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साल के अंत तक खिंच सकता है कोरोना संकट, केंद्र का रोल अहम: अमरिंदर

‘COVID19 से जंग में केंद्र नहीं कर रहा राज्यों की मदद’

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देश में लॉकडाउन लागू होने से पहले ही पूरे राज्य में कर्फ्यू लगा देने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राज्यों को केंद्र से कोई मदद नहीं मिल रही. लिहाजा अपने सीमित संसाधनों के साथ ही वो ये लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. क्विंट हिंदी को दिए Exlusive इंटरव्यू में पंजाब के सीएम ने ये भी कहा कि किसानों की मदद को लेकर भी उनके सुझावों पर केंद्र सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है. पढ़िए कैप्टन अमरिंदर का ये पूरा इंटरव्यू-

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कुछ शर्तों के साथ केंद्र सरकार ने खेती-किसानी से जुड़े कामकाज को 20 अप्रैल से शुरू करने की इजाजत दे दी है. आपको क्या लगता है कि इस रियायत से किसानों और खेती पर निर्भर लोगों की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी?

किसानों की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती से जुड़े कामकाज को शुरू करना बहुत जरूरी था. और, इससे भी ज्यादा जरूरी था इसे भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए शुरू करना. निश्चित रूप से इससे सभी समस्याएं दूर नहीं होंगी. वास्तव में, पंजाब में हमने गेंहू की कटाई शुरू कर दी है और 15 अप्रैल से खरीद का काम शुरू हो चुका है. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे कोविड-19 प्रोटोक़ॉल को बनाए रखने के लिए व्यापक व्यवस्था की गयी है. हमने सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक और प्राइमरी एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव सोसाइटी से लिए गये फसल ऋण पर 2 महीने के ब्याज की पेनाल्टी भी माफ कर दी है.

हमने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि फसल लोन पर तीन महीने का ब्याज माफ कर दिया जाए और कमर्शियल बैंक फसल ऋण की रिकवरी टाल दें.

आपने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की थी कि जो किसान मंडियों में देर से गेहूं बेचने के लिए आते हैं उन्हें इंसेंटिव दिया जाए.वह मांग क्या है और क्या पीएम से आपको कोई भरोसा मिला है?

देखिए, इस वक्त बहुत महत्वपूर्ण है कि मंडियों में ज्यादा भीड़ इकट्ठी ना हो, इसलिए हमने किसानों के लिए पास जारी करते हुए मंडियों में भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की है. हम यह भी चाहते हैं कि वे अपनी फसल मंडियों तक सिर्फ अप्रैल में लेकर ना आएं, बल्कि इसे मई और जून तक लाते रहें. लेकिन इसका मतलब होगा कि उन्हें लंबे समय तक के लिए अतिरिक्त संग्रहण व्यवस्था (स्टोरेज फैसिलिटी) करनी होगी. इस पर ज्यादा खर्च आता है जिसे चुकाने की स्थिति में वे वर्तमान परिस्थियों में नहीं हैं. और, यह भी ध्यान देने की बात है कि हाल में बेमौसम बारिश हुई थी और आंधी-तूफान आया था. इस वजह से खड़ी फसल गिर गयी और उत्पादन घट गया. खेतों में जमा पानी को बाहर निकालने पर भी अतिरिक्त खर्च आया है.

हमने केंद्र सरकार से किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए बोनस देने की मांग की थी ताकि उनकी फसल केवल अप्रैल के बजाए पूरे मई और जून तक मंडियों में आती रहे. लेकिन, अब तक केंद्र की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है.

हमने केंद्र से ये भी कहा है कि वे किसानों को मई महीने में (मंडियों तक) फसल लाने के लिए प्रति क्विन्टल न्यूनतम समर्थन मूल्य से 100 रुपये ज्यादा दे और जून महीने के लिए प्रति क्विन्टल 200 रुपये से ज्यादा. दुर्भाग्य से कोई भरोसा या कोई जवाब अब तक नहीं आया है. हमने ये भी कहा है कि मंडियों में भीड़ से कोरोना वायरस का संक्रमण होगा और अगर किसानों को इंसेंटिव देकर इसे रोका जा सकता है तो वो खर्च हेल्थ केयरपर होने वाले खर्च से कम ही होगा.  
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आपने केंद्र सरकार की घोषणा से पहले ही पंजाब में लॉकडाउन को आगे बढ़ा दिया. क्यों?

हालात ही कुछ ऐसे थे. हम बहुत नजदीक से पूरी दुनिया में परिस्थिति पर नजर रख रहे थे और ग्लोबल ट्रेंड बता रहे थे कि एक्टिव के के आंकड़े कम नहीं हो रहे. यहां तक कि उन देशों में भी, जहां यह बीमारी चरम पर पहुंच चुकी थी. भारत में, और पंजाब में बीमारी अब तक चरम पर नहीं पहुंची है. इसलिए महामारी को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करते हुए कड़े कदम उठाना जरूरी था.

वास्तव में जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन 1.0 की घोषणा भी नहीं की थी, तब हमने राज्य में कर्फ्यू की घोषणा की थी. हम पंजाब के हालात पर बारीक नजर रखे हुए हैं और हमारे पास हालात की बेहतर जानकारी है. आखिरकार विभिन्न राज्यों की ही तरह केंद्र सरकार ने भी लॉकडाउन आगे बढ़ाने का फैसला किया.

पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कोविड19 के खिलाफ हमारी लड़ाई फिलहाल संतोषजनक है. क्या आप सहमत हैं?

हम अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं जिसके लिए पहले से तय कोई नियम-कायदा नहीं है. मुझे भरोसा है कि केंद्र सभी राज्यों की तरह ही पूरी कोशिश कररहा है. यह लड़ाई मिलजुल कर लड़ी जा सकती है. हालांकि मैं महसूस करता हूं कि केंद्रको उन राज्यों को ज्यादा मदद करनी चाहिए जो आगे बड़कर इस जंग को लड़ रहे हैं.

डब्ल्यूएचओ ने जिस स्तर के टेस्टिंग की सिफारिश की है उसके लिए हमारे पास न पैसे हैं न उपकरण. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही इसलिए हम अपने संसाधनों के भरोसे हैं, जो काफी सीमित हैं. जहां तक आगे बढ़कर कोरोना से मुकाबला करने की बात है तो डॉक्टर, नर्स और स्वास्थकर्मी बेमिसाल काम कर रहे हैं और मुझे विश्वास है कि इस वक्त यह दुनिया में सबसे बेहतर है. वे इस मोर्चे पर तैनात तमाम दूसरे वर्कर्स के साथ अपनी जिंदगियां जोखिम में डालकर लड़ रहे हैं.  
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आपके अनुसार कोविड19 का संकट कब तक रहेगा? और मोदी सरकार को इससे लड़ने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?

हर नजरिए से यह महामारी कुछ और महीनों तक चलने वाली है, शायद इस साल के अंत तक. अध्ययन यही इशारा कर रहे हैं कि वक्त बीतने के साथ हालात और बिगड़ सकते हैं. लड़ाई को जोरदार तरीके से लड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को पुरजोर तरीके से मिलकर काम करना होगा. खासकर हर राज्य में लोगों के अलग-अलग तबकों को राहत पैकेज के लिहाज से केंद्र सरकार को ज्यादा सक्रियता और चुस्ती दिखानी होगी. इस लड़ाई को करीब से लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी.

एक बात साफ है कि लॉकडाउन को अनिश्चित काल के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता. इसलिए राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर केंद्र को ऐसी रणनीति पर फोकस करना चाहिए जिससे जरूरी प्रतिबंध भी रहें और जिंदगी भी सामान्य तरीके से चल सके. कई उद्योगों को खोलने की अनुमति दे दी गयी है लेकिन धीरे-धीरे और भी अधिक करने की जरूरत होगी. इस स्थिति से निकलने की रणनीति बहुत अच्छी होनी चाहिए. कोई ऐसा फॉर्मूला नहीं है जो सभी राज्यों, जिलों और गांवों पर लागू किया जा सके.

टेस्टिंग किट्स, पीपीई, वैंटीलेटर, आईसीयू उपलब्ध कराने को लेकर केंद्र सरकार कितनी मदद करही है? आप उससे संतुष्ट हैं या आप गैर-बीजेपी सरकारों वाले राज्यों के लिए कोई भेदभाव देखते हैं?

दूसरे राज्यों की स्थिति मैं नहीं जानता, लेकिन पंजाब में हम लोगों को मेडिकल उपकरण या इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी कोई मदद अब तक केंद्र से नहीं मिली है. अबतक हमने जो कुछ भी किया है और लगातार कर रहे हैं, वह हम अपने स्तर पर अपने सीमित संसाधनों के साथ कर रहे हैं. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि गैर जरूरी विभागों में लागत में कटौती और खर्चों पर रोक लगाकार अपनी कोशिशों को पूरे जोरशोर के साथ जारी रख सकें. यह बात कहते हुए मुझे खुशी है कि अगले 30 दिनों में जैसी परिस्थिति की आशंका है उससे जूझने के लिए फिलहाल हमारे पास माकूल उपकरण हैं.

असल में, स्वास्थ्य और दूसरे विभागों से जुड़ी मेरी टीमों ने मुझे बताया है कि हम अगले 30 दिनों के लिए ‘जरूरत से ज्यादा’ तैयार हैं. लेकिन मैंने उन्हें यही कहा है कि तैयारी जरूरतसे ज्यादा भले हो जाए लेकिन कम ना हो. मैंने उन्हें यह भी कहा है कि हमें 30 दिनसे आगे के लिए भी सोचने और तैयार रहने की जरूरत है. और, टीमें लगातार काम कर रहीहैं ताकि तैयारी में कोई कमी ना रहे.

हमारी खुशकिस्मती है कि हमारे कई लोकल मैन्यूफैक्चरर ऐसे नये-नये प्रोडक्ट बना रहे हैं जो टेस्टिंग के मानकों पर खरे उतर रहे हैं. और, हम पीपीई और वेंटीलेटर जैसे उपकरण उनसे खरीद रहे हैं. हम सरकारी अस्पतालों में भी टेस्टिंग की सुविधाएं बढ़ा रहे हैं और हॉटस्पॉट इलाकों में SARI (Severe AcuteRespiratory Infections) टेस्टिंग के लिए मोबाइल वैन की शुरुआत हो चुकी है.

हमें ज्यादा रैपिड डायग्नोस्टिक किट्स (आरडीके) की जरूरत है जो केंद्र की ओर से बहुत धीमी गति से मिल रहे हैं. हमने 1.01 लाख आरडीके के ऑर्डर दिए थे जिनमें से हमें केवल 11 हजार ही आईसीएमआर से अब तक मिले हैं. हम इसकी भरपाई खुले बाजार से किट खरीदकर कर रहे हैं.
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संकट से निबटने के लिए केंद्र अब तक राज्यों की खातिर वित्तीय पैकेज लेकर सामने नहीं आया है और हाल में ही आपने कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिनयहां तक कि केंद्र भी राजस्व की समस्या से जूझ रहा है. किस तरह आप सोचते हैं कि राज्यों की ओर से की जा रही मांगों को केंद्र पूरा कर सकता है?

केंद्र राष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुए इस स्वास्थ्य संकट से लड़ने के लिए नेशनल रिजर्व से उधार से सकता है. राज्यों में हमारे पास कुछ इस किस्म का विकल्प नहीं है. हम कहां जाएं?

संघर्ष राज्यों के स्तर पर है और अगर राज्यों के पास फंड नहीं होगा, तो देश इस महामारी से लड़ाई में सफल कैसे हो सकता है. राज्यों को पैसे की जरूरत है और केंद्र को इसका रास्ता निकालना होगा. मैं नहीं मान सकता कि केंद्र के पैसा नहीं है. यह संसाधनों के सही प्रबंधन का सवाल है.

राहुल गांधी ने कोविड-19 पर देर से हरकत में आने को लेकर पीएम पर निशाना साधा है. क्या आप सहमत हैं?

हां, बिल्कुल. अगर हमने विदेश से लौटने वालों की स्क्रीनिंग कोरोना वायरस के फैलने की बात सामने आने के फौरन बाद जनवरी-फरवरी में शुरू की होती, तो मैं सोचता हूं कि आज हम बेहतर स्थिति में होते. हो सकता है कि हम भारत में वायरस के फैलने पर पूरी तरह रोक लगाने में सफल हो जाते. राहुल ने बहुत पहले फरवरी में ही आगाह कर दिया था कि संकट आ रहा है, लेकिन हम मार्च तक हरकत में नहीं आए. हालांकि, मैं यह सुझाव नहीं दे रहा कि हमें फरवरी में ही लॉकडाउन कर देना चाहिए था लेकिन दूसरी तरह के तमाम प्रतिबंध लागू किए जा सकते थे. एडवाइजरी जारी की जा सकती थी. सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों को दफ्तरों में और सार्वजनिक स्थानों पर तभी से लागू किया जा सकता था.

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लेकिन रोग फैलने के बाद आपकी सरकार ने भी होला-मोहल्ला कार्यक्रम की इजाजत दी थी. तो क्या वह आपकी सरकार की असफलता नहीं थी?

हमने सख्त निर्देश जारी किए थे और बचाव के सभी मानकों को अपनाया था.यहां तक कि उस वक्त किसी जगह पर कोई प्रतिबंध लागू नहीं था. असल में मैंने व्यक्तिगत रूप से, जैसा कि एसजीपीसी ने भी किया था, लोगों से अपील की थी और उस मौके पर कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं हुआ क्योंकि सभी सियासी दलों ने इससे दूर रहने का फैसला किया था. यह त्यौहार जिस बड़े पैमाने पर हुआ करता है वैसा नहीं हुआ. लेकिन इसके बावजूद अगर केंद्र सरकार की ओर से लॉकडाउन या प्रतिबंधों को लेकर सख्त एडवाइजरी जारी कर दी गई होती तो चीजें और बेहतर होतीं.

हाल में आपने केंद्र सरकार को लिखा कि वो उद्योग और वाणिज्यिक संस्थानों को कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कामगारों को पूरी तनख्वाह देने वाले अपने निर्देश पर दोबारा विचार करे. आप ऐसा क्यों सोचते हैं?

हमें असल हालात समझने होंगे. उद्योग और वाणिज्यिक संस्थान संकट के दौर में सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं लेकिन हमें यह समझना होगा कि इस समय उनकी भी कोई आमदनी नहीं है. यह ऐसा ही है कि हम किसी भूखे इंसान से कहें कि वह किसी गरीब को खाना खिलाए. वह थोड़ा भोजन साझा कर सकता है जो उसके पास एक या दो दिन के लिए है. लेकिन भोजन खत्म होने के बाद क्या होगा?

इंडस्ट्री और दूसरे संस्थानों के लिए केंद्र को कहीं ज्यादा ठोस और उचित मदद की घोषणा करनी चाहिए. उन्हें देखना होगा कि कामगारों को वेतन जारी रखने की भरपाई का रास्ता कैसे निकाला जाए. इन मुश्किल हालात में उद्योग/वाणिज्यिक संस्थानों का नुकसान हुए बिना कामगारों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र को समाधान के कुछ अलग और नए तरीके सोचने होंगे.

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