास्तव कहते हैं,

हमारे जो कार्यकर्ता और नेता लोग घरों में बैठे थे, प्रियंका गांधी के आने के बाद वो एक्टिवेट हुए हैं. उनमें गजब का जोश दिखाई पड़ रहा है.
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गंगा यात्रा के दौरान प्रियंका गांधी ने बड़े चेहरे के बजाय स्थानीय कार्यकर्ताओं को तरजीह दी. प्रियंका जहां भी गईं, उनकी आगवानी और मिलने वालों में छोटे नेता और कार्यकर्ता ही दिखे. प्रियंका की कोशिश है कि वो कार्यकर्ताओं से वन टू वन करें. प्रियंका कार्यकर्ताओं की परेशानियों को सुनती रहीं. और उनके सुझावों पर गौर करती हुई दिखीं. प्रियंका जानती है कि अगर कार्यकर्ता जोश में आ गए तो माहौल खुद-ब-खुद बन जाएगा.

स्वराज भवन से यात्रा शुरू कर कांग्रेसियों को झकझोरा

प्रियंका गांधी के गंगा यात्रा की शुरूआत गांधी-नेहरू परिवार के गढ़ कहे जाने वाले प्रयागराज से हुई. यहां के ऐतिहासिक स्वराज भवन और आनंद भवन से न सिर्फ उनकी बल्कि उनके परिवार की कई यादें भी जुड़ी हुई हैं. मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का बचपन यहीं बीता. पुराने कांग्रेसियों के लिए ये सिर्फ बिल्डिंग नहीं है बल्कि इमोशन के तौर पर एक प्रतीक भी है. प्रियंका गांधी कार्यकर्ताओं की इस भावना को जानती भी हैं और समझती भी. लिहाजा गंगा यात्रा की शुरूआत के लिए उन्होंने स्वराज भवन को चुना.

18 मार्च को सुबह से ही ऐतिहासिक स्वराज भवन के बाहर जमे कांग्रेसियों के लिए प्रियंका गांधी, उम्मीद की वो किरण हैं जिसका इंतजार उन्हें सालों से था. यात्रा के पहले पड़ाव पर प्रियंका संगम तट पर पहुंचीं. मां गंगा की आरती उतारी. आचमन किया और मिशन पर निकल पड़ीं.

हेलिकॉप्टर यात्रा के बजाय गंगा ही क्यों?

प्रयागराज से बनारस तक लगभग 140 किमी. की यात्रा के लिए प्रियंका ने गंगा को ही क्यों चुना ? दूसरे बड़े नेताओं की तरह प्रियंका भी हवाई यात्रा कर सकती थीं जिसकी उन्हें इस समय जरूरत भी है. क्योंकि वक्त कम और दायरा बड़ा है. बावजूद इसके उन्होंने गंगा का सहारा लिया. दरअसल गंगा को लेकर पिछले पांच सालों में खूब राजनीति हुई है. खासतौर से बीजेपी गंगा पर अपना अधिकार जताती चली आ रही थी. लेकिन प्रियंका ने बीजेपी को उसी की भाषा में जवाब देने का मन बनाया. गंगा यात्रा के जरिए प्रियंका गांधी ने एक तीर से दो निशाने किए. प्रियंका ने गंगा सफाई को लेकर बड़े-बड़े दावे करनी वाली बीजेपी की पोल खोल दी.

बगैर कुछ बोले उन्होंने ये बता दिया कि जिस गंगा में एक बड़ी नाव (बनारसी भाषा में बजड़ा) नहीं चल सकती है, उसमें मोदी सरकार जहाज चलाने की बात कर रही है. यही नहीं, मां गंगा की आरती उतारती तस्वीरें ये बताने के लिए काफी है कि प्रियंका के लिए गंगा के क्या मायने हैं.

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उन जातियों तक पहुंचीं जो सबसे उपेक्षित!

प्रियंका के निशाने पर, गंगा किनारे रहने वाले पिछड़ा वर्ग, खासतौर से गैर यादव और गैर कुर्मी बिरादरी का एक बड़ा वर्ग है. इसमें मल्लाह, निषाद, बिंद और कुम्हार आते हैं. गंगा यात्रा के दौरान कई ऐसे वाकये सामने आए जब प्रियंका इन लोगों से मिलती हुई दिखीं. मिर्जापुर के चुनार में प्रियंका के इंतजार में बैठी प्रभावती देवी को इस बात की खुशी है कि उनके गांव में प्रियंका आने वाली हैं. उन्हें लगता है कि समय आएगा तो कांग्रेस खुद-ब-खुद दिखने लगेगी.

इसी तरह चुनार के टेकउर गांव के रहने वाले 65 साल के रामजी प्रसाद गोंड भी प्रियंका से काफी उम्मीद लगाए बैठे हैं, क्योंकि कभी ये कांग्रेसी थे. उनका कहना है कि‘’मिर्जापुर की सीट परंपरागत रूप से गांधी परिवार की रही है. इसके पहले प्रियंका गांधी के नाना और पिता जो कहते थे, वो करते थे. लेकिन अभी के जो प्रधानमंत्री हैं, उनकी कथनी-करनी में बहुत अंतर है. फिलहाल प्रियंका में सभी को सोनिया का स्वरूप नजर आता है. प्रियंका के आने से कांग्रेस को जरूर फायदा होगा.’’

दरअसल गंगा यात्रा रूट में पड़ने वाले इन पांच लोकसभा सीटों में इन जातियों का वचर्स्व रहा है. ये जातियां कभी कांग्रेस के पाले में खड़ी रहती थी लेकिन कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ी तो इन्होंने भी रास्ता बदल लिया. जानकार बताते हैं कि मौजूदा दौर में ये जातियां बीजेपी को लेकर कनफ्यूज हैं. ऐसे में प्रियंका को लगता है कि अगर थोड़ी सी मेहनत की जाए तो बात बन सकती है. उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी के इस मजबूत वोटबैंक में सेंधमारी संभव है.

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मोदी के राष्ट्रवाद पर प्रियंका का‘प्रहार’

पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश में राष्ट्रवाद की एक बयार बह रही है. मोदी और उनकी टीम चुनावी सभाओं में सीना ठोक कर राष्ट्रवाद का गान कर रही है. सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए बीजेपी देश की सियासत को साधने की कोशिश कर रही है. ऐसे में प्रियंका कहां चुप बैठने वाली. गंगा यात्रा के दौरान बड़े ही तरीके से प्रियंका गांधी शहीदों के परिजनों के घर तक भी पहुंची. कुल मिलाकर प्रियंका बीजेपी के उस हथियार को हथियाना चाहती है, जिसका इस्तेमाल वो सियासी दुश्मनों के लिए करती रही है.

यात्रा के पहले दिन प्रियंका ने प्रयागराज के सिरसा गांव के रहने वाले महेश यादव के परिवार से मुलाकात की. तो वहीं तीसरे दिन बनारस के व्यस्त दौरे के बीच प्रियंका ने विशाल पांडेय, अवधेश यादव और रमेश यादव के परिजनों से मिली. साफ नजर आया कि प्रियंका बोल कम, कर ज्यादा रही हैं.

मां विंध्यवासिनी की पूजा के लिए पहनी खास साड़ी

प्रियंका के इस यात्रा में हर रंग दिखा. इसमें राजनीति और राष्ट्रवाद था तो आस्था के रंग भी देखने को मिले. प्रयागराज से चलने के बाद प्रियंका गांधी ने पूर्वांचल के सबसे बड़े शक्तिपीठ मां विन्ध्याचल धाम में आशीर्वाद लिया तो काशी में बाबा विश्वनाथ के दरबार में रुद्राभिषेक भी किया. बड़ी बात ये है कि मां विन्ध्यवासिनी के दर्शन के लिए खासतौर पर लाल रंग की साड़ी पहनी. गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए प्रियंका ने मिर्जापुर के कांतिक इलाके में मौलाना इस्माइल चिश्ती की दरगाह में चादर चढ़ाई.

प्रियंका ने ये मैसेज दिया कि वो जितना अपने धर्म को मानती हैं उतना ही दूसरे धर्मों पर भी यकीन है. प्रियंका के इस मिशन में कट्टरता की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं दिखी.

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