16 दिसंबर 2017 में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो इसे कांग्रेस में नए युग का आरंभ कहा गया. कई उतार-चढ़ावों से भरे करीब डेढ़ साल के छोटे से कार्यकाल के बाद राहुल गांधी ने 3 जुलाई 2019 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. राहुल गांधी ने इस्तीफा देने के बाद कार्यकर्ताओं को लिखी चार पन्नों की चिट्ठी में कहा है कि वह 2019 के चुनावों में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं. उन्होंने कहा, 'पार्टी के बेहतर भविष्य के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण है. यही कारण है कि मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.'
आइए, जानते हैं डेढ़ साल के कार्यकाल में राहुल की अगुवाई में पार्टी में क्या बदलाव हुए और कांग्रेस, बीजेपी को चुनौती देने में कितनी कामयाब रही.
हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत
साल 2014 के चुनावों में केंद्र से कांग्रेस का सफाया हो गया. इसके बाद धीरे-धीरे राज्यों में भी कांग्रेस के हाथ से सत्ता खिसकती रही. कांग्रेस के ऐसे मुश्किल दौर में राहुल गांधी ने दिसंबर 2017 में पार्टी की कमान संभाली. मोदी लहर में जब एक के बाद एक राज्य भगवामय हुए जा रहे थे, तब राहुल ने मजबूती के साथ उस चुनौती का सामना किया.
राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं में जोश भरा और चरमरा जा रहे संगठन को दोबारा मजबूती दी. यही वजह रही कि 2017 का गुजरात विधानसभा चुनाव राहुल गांधी की अगुवाई में लड़ा गया. इस चुनाव में कांग्रेस ने 25 साल से राज्य में सत्ताधारी बीजेपी को मजबूत चुनौती दी.
दिसंबर 2018 में हिंदी हार्टलैंड के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए. इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार थी. लेकिन ये राहुल गांधी के कुशल नेतृत्व का ही नतीजा था कि कांग्रेस ने तीनों राज्यों में जीत हासिल की और सरकार बनाई.
सोशल मीडिया पर बढ़ी कांग्रेस की सक्रियता
बीजेपी को सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय राजनीतिक दल माना जाता है. चाहे विरोधियों को घेरना हो या फिर अपनी पार्टी की योजनाओं का बखान करना, दोनों ही मामलों में बीजेपी सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करती है.
हालांकि, 2017 से पहले कांग्रेस इस मामले में कमजोर थी. लेकिन 2018 की शुरुआत से कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाई. राहुल की अगुवाई में कांग्रेस ने बीजेपी और मोदी सरकार को घेरने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया.
युवाओं की बढ़ी भागीदारी, नए चेहरों को जिम्मेदारी
राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस में पार्टी के युवा नेताओं की भागीदारी बढ़ी. राहुल गांधी ने मिलिंद देवड़ा जैसे युवा नेता को मुंबई कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी. इसके अलावा राजस्थान में सचिन पायलट पर भरोसा जताते हुए उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी. मध्य प्रदेश के युवा कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया.
इसके साथ ही राहुल ने नए चेहरों पर भरोसा कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी. लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नए चेहरों पर दांव लगाया. इतना ही नहीं राहुल गांधी ने लोकसभा में नए चेहरे अधीर रंजन चौधरी को जिम्मेदारी देते हुए उन्हें लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाया.
‘न्याय’ से डर गई थी मोदी सरकार!
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने भले ही शानदार प्रदर्शन किया हो. लेकिन राजनीति विशेषज्ञों की मानें तो चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी के ‘न्याय’ ने बीजेपी की नींद उड़ा दी थी. राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस की ओर से न्यूनतम आय योजना यानी ‘न्याय’ लॉन्च की थी. राहुल गांधी ने कहा था कि अगर देश में कांग्रेस की सरकार आती है तो देश के सबसे ज्यादा गरीब 5 करोड़ परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये दिए जाएंगे.
कांग्रेस की ये योजना, मोदी सरकार की उस योजना का जवाब थी, जिसमें सरकार ने किसानों को हर साल छह हजार रुपये देने का इंतजाम किया है.
मोदी जैसे कद्दावर नेता को दी थी कड़ी चुनौती
नरेंद्र मोदी चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद साल 2014 में मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़कर बीजेपी ने बहुमत हासिल किया. नरेंद्र मोदी उन नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने आम कार्यकर्ता से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया है. ऐसे कद्दावर नेता को चुनौती देना आसान काम नहीं था. लेकिन फिर भी राहुल गांधी ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया.
राहुल गांधी ने राफेल डील मुद्दे को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को जमकर घेरा. लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान भी वह नरेंद्र मोदी के खिलाफ ‘चौकीदार चोर है’ नारे को लोगों की जुबान पर चढ़ाने में कामयाब रहे.
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